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DigiYatra: भारत की डिजिटल उड़ान को नई पहचान देने वाला नवाचार

डिजियात्रा ऐप की शुरुआत की दिशा में 2018  और 2019  के बीच कदम बढ़ाया गया था।

Last Updated- May 16, 2025 | 10:13 PM IST
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

डिजिटल पहचान, निर्बाध आवागमन और नागरिक केंद्रित सेवाएं उपलब्ध कराने के इस दौर में ‘डिजियात्रा’ प्रणाली भारत के डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) में एक बेहतरीन नवाचार के रूप में सामने आई है। यह न केवल संपर्क रहित बोर्डिंग पास प्रणाली (कॉन्टैक्टलेस बोर्डिंग सिस्टम) है बल्कि दुनिया का पहला राष्ट्रीय डिजिटल यात्री पहचान प्लेटफॉर्म भी है। इसका विकास हवाई अड्डों पर सुरक्षित, अनुमति आधारित बायोमेट्रिक सत्यापन के लिए किया गया है। डिजियात्रा प्रणाली नियामकीय स्पष्टता, संस्थागत ढांचा और सार्वजनिक-निजी क्रियान्वयन को एक साथ लाकर बड़े बदलाव लाने वाले ढांचे तैयार करने की भारत की अनोखी क्षमता को परिलक्षित करती है।

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डिजियात्रा ऐप की शुरुआत की दिशा में 2018  और 2019  के बीच कदम बढ़ाया गया था। उस समय मैं नागर विमानन राज्य मंत्री था। उस समय हमारी टीम ने डिजियात्रा को व्यवहार्य बनाने और भविष्य में इसके वृहद स्तर पर इस्तेमाल के लिए जरूरी नियामकीय एवं तकनीकी ढांचा विकसित किया था। हमने काफी पहले यह महसूस कर लिया था कि हवाई अड्डों पर बिना किसी झमेले के पहचान सत्यापित करने के लिए सुरक्षित तरीके से यात्रियों के हवाई यात्रा विवरण (फ्लाइट बुकिंग इन्फॉर्मेशन) तक पहुंच की जरूरत होगी। इसे ध्यान में रखते हुए एक प्रावधान किया गया जिसके तहत हवाई अड्डा संचालकों को यात्रियों की सहमति लेकर उनके पैसेंजर नेम रिकॉर्ड (पीएनआर) हासिल करने की अनुमति दी गई। यह संस्थागत नीति के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता थी। इसके हवाई अड्डा संचालकों को यात्री की सहमति से यात्री नाम रिकॉर्ड (पीएनआर) डेटा तक पहुंच प्राप्त करने में सक्षम बनाया गया इससे सूचनाओं तक पहुंच आसान हो गई जिसके अभाव में पहले संचालन क्षमता सीमित हुआ करती थी। 

हमने जो संस्थागत ढांचा तैयार किया वह भी उतना ही महत्त्वपूर्ण था। किसी कमर्शियल वेंडर या सरकारी इकाई को प्रणाली का पूर्ण नियंत्रण देने के बजाय हमने डिजियात्रा फाउंडेशन की शुरुआत की। इसे धारा 8 के अंतर्गत गैर-लाभकारी संस्था का दर्जा दिया गया जिस पर भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, जीएमआर, अदाणी और बेंगलूरु इंटरनैशनल एयरपोर्ट लिमिटेड सहित देश के बड़े हवाई अड्डों का संयुक्त स्वामित्व है। नागर विमानन मंत्रालय इस पर निगरानी रखता है।

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उस समय कोई औपचारिक डेटा गोपनीयता कानून तैयार नहीं हुआ था मगर हमने शुरू से गोपनीयता सुनिश्चित करने का खास ध्यान रखा। यह प्रणाली इस तैयार की गई कि बायोमेट्रिक डेटा यात्रियों के व्यक्तिगत उपकरणों (जैसे कि मोबाइल) पर ही संरक्षित रहे और उनकी सहमति के बाद ही उनके (डेटा)  इस्तेमाल की व्यवस्था दी गई। उपयोगकर्ताओं की जानकारियां यात्रा के 24 घंटों के अंदर हटा दी जाती हैं और कभी भी केंद्रीय रूप से संरक्षित नहीं की जाती हैं। प्रत्येक लेनदेन वैकल्पिक (ऑप्ट-इन), उद्देश्य सीमित और यूरोपियन जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेग्युलेशन (जीडीपीआर) के मानकों के अनुकूल होता है। इससे डिजियात्रा को वैश्विक पहचान मिल गई और सुरक्षित होने के साथ ही यह ऐप लोगों के लिए उपयोग करने में सुविधाजनक हो गया। दूसरे डीपीआई जैसे आधार या यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस से अलग डिजियात्रा एक विकेंद्रीकृत तंत्र में काम करती है। यह विमानन कंपनियों, हवाई अड्डों और यात्रियों को संघीय पहचान मॉडल से जोड़ती है। डिजियात्रा ऐप पर पंजीकृत होने वाले यात्री अपने आईडी अपलोड करते हैं, फेशियल स्कैन देते हैं और इसे फ्लाइट बुकिंग से जोड़ते हैं। हवाई अड्डों पर वे प्रवेश, सुरक्षा और बोर्डिंग के समय केवल फेशियल रिकग्निशन गेट से गुजरते हैं जहां उन्हें पेपर टिकट या आईडी कार्ड दिखाने की जरूरत नहीं होती है। यह प्रणाली प्रतीक्षा अवधि काफी कम कर देती है और यात्रा का अनुभव सुखद एवं निर्बाध बना देती है।

मई 2025 तक डिजियात्रा प्रणाली भारत में दिल्ली, बेंगलूरु, हैदराबाद, मुंबई, अहमदाबाद और कोच्चि सहित13 हवाई अड्डों पर उपयोग में थी। अब तक 34 लाख यात्री इस प्रणाली में पंजीकृत हो चुके हैं और 25  लाख से अधिक ने यात्रा करने के लिए इसका इस्तेमाल किया है। सरकार 2026  तक देश के 50  से अधिक हवाई अड्डों पर इसे लागू करना चाहती है जिसमें लगभग सभी बड़े हवाईअड्डे आ जाएंगे। भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जिसने ऐसी राष्ट्रीय डिजिटल यात्री पहचान प्रणाली तैयार की है। दुनिया के अन्य देशों में ऐसी प्रणाली सीमित स्तर पर ही काम कर रही हैं- जैसे अमेरिका में टीएसए प्रीचेक और क्लीयर। मगर ये निजी नियंत्रण में होने के साथ ही महंगी हैं और कुछ ही हवाई अड्डों पर उपलब्ध हैं। यूरोप में हवाई अड्डों में ई-गेट होते हैं मगर विमानन कंपनियों और टर्मिनलों पर कोई एकीकृत यात्री पहचान प्रणाली उपलब्ध नहीं है। चीन ने बायोमेट्रिक प्रणाली में निवेश किया है मगर वे टॉप-डाउन सर्विलांस मॉडल हैं और स्वैच्छिक या नागरिक केंद्रित प्लेटफॉर्म नहीं हैं। भारत ने डिजियात्रा के साथ जो कारनाम कर दिखाया है वह दूसरे देशों ने नहीं किया है। इसका कारण यह है कि वे भारत की तरह सधा डीपीआई तंत्र (मॉड्यूलर, अंतर-परिचालन प्रणाली की खूबी और निजी-सार्वजनिक भरोसे के साथ) तैयार नहीं कर पाए हैं।

डिजियात्रा का महत्त्व केवल यात्रा करने का अनुभव सुगम एवं सरल बनाने तक ही सीमित नहीं है। भारत में हवाई यात्रा करने वाले लोगों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है मगर हवाई अड्डों पर इसके लिए मौजूद सुविधाएं अब कम पड़ने लगी हैं। इसे देखते हवाई अड्डों पर यात्रियों के प्रवेश से लेकर विमान में सवार होने तक तमाम प्रक्रियाओं की रफ्तार बढ़ाना बेहद जरूरी हो गया है। डिजियात्री ऐप इसमें काफी मददगार साबित हो रहा है। नए टर्मिनल या अतिरिक्त जमीन की जरूरत के बिना ही मौजूदा ढांचे के साथ डिजियात्रा क्षमता में इजाफा कर रही है। इससे हवाई अड्डों पर संचालन लागत कम हो रही है जिससे विमान किराये घटाने में भी मदद मिलती है। पूंजी की अधिक जरूरत वाले विमानन क्षेत्र में क्षमता में सुधार आर्थिक रूप से बड़े बदलाव लाने वाले हैं।

डिजियात्रा की खूबी इसकी बहुउपयोगिता एवं वृहद पैमाने पर इस्तेमाल में छुपी है। मूल रूप से ऑप्ट-इन, उपकरण आधारित बायोमेट्रिक एक्सेस सिस्टम होने की वजह से कहीं भी यानी मेट्रो, ट्रेन, बसों एवं शिक्षण संस्थानों में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इस प्रणाली का ढांचा मूल रूप से मॉड्यूलर एवं कम लागत वाला है जिससे यह बड़े भौतिक ढांचे या बैक-एंड इंटीग्रेशन के बिना कहीं भी इस्तेमाल में लाई जा सकती है। अपनी इस खूबी की मदद से डिजियात्रा न केवल विमानन क्षेत्र में एक तकनीकी समाधान बनकर उभरी है बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में स्मार्ट एक्सेस सिस्टम के लिए एक ठोस ढांचा भी साबित हो रही है।

डिजियात्रा के साथ भारत ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि समझबूझ के साथ तैयार और संस्थागत रूप से मजबूत डिजिटल ढांचा बड़े बदलाव ला सकता है। अब देश के सभी बड़े हवाई अड्डों पर डिजियात्रा इस्तेमाल में लाए जाने की बात चल रही है इसलिए यह न केवल यात्रा के लिए एक प्रारूप की तरह काम करेगी बल्कि रेल, मेट्रो एवं सार्वजनिक सेवाओं के लिए भविष्य में पहचान प्रणाली के रूप में भी मील का पत्थर साबित होगी। डीपीआई का भारतीय स्वरूप किस तरह विश्वस्तरीय नवाचार को बढ़ावा दे सकता है डिजियात्रा उसका एक कमाल का उदाहरण है।

वर्ष 2018  में नीतिगत प्रयोग के तौर पर शुरू हुई यह प्रणाली भारत की अगली पीढ़ी के यात्रा ढांचे के लिए मजबूत स्तंभ बन गई है। यह इस बात का उदाहरण है कि रणनीतिक दृष्टिकोण के साथ सार्वजनिक-निजी सहयोग करोड़ों नागरिकों के लिए चीजें कितनी आसान बना सकता है।

(लेखक केंद्रीय मंत्री और लोक सभा सदस्य रह चुके हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

First Published - May 16, 2025 | 9:47 PM IST

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