अक्टूबर में जो लोग दीपावली से पहले भारतीय रिजर्व बैंक (आबीआई) से तोहफा मिलने की उम्मीद कर रहे थे उन्हें निराशा ही हाथ लगी थी। तब आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने रीपो दर 5.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित छोड़ दी थी। अब आगामी 5 दिसंबर को एमपीसी की तीन दिवसीय द्विमासिक बैठक फिर होने वाली है। क्या आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा इस बार सेंटा क्लॉज बनकर जल्द क्रिसमस की सौगात दे पाएंगे? अगस्त और अक्टूबर में दरें अपरिवर्तित रहने के बाद इस बैठक से सबकी उम्मीदें जुड़ गई हैं।
आर्थिक वृद्धि -मुद्रास्फीति का समीकरण सभी केंद्रीय बैंकों के लिए नीतिगत दर तयें करने में अहम भूमिका निभाता है। इस परिप्रेक्ष्य में दिसंबर की बैठक दिलचस्प है क्योंकि अक्टूबर में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति एक दशक से भी अधिक के निचले स्तर पर आ गई जो रीपो दर में कटौती की गुंजाइश बनाती है। इसके साथ ही अर्थव्यवस्था से जुड़े आंकड़े भी मजबूत दिख रहे हैं। मगर डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी चिंता की वजह है जिससे दरों पर यथास्थिति बनाए रखने के पक्ष में पलड़ा भारी दिखने लगता है। हालांकि, केंद्रीय बैंक दरों में कटौती की गुंजाइश होने का संकेत जरूर दे रहा है।
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े सुखद मगर चौंकाने वाले भी रहे हैं। वहीं, सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति सितंबर में 1.44 प्रतिशत से कम होकर अक्टूबर में 0.25 प्रतिशत हो गई। दूसरी तरफ, रुपया पिछले शुक्रवार (28 नवंबर) डॉलर के मुकाबले 89.45 पर बंद हुआ। अक्टूबर में एमपीसी की बैठक में कहा गया कि वृहद आर्थिक हालात और भविष्य की संभावनाओं ने आर्थिक वृद्धि को दम देने के लिए नीतिगत स्तर पर गुंजाइश बढ़ा दी है। तो क्या एमपीसी दिसंबर में बड़ा फैसला लेगी? आइए, पहले आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति के आंकड़ों पर एक नजर डाल लेते हैं।
वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में 7.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करने के बाद दूसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रही जिसमें विनिर्माण, सेवा और कृषि क्षेत्र की प्रमुख भूमिका रही है। सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति सितंबर में 1.44 प्रतिशत से गिरकर अक्टूबर में 0.25 प्रतिशत हो गई, जो मौजूदा सीपीआई सीरीज (आधार वर्ष 2012) की शुरुआत के बाद से सालाना आधार पर सबसे कम है। जुलाई के बाद यह तीसरा मौका है जब सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति आरबीआई द्वारा निर्धारित दायरे से नीचे रही।
पिछले लगातार नौ महीनों से यह 4 प्रतिशत से नीचे बनी हुई है। नवीनतम आंकड़े अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के लिए आरबीआई के 1.8 प्रतिशत के अनुमान से बहुत कम हैं। इसका मतलब है कि जब तक अगले दो महीनों में मुद्रास्फीति तेजी से नहीं उछलती है तब तक तीसरी तिमाही में खुदरा मुद्रास्फीति एक बार फिर केंद्रीय बैंक के पूर्वानुमान से कम रहेगी। तो क्या दिसंबर में नीतिगत दर में कटौती की संभावना बढ़ गई है? नहीं। सीधे तौर पर ऐसा नहीं कहा जा सकता।
आखिर इसकी वजह क्या है? वित्त वर्ष की पहली छमाही में जीडीपी वृद्धि दर 8 प्रतिशत रही है। इसके अलावा गिरता हुआ रुपया दरों में कटौती के लिए एक बाधा साबित हो रहा है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि केंद्रीय बैंक अक्टूबर में दरें घटा सकता था। अब जब आर्थिक वृद्धि दर तो मजबूत स्थिति में है मगर रुपया कमजोर हो रहा है इसलिए कटौती की गुंजाइश सीमित है।
फिलहाल मुद्रास्फीति कम जरूर है मगर आरबीआई ने अक्टूबर में अनुमान लगाया था कि जनवरी-मार्च तिमाही में मुद्रास्फीति बढ़कर 4 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2027 की पहली तिमाही में 4.5 प्रतिशत हो जाएगी। हालांकि, केंद्रीय बैंक ने पूरे वर्ष के लिए समग्र मुद्रास्फीति का अपना अनुमान कम कर दिया। केंद्रीय बैंक ने वित्त वर्ष 2026 के लिए सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति दर 2.67 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था। अगस्त में इसे 3.7 प्रतिशत से घटाकर 3.1 प्रतिशत और इससे पहले जून में 4 प्रतिशत से 3.7 प्रतिशत कर दिया गया था। आरबीआई ने अक्टूबर में मौजूदा वित्त वर्ष के लिए वास्तविक जीडीपी की वृद्धि दर का अनुमान भी 6.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.8 प्रतिशत कर दिया। आरबीआई अपना मुद्रास्फीति अनुमान कम और आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान बढ़ा सकता है।
तमाम नफा और नुकसान पर विचार करते हुए नवीनतम खुदरा मुद्रास्फीति आंकड़े दरों में कटौती की संभावनाएं बढ़ा सकते है लेकिन गुंजाइश सीमित है। अगर आरबीआई को शुल्कों और कम उपभोग के कारण अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान नजर आए तो वह ब्याज दर अधिक से अधिक 25 आधार अंक कम कर सकता है। विश्लेषकों का कहना है कि शुल्कों का असर श्रम पर अधिक निर्भर रहने वाले सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों और जीएसटी दरें कम होने से सकारात्मक प्रभावों पर पड़ेगा। हां, अगर अमेरिका के साथ समझौता हो जाता है तो जीडीपी के लिए जोखिम काफी हद तक कम हो जाएगा।
इस बार बाजार आरबीआई के कदम से अधिक उससे मिलने वाले संकेतों पर ध्यान देगा। अगर दरें कम हुईं तो आरबीआई इसे कैसे उचित ठहराएगा जब आर्थिक वृद्धि दर मजबूत दिख रही है? अगर वह कोई कदम नहीं उठाता है तो इसे भी वह कैसे उचित ठहराएगा जब मुद्रास्फीति काफी निचले स्तर पर है?
अक्टूबर में आरबीआई ने नीतिगत दर और रुख दोनों में कोई बदलाव नहीं किया था लेकिन गवर्नर मल्होत्रा ने इस बात पर जोर दिया था कि मौजूदा वृहद आर्थिक हालात और परिदृश्य ने आगे आर्थिक वृद्धि दर को समर्थन देने के लिए नीतिगत दर में कटौती का विकल्प खोल दिया है। केंद्रीय बैंक ने तब दरों में कटौती नहीं की और पूर्व में उठाए कदमों के प्रभाव दिखने के लिए इंतजार करना पसंद किया।
अप्रैल 2026 में एमपीसी की बैठक से पहले पहले अगले साल एक नई जीडीपी और सीपीआई सीरीज जारी की जाएगी। अगर आर्थिक वृद्धि दर मजबूत रहती है और नई सीपीआई सीरीज से खुदरा मुद्रास्फीति और नीचे जाती है तो ऊंची वृद्धि दर और कम मुद्रास्फीति की स्थिति जारी रह सकती है। ब्याज दरों पर कोई कदम उठाने से पहले ऋण आवंटन बढ़ने की स्थिति में आरबीआई को बैंकिंग प्रणाली में नकदी का प्रबंधन करना जरूरी होगा।
आरबीआई ने नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) 1 प्रतिशत तक घटा दिया था जिससे अब उतार-चढ़ाव के बीच बैंकिंग प्रणाली में नकदी 1 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गई है। सितंबर के पहले पखवाड़े में औसत अधिशेष नकदी 2.7 लाख करोड़ रुपये थी मगर अग्रिम कर और जीएसटी भुगतान के कारण यह इसी महीने के दूसरे पखवाड़े में घटकर 28,000 करोड़ रुपये रह गई। अक्टूबर में उतार-चढ़ाव के बाद नवंबर में बैंकिंग प्रणाली में नकदी पर्याप्त रही है। सीआरआर में कमी के अलावा आरबीआई द्वितीयक बाजार में बॉन्ड भी खरीद रहा है वहीं डॉलर की बिक्री के जरिये विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप से अतिरिक्त रुपया भी खींच रहा है।
(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं।)