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आपदा से बचाव के लिए शहरों को मिले सुरक्षा

हाल में दिल्ली हवाईअड्डे पर बारिश के कारण गिरे हुए खंभे के नीचे दबे हुए मृत व्यक्ति की तस्वीर सुर्खियों में रही।

Last Updated- July 31, 2024 | 9:05 PM IST
शहरों को आपदाओं से बचाव की आवश्यकता हैCities need a defence against disasters

हाल में दिल्ली हवाईअड्डे पर बारिश के कारण गिरे हुए खंभे के नीचे दबे हुए मृत व्यक्ति की तस्वीर सुर्खियों में रही। इसी दौरान बारिश के कारण देश में कई अहम आधारभूत ढांचे क्षतिग्रस्त होने के साथ ही लोगों के जानमाल के नुकसान से जुड़ी कई घटनाएं देखी गईं। इस तरह की घटनाओं से यह सवाल खड़ा होता है कि हमारे स्मार्ट शहरों में आम जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्या वास्तव में आपदा-प्रतिरोधी आधारभूत संरचनाएं है?

जब इमारतों पर जलवायु परिस्थितियों का बोझ बढ़ने लगता है तब जलवायु और आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढांचा तैयार करने की तात्कालिक जरूरत महसूस होने लगती है। यह तब और आवश्यक हो जाता है क्योंकि भारत आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचा गठबंधन (सीडीआरआई) का संस्थापक सदस्य है जिसका लक्ष्य, महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की जलवायु और आपदा प्रतिरोधी क्षमता को मजबूत करना है।

किसी अप्रत्याशित आपदा या जलवायु संबंधी झटके आदि सहने के अनुकूल आधारभूत संरचना में निवेश केवल किसी नुकसान और जान-माल की हानि को रोकने के लिए नहीं है बल्कि यह सेवाओं की निरंतरता सुनिश्चित करने से जुड़ा है जिससे हमारे शहर संचालित होते हैं। जब सड़कें बंद हो जाती हैं, सार्वजनिक परिवहन रुक जाता है और बिजली की कटौती आम हो जाती है तब शहरी जीवन का ताना-बाना ही खतरे में पड़ जाता है। इन बाधाओं का शहर में रहने वाले लोगों की आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य और कल्याण पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है।

शहरों की योजना तैयार करते समय आपदा और जलवायु जोखिम आकलन को शामिल करना एक बेहतर रणनीति है जिससे शहरों को प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए तैयार किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि आधारभूत संरचना, मौसम की चरम स्तर की स्थिति से निपटने के लिए डिजाइन की गई है और इससे विनाशकारी स्थिति के बनने की संभावना कम हो जाती है।

इसका अर्थ शहरों में ऐसी जगह बनाना है जो पर्यावरण से जुड़े दबाव का प्रबंध कर सके जैसे कि शहरों में गर्मी के प्रभाव को कम करने के लिए ज्यादा हरे-भरे स्थान बनाना और बाढ़ रोकने के लिए जल प्रबंधन प्रणाली पर जोर देना आदि। जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के साथ आपदा जोखिम कम करने के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क 2015-2030, विकास की फंडिंग के लिए अदीस अबाबा कार्य एजेंडा और नया शहरी एजेंडा इस बात पर जोर देता है कि आधारभूत संरचना में आपदा संबंधी नुकसान काफी कम हो। यह शहरी योजना में आपदा जोखिम आकलन को जोड़ने की भी वकालत करता है।

शहरी योजना में इन जोखिम आकलन को जोड़ने के लिए सरकारी एजेंसियों, शहरी योजनाकारों, इंजीनियरों और स्थानीय समुदाय सहित विभिन्न हितधारकों का सहयोग शामिल है। एक साथ मिलकर काम करने से यह बात सुनिश्चित हो सकती है कि शहरी विकास परियोजनाएं न केवल स्थायी हों बल्कि जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव का सामना करने के लिए सक्षम हों। इससे साझा जिम्मेदारी बढ़ने के साथ ही समुदायों में प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता भी बढ़ती है जिससे शहर भविष्य की चुनौतियों का बेहतर तरीके से सामना करने के लिए तैयार हो सकते हैं।

इसके अलावा शहरी नियोजन में आपदा और जलवायु जोखिम आकलन को जोड़ने के आर्थिक लाभ महत्त्वपूर्ण हैं। आपदा अनुकूल बुनियादी ढांचे में शुरुआती निवेश अधिक हो सकता है लेकिन आपदा के बाद बनने वाले हालात में सुधार की लागत में कमी से दीर्घावधि में बचत हो सकती है और आर्थिक गतिविधियों में कम बाधाओं के साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार जैसे परिणाम भी महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रतिकूल परिस्थितियों के झटकों का सामना करने के लिए तैयार शहर के लिए वास्तव में कारोबार और निवेशकों के लिए आकर्षण की पर्याप्त वजहें होती हैं जिससे आर्थिक विकास और स्थिरता को बढ़ावा मिलता है। इन आकलन को शहरी योजना में शामिल करने से सामाजिक समानता के मुद्दे का भी समाधान होता है।

प्राकृतिक आपदा और जलवायु परिवर्तन आबादी के कमजोर वर्ग को अधिक प्रभावित करते हैं जो अक्सर सबसे अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में रहते हैं। शहरी क्षेत्रों को सबके अनुकूल और विपरीत परिस्थितियों के झटके का सामना करने योग्य बनाकर वास्तव में सबसे कमजोर निवासियों की रक्षा की जा सकती है और यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि सभी के पास सुरक्षित आवास हो और उनकी पहुंच विश्वसनीय सेवाओं और आपातकालीन तंत्र तक हो जो तुरंत कदम उठाने में सक्षम हो।

डिजिटल तकनीक का लाभ उठाना जलवायु और आपदा जोखिम आकलन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। एशियाई विकास बैंक (एडीबी) के एक अध्ययन के मुताबिक इस क्षेत्र में डिजिटल बदलाव तीन महत्त्वपूर्ण तरीके से काम करता है। पहला, यह धरती-अवलोकन तकनीक के माध्यम से डेटा तक पहुंत को बढ़ाता है। दूसरा, यह मिले हुए डेटा का प्रसंस्करण और आकलन करता है। तीसरा, यह जोखिम संबंधी सूचनाओं के प्रसारण को बढ़ावा देता है। इस तरह की प्रगति, शहरी नियोजन और जलवायु तथा आपदा जोखिम से जुड़ी तैयारी को अधिक सक्षम बनाती है।

प्रतिकूल परिस्थितियों के अनुकूल रहने वाली आधारभूत संरचना, व्यापक जोखिम आकलन और डिजिटल तकनीक को शहरी योजना में जोड़ने जैसे कदम वास्तव में इस महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रतिनिधित्व करते हैं कि कैसे शहर बढ़ती जलवायु चुनौतियों के बीच स्थायी रूप से विकास कर सकते हैं।

मौसम की चरम स्तर की घटनाओं के कई बार होने और बेहद गंभीर होने की वजह से यह जरूरी है कि हम शहरों को इस तरह डिजाइन करें कि वे न केवल ऐसी विपरीत परिस्थितियों का सामना कर पाएं बल्कि इसमें वे मजबूती से टिके रहते हुए पनपते रहें। इस तरह की समग्र रणनीति, तात्कालिक असुरक्षा को दूर करने के साथ ही लंबी अवधि में शहरी क्षेत्रों को विपरीत परिस्थितियों में टिके रहने के अनुकूल बनाए जाने के साथ ही आर्थिक स्थिरता और सामाजिक समानता को बढ़ावा देती है।

शहर, सभी निवासियों विशेषतौर पर सबसे कमजोर वर्ग की सुरक्षा और उनके कल्याण को प्राथमिकता देने के साथ ही डेटा तक पहुंच बढ़ाने और विश्लेषण के लिए अत्याधुनिक तकनीक का लाभ उठाने के साथ ही वृद्धि और नवाचार के लिए संभावित खतरे को अपने अवसर में बदल सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन और आपदा के अनुकूल शहरी विकास का अभियान तत्काल जरूरत के प्रति दिखाई गई प्रतिक्रिया है और यह सुरक्षित, समावेशी और टिकाऊ शहरी भविष्य बनाने की दिशा में एक दूरदर्शी कदम है।

(कपूर इंस्टीट्यूट फॉर कंपेटटिवनेस इंडिया के अध्यक्ष तथा यूएसएटीएमसी, स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी के लेक्चरर और देवरॉय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष हैं।)

First Published - July 31, 2024 | 9:04 PM IST

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