facebookmetapixel
GST में सुधारों से अर्थव्यवस्था को मिलेगी गति, महंगाई बढ़ने का जोखिम नहीं: सीतारमणइजरायल के वित्त मंत्री बेजालेल स्मोटरिच 8 सितंबर को भारत आएंगे, दोनों देशों के बीच BIT करार हो सकता है फाइनलGold Outlook: हो जाए तैयार, सस्ता हो सकता है सोना! एक्सपर्ट्स ने दिए संकेतVedanta ने JAL को अभी ₹4,000 करोड़ देने की पेशकश की, बाकी पैसा अगले 5-6 सालों में चुकाने का दिया प्रस्ताव1 करोड़ का घर खरीदने के लिए कैश दें या होम लोन लें? जानें चार्टर्ड अकाउंटेंट की रायदुनियाभर में हालात बिगड़ते जा रहे, निवेश करते समय….‘रिच डैड पुअर डैड’ के लेखक ने निवेशकों को क्या सलाह दी?SEBI की 12 सितंबर को बोर्ड मीटिंग: म्युचुअल फंड, IPO, FPIs और AIFs में बड़े सुधार की तैयारी!Coal Import: अप्रैल-जुलाई में कोयला आयात घटा, गैर-कोकिंग कोयले की खपत कमUpcoming NFO: पैसा रखें तैयार! दो नई स्कीमें लॉन्च को तैयार, ₹100 से निवेश शुरूDividend Stocks: 100% का तगड़ा डिविडेंड! BSE 500 कंपनी का निवेशकों को तोहफा, रिकॉर्ड डेट इसी हफ्ते

बैंकिंग साख: बैंकों के लिए ‘कासा’ है बेहद खास, शुद्ध ब्याज मार्जिन का नीचे खिसकना अच्छा नहीं

बैंकिंग कारोबार में जमाकर्ताओं द्वारा बैंकों में रखी जाने वाली रकम महत्त्वपूर्ण होती है। सभी बैंक जमा पर ब्याज कम और एनआईएम ऊंचा रखना चाहते हैं।

Last Updated- November 02, 2023 | 7:59 AM IST
मजबूत बैंकिंग जरूरी, Strong banking is necessary

विश्लेषक बैंकों के बहीखाते में कुछ विशेष मानकों पर अधिक गौर करते हैं। अधिकांश बैंकों की शुद्ध ब्याज आय (एनआईआई) बढ़ रही है और ऋण खाते में फंसे ऋण का अनुपात कम हो रहा है। यह अच्छा संकेत है मगर चालू एवं बचत खाते (कासा) में कमी और इसके परिणामस्वरूप शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) का नीचे खिसकना अच्छी बात नहीं है। बैंकिंग कारोबार में जमाकर्ताओं द्वारा बैंकों में रखी जाने वाली रकम महत्त्वपूर्ण होती है। सभी बैंक जमा पर ब्याज कम और एनआईएम ऊंचा रखना चाहते हैं।

एनआईएम और स्प्रेड दो प्रमुख मानदंड होते हैं, जो किसी बैंक की परिचालन क्षमता का द्योतक होते हैं। वैसे एनआईएम और स्प्रेड समान माने जाते हैं और अक्सर एनआईएम का इस्तेमाल स्प्रेड के संदर्भ में भी होता है। मगर इन दोनों में थोड़ा अंतर है। एनआईएम की गणना किसी बैंक की शुद्ध ब्याज आय को इसकी औसत ब्याज अर्जित करने वाली परिसंपत्तियों से विभाजित कर की जाती है। स्प्रेड परिसंपत्तियों पर प्रतिफल और देनदारियों की लागत के बीच अंतर या ब्याज आय और ब्याज व्यय के बीच परिसंपत्तियों के प्रतिशत के रूप में अंतर है। एनआईएम शुद्ध ब्याज स्प्रेड से कम या अधिक रह सकता है।

ब्याज दरों में इजाफा या इनमें कमी का असर किसी बैंक के पूरे ऋण खाते पर तत्काल पड़ता है क्योंकि उसके संपूर्ण ऋण खाते पर लागत बदल जाती है। मगर जमा रकम के मामले में यह बात लागू नहीं होती है और नई दरें तभी लागू होती हैं जब जमा रकम परिपक्व होती है या नई जमा रकम आती है।

बैंक कासा को बेहद खास मानते हैं क्योंकि यह जमा पर लागत कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कासा में ‘का’ चालू खाते के लिए आता है जिसका इस्तेमाल मुख्य रूप से कंपनियां, सार्वजनिक उद्यम और उद्यमी करते हैं। ऐसे ग्राहक प्रतिदिन कई लेनदेन करते हैं और वे कितनी भी रकम कई बार निकाल सकते हैं। बैंक ज्यादातर चालू खाते में न्यूनतम रकम रखने के लिए कहते हैं।

चालू खाते में रकम आती-जाती रहती है इसलिए बैंक इस खाते का परिचालन करने के लिए कुछ निश्चित शुल्क लेते हैं। ऐसे खातों में रखी रकम पर बैंकों को कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है इसलिए एक तरह से ये उनके लिए निःशुल्क होती है। कासा में ‘सा’ का अभिप्राय बचत खाते से है। व्यक्ति एवं गैर-व्यावसायिक लेनदेन इसी खाते से होते हैं। बैंक सामान्य तौर पर इन खातों से निकासी की संख्या तय कर देते हैं और एक न्यूनतम रकम भी रखने पर जोर देते हैं। शून्य बैलेंस वाले खाते भी होते हैं।

वर्ष 2011 तक बचत खातों पर ब्याज का नियमन होता था। नियमन समाप्त होने के बाद भी अधिकांश बैंक 4 प्रतिशत ब्याज की पेशकश कर रहे थे, जो नियमन के दौरान न्यूनतम दर हुआ करती थी। सभी बैंक अपना कासा बढ़ाना चाहते हैं क्योंकि जमा देनदारियों में इसका अनुपात अधिक रहने से पूंजी पर लागत कम हो जाती है।

केवल एनआईएम अधिक रहने से कोई बैंक मुनाफा नहीं कमा सकता क्योंकि परिचालन व्यय एवं फंसे ऋणों के लिए प्रावधान एवं बट्टे खाते में गई रकम सहित ऋण पर ऊंची लागत एनआईएम के एक बड़े हिस्से में सेंध लगा देते हैं। बैंकों के लिए परिचालन लागत कम रखना एवं क्षमता बढ़ाना आवश्यक होता है। एनआईएम कम रहने के बाद भी बैंक मुनाफे में रह सकते हैं, बशर्ते वे अधिक फीस आय जुटा पाएं।

मगर ये सैद्धांतिक बाते हैं। आइए, भारतीय बैंकिंग प्रणाली की जमीनी सच्चाई का आकलन करते हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मई 2022 से फरवरी 2023 के बीच नीतिगत दर 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत कर दी है और इसकी प्रतिक्रिया में बैंकों ने भी ऋण पर ब्याज बढ़ा दिए हैं। शुरू में बैंक जमा दरें बढ़ाने में संकोच कर रहे थे मगर ऋण आवंटन की रफ्तार बढ़ाने के लिए उन्हें रकम की जरूरत हुई इसलिए उनके बीच अधिक से अधिक जमा लाने की होड़ बढ़ गई। इससे जमा रकम पर ब्याज दरें भी बढ़ गईं।

सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश बैंक एवं कुछ बड़े निजी बैंक बचत खाते पर अब भी 4 प्रतिशत ब्याज दे रहे हैं मगर कुछ दूसरे बैंकों ने बचत बैंक खाते पर ब्याज दरें बढ़ा दी हैं। सभी बैंकों ने सावधि जमा पर भी ब्याज दरें बढ़ा दी हैं। पिछले 18 महीनों में ज्यादातर जमा रकम पर ब्याज दरों में बदलाव हुए हैं और बैंक नई जमा रकम ऊंची ब्याज दरों की पेशकश कर रहे हैं, इसलिए उनके लिए पूंजी की लागत बढ़ रही है।

कुछ बचतकर्ताओं ने अपने बचत खाते से रकम निकाल कर फिक्स्ड डिपॉजिट में जमा कर दी है। इसका नतीजा यह हुआ है कि अधिकांश बैंकों का कासा अनुपात-कुल जमा के प्रतिशत के रूप में-नीचे आता जा रहा है। अगर हम सितंबर तिमाही में कुछ बैंकों के आंकड़ों पर विचार करें तो कासा में बड़ी गिरावट आई है।

एचडीएफसी लिमिटेड के साथ आने के बाद एचडीएफसी बैंक लिमिटेड का कासा कम हो गया है। जहां तक दूसरे बैंकों की बात है तो उनके ग्राहकों ने बचत खातों में जमा रकम फिक्स्ड डिपॉजिट में लगा दी हैं या अधिक प्रतिफल देने वाले अन्य अवसरों का लाभ उठा रहे हैं।

एक लघु वित्त बैंक का कासा अनुपात जून 2022 तिमाही में दर्ज 52 प्रतिशत से कम होकर सितंबर 2023 तिमाही में 34 प्रतिशत रह गया। इसी अवधि के दौरान एक नए निजी बैंक का कासा 43 प्रतिशत से कम होकर 39 प्रतिशत और एक पुराने निजी बैंक का 37 प्रतिशत से कम होकर 31 प्रतिशत रह गया। अब कासा की रकम बैंकों के लिए सस्ती भी नहीं रह गई है। कुछ बैंक तो बचत खाते पर 7.25-7.50 प्रतिशत तक ब्याज की पेशकश कर रहे हैं। बैंक चालू खाते में रखी रकम पर ब्याज की पेशकश नहीं कर सकते मगर एक निश्चित राशि के बाद कुछ रकम इन खातों से निकालकर सावधि जमा के रूप में रख दी जाती है। इन पर ग्राहकों को ब्याज मिलता है।

मगर तब भी कासा प्रत्येक बैंक के लिए अहमियत रखता है। इसका कारण यह है कि बैंकों को अपनी परिसंपत्तियों एवं देनदारियों को प्रबंधित करना होता है।

व्यवहारात्मक विश्लेषण के आधार पर कासा का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा स्थिर होता है और दीर्घ अवधि की परिसंपत्ति-देनदारी नियंत्रित करने में इनका इस्तेमाल होता है। इस तरह कासा परिसंपत्ति-देनदारी में अंतर को संतुलित करता है और आईआरआरआरबीबी (बैंकों के बहीखातों में ब्याज से जुड़े जोखिम) को कम करता है। इससे बैंकों की पूंजी की आवश्यकता भी कम हो जाती है। चूंकि, पूंजी जुटाना कासा की तुलना में अधिक महंगा होता है, इसलिए बैंक बचत खाते पर अधिक ब्याज देने से नहीं घबराते हैं।

First Published - November 1, 2023 | 11:22 PM IST

संबंधित पोस्ट