अगस्त में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने नीतिगत दर और अपने रुख दोनों में बदलाव नहीं किया था। लगातार 9वीं बार आरबीआई ने रीपो रेट 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित छोड़ दी थी। अब एमपीसी में तीन नए बाहरी सदस्य आए हैं। क्या नई एमपीसी से कोई नया रुझान सामने आएगा खासकर नीतिगत स्तर पर कोई बदलाव देखने को मिलेगा? दुनिया के दूसरे केंद्रीय बैंकों की बात करें तो उनके कदमों में भिन्नता दिखी है। सितंबर में अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व में प्रमुख ब्याज दर में 50 प्रतिशत कटौती कर सबको चौंका दिया। फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने भविष्य में दरों में और कटौती के संकेत दिए हैं, हालांकि काफी कुछ परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।
यूरोप में सितंबर में मुद्रास्फीति 2021 के मध्य से पहली बार 2 प्रतिशत से नीचे आ गई। माना जा रहा है कि यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ईसीबी) आने वाले समय में ब्याज दर और घटा सकता है। पिछले सप्ताह ईसीबी ने ब्याज दर 0.25 प्रतिशत घटा कर 3.5 प्रतिशत कर दी थी। माना जा रहा है कि बैंक ऑफ इंगलैंड (बीओई) भी नवंबर में ब्याज दर में कमी करेगा। सितंबर में बीओई ने ब्याज दर 5 प्रतिशत पर स्थिर रखी थी। तेजी से उभरते बाजारों की बात करें तो फिलीपींस और इंडोनेशिया में भी ब्याज दरें कम हुई हैं। चीन में पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने भी आरक्षित आवश्यकता अनुपात आधा प्रतिशत अंक कम कर दिया है। रूस और जापान और ब्राजील में भी ऊंची मुद्रास्फीति के बीच ब्याज दरों में कमी की गई है।
इस सप्ताह एमपीसी की बैठक शुरू हो रही है, ऐसे में आरबीआई से क्या उम्मीद की जा सकती है? खुदरा मुद्रास्फीति जुलाई में नरम होकर 3.6 प्रतिशत रह गई थी मगर अगस्त में यह थोड़ी बढ़कर 3.65 प्रतिशत पर पहुंच गई। यह अब भी आरबीआई द्वारा निर्धारित सहज लक्ष्य 4 प्रतिशत से नीचे ही है। जुलाई और अगस्त में मुद्रास्फीति के आंकड़ों में ऊंचे आधार प्रभाव का असर दिखा था। सितंबर में खुदरा मुद्रास्फीति कम से कम 5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया जा रहा है मगर यह आंकड़ा एमपीसी की बैठक संपन्न होने बाद जारी किया जाएगा।
चालू वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर सुस्त होकर 6.7 प्रतिशत रह गई। हालांकि, यह एक दशक में पहली तिमाही की औसत 6.4 प्रतिशत दर से अधिक है। सितंबर के शुरू में भारतीय उद्योग एवं वाणिज्य परिसंघ (सीआईआई) और भारतीय बैंक संघ (आईबीए) द्वारा आयोजित एक बैठक में आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था, ‘मुद्रास्फीति और आर्थिक वृद्धि में संतुलन बनता दिख रहा है।‘ दास ने उम्मीद जताई थी कि खाद्य मुद्रास्फीति में कमी आएगी जिसका मतलब यह निकाला गया कि आने वाले समय में यह अधिक अनुकूल हो जाएगी।
खुदरा मुद्रास्फीति को लेकर आरबीआई लगातार चिंतित रहा है। खाद्य वस्तुओं की कीमतों की हिस्सेदारी 46 प्रतिशत तक होती है। आर्थिक समीक्षा के बाद यह बहस तेज हो गई है कि मुद्रास्फीति की गणना करते वक्त खाद्य वस्तुओं पर विचार किया जाए या नहीं। इसका कारण यह है कि आपूर्ति व्यवस्था में होने वाली उठापटक मौद्रिक नीति से ठीक नहीं की जा सकती। इस बीच, प्रमुख मुद्रास्फीति वर्ष 2012 से अपने निचले स्तर के इर्द-गिर्द रही है। प्रमुख मुद्रास्फीति में खाद्य वस्तुएं एवं तेल शामिल नहीं होती हैं।
इस साल मॉनसून में सामान्य से 7.6 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई है जिसके बाद उम्मीद की जा रही है कि खाद्य वस्तुओं की कीमतें नरम होंगी। दूसरी तरफ प्रमुख मुद्रास्फीति में भी धीरे-धीरे तेजी आने की बात कही जा रही है। वैश्विक स्तर पर मांग कमजोर पड़ने से जुलाई-सितंबर तिमाही में कच्चे तेला का दाम 17 प्रतिशत तक फिसल गया था। मगर अब इजरायल पर ईरान के मिसाइल हमले के बाद इसमें फिर तेजी आने लगी है। इन घटनाक्रम को देखते हुए कई लोगों को लगता है कि इस सप्ताह एमपीसी ब्याज दरों पर यथास्थिति बनाए रखेगी मगर मौद्रिक नीति पर इसका रुख ‘तटस्थ’ रह सकता है और इसका नजरिया अधिक सकारात्मक रहेगा।
हालांकि, कई मोर्चों पर विभिन्न प्रकार की अनिश्चितताओं को देखते हुए अगर आरबीआई ‘देखो और इंतजार करो’ की नीति अपनाता है तो मुझे कोई हैरानी नहीं होगी। आरबीआई लगातार जोर देता रहा है कि नीतिगत दरों पर निर्णय यह आंतरिक हालात को देखकर लेगा न कि इस पर ध्यान देगा कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व क्या कर रहा है। दिलचस्प बात है कि अमेरिका में ब्याज दर में आधा प्रतिशत कमी के बावजूद फिलहाल अमेरिका और भारत में नीतिगत दर में अंतर दीर्घ अवधि के औसत से काफी कम है।
मौद्रिक नीति के मोर्चे पर ढील से अधिक चीन में वित्तीय प्रोत्साहनों पर अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिए क्योंकि ये जिंसों की कीमतों पर असर डाल सकते हैं। इस साल (हाल में उठाए गए उपाय सहित) चीन में कुल 1.07 लाख करोड़ डॉलर के वित्तीय प्रोत्साहन जारी किए गए हैं। डॉयचे बैंक की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार यह रकम 2024 में चीन के जीडीपी का 6 प्रतिशत के बराबर है।
मॉनसून सामान्य से अधिक जरूर रहा है मगर देश में वर्षा का वितरण एक समान नहीं रहा है और खाद्य मुद्रास्फीति में इजाफे के संकेत भी मिलने शुरू हो हैं।
रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध और पश्चिम एशिया में तनाव से दुनिया में हालात और बिगड़ रहे हैं। यानी आरबीआई दिसंबर तक हालात साफ होने तक इंतजार करे तो किसी को इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
अगस्त में मौद्रिक नीति समीक्षा में आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए वृद्धि और मुद्रास्फीति के अनुमानों में कोई बदलाव नहीं किए थे, बस इन्हें थोड़ा अधिक तर्कसंगत बनाया गया था। उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 2025 के लिए आर्थिक वृद्धि का अनुमान 7.3 प्रतिशत था मगर पहली तिमाही के लिए अनुमान 7.3 प्रतिशत से घटाकर 7.1 प्रतिशत कर दिया गया।
इसी तरह, खुदरा मुद्रास्फीति का अनुमान 4.5 पर स्थिर रखा गया मगर दूसरी तिमाही के लिए इसे 3.8 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.4 प्रतिशत और तीसरी तिमाही के लिए 4.6 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.7 प्रतिशत कर दिया गया। चौथी तिमाही के लिए इसका अनुमान 4.5 प्रतिशत से घटाकर 4.3 प्रतिशत कर दिया गया।
क्या इन अनुमानों में कोई बदलाव होंगे? इस बात की संभावना कम ही है कि मुद्रास्फीति के अनुमान में संशोधन होंगे। आर्थिक वृद्धि को लेकर आरबीआई दूसरे संस्थानों की तुलना में अधिक उत्साहित दिख रहा है। मगर इन दोनों अनुमानों में संशोधन करने से पहले आरबीआई दिसंबर तक इंतजार कर सकता है। आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति का समीकरण जरूर बदल रहा है मगर आरबीआई किसी तरह की जल्दबाजी दिखाने से परहेज करेगा।
(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक में वरिष्ठ सलाहकार हैं।)