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बैंकिंग साख: आपका क्रेडिट स्कोर वित्तीय सेहत पर कैसे डालता है असर? RBI के नए निर्देश से सभी को फायदा

आरबीआई का नया निर्देश 1 जनवरी, 2025 या इससे पहले ही प्रभावी हो जाएगा। यह नया प्रावधान कर्जधारकों और कर्जदाताओं दोनों के लिए फायदेमंद साबित होगा।

Last Updated- September 06, 2024 | 9:18 PM IST
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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों को ग्राहकों की साख की जानकारी (क्रेडिट रिपोर्ट) हरेक 15 दिन या उससे भी कम अंतराल पर देने का निर्देश दिया है। फिलहाल बैंक एवं वित्तीय संस्थान मासिक आधार पर क्रेडिट रिपोर्ट क्रेडिट ब्यूरो को सौंपते हैं। आरबीआई का नया निर्देश 1 जनवरी, 2025 या इससे पहले ही प्रभावी हो जाएगा। यह नया प्रावधान कर्जधारकों और कर्जदाताओं दोनों के लिए फायदेमंद साबित होगा।

ग्राहकों को यह फायदा होगा कि जब वे कोई ऋण चुकता कर देंगे तो इसकी जानकारी अधिक तेजी से क्रेडिट ब्यूरो कंपनियों के पास अपडेट होगी। जब कोई कर्जदार आवास ऋण या कार ऋण महीने के शुरू में चुका देगा तो उसके क्रेडिट स्कोर में यह बात दिखने में अगले महीने तक इंतजार नहीं करना होगा। ऋण बंद होने के बाद उसका क्रेडिट स्कोर बढ़ जाएगा। यह जानकारी महीने के मध्य में ही अद्यतन हो जाएगी और उसके क्रेडिट स्कोर में भी यह दिखने लगेगी।

कर्जदाताओं की तरफ से कम एवं नियमित अंतराल पर जानकारियां क्रेडिट ब्यूरो को सौंपने से क्रेडिट स्कोर तेजी से अद्यतन होगा। जानकारियां तेजी से सौंपने से उन्हें साख से जुड़े जोखिम बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में मदद मिलेगी।

अगले वर्ष जनवरी से कर्जदाताओं को हरेक 15 दिन या पाक्षिक आधार पर संबंधित पखवाड़ा समाप्त होने के सात दिन के भीतर क्रेडिट ब्यूरो को क्रेडिट रिपोर्ट सौंपना होगा। अगर कोई कर्जदाता इस ऐसा नहीं करता है तो क्रेडिट ब्यूरो कंपनियां इसकी जानकारी आरबीआई को देंगी।

यह पहला मौका नहीं है जब आरबीआई साख से जुड़ी जानकारियां अपडेट करने में बैंकों और क्रेडिट ब्यूरो द्वारा होने वाली देरी एवं कमियों को दूर करने का प्रयास कर रहा है। अब आंकड़ों में अनियमितताओं की शिकायतों का समाधान 15 दिन के भीतर करना होगा। इसमें देरी होने पर शिकायतकर्ता को संबंधित शिकायत का समाधान होने तक देरी के लिए प्रतिदिन के हिसाब से 100 रुपये मुआवजे के रूप में मिलेंगे।

कर्जदाताओं को त्रुटियां दूर करने के बाद सही जानकारी क्रेडिट ब्यूरो को 21 दिन के भीतर भेजनी होगी। कर्जदाताओं और क्रेडिट ब्यूरो दोनों के पास संयुक्त रूप से शिकायत दूर करने के लिए 30 दिन का समय होगा।

यह नई प्रणाली अप्रैल के अंतिम सप्ताह में प्रभाव में आई। भारत में चार क्रेडिट ब्यूरो हैं। ये चार ट्रांसयूनियन सिबिल लिमिटेड, एक्सपेरियन क्रेडिट इन्फॉर्मेशन कंपनी ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, इक्वीफैक्स क्रेडिट इन्फॉर्मेशन सर्विसेस प्राइवेट लिमिटेड और सीआरआईएफ हाई मार्क क्रेडिट इन्फॉर्मेशन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड हैं।

डिजिटल माध्यम से उधार देने की शुरुआत जोर पकड़ने के बाद ग्राहकों के अनुकूल प्रक्रिया, बाय-नाऊ- पे लेटर (बीएनपीएल) की शुरुआत और छोटे आकार के ऋण की सुविधा के बाद कर्जधारकों के ऋण से जुड़ी जानकारियां तेजी से बदल सकती हैं। साख की जांच, ऋण आवंटन, पुनर्भुगतान और ऋण बंद करने आदि सभी प्रक्रियाएं तेजी से पूरी हो रही हैं।

मासिक क्रेडिट रिपोर्ट में सभी जानकारियां कभी-कभी नहीं शामिल हो पाती हैं जिससे किसी कर्जधारक की साख पर असर होता है। कम अंतराल पर जानकारियां अद्यतन होने से न केवल उपभोक्ताओं को मदद मिलेगी बल्कि कर्जदाताओं को भी सही निर्णय लेने में आसानी होगी।

हालांकि, यह केवल समस्या के एक हिस्से का समाधान करने का प्रयास है। साख से जुड़ी जानकारियां जुटाने के ढांचे में भी कई खामियां हैं। एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा विशिष्ट पहचान दस्तावेज (यूनिक आइडेंटिफायर) से जुड़ा है। सभी क्रेडिट ब्यूरो कंपनियां विभिन्न कर्जदाताओं जैसे बैंकों एवं गैर-बैंकों से कर्जधारकों के द्वारा लिए गए ऋण जुड़ी जानकारियां जुटाती हैं।

क्रेडिट इन्फॉर्मेशन ब्यूरो जानकारियों की खोज एवं मिलान के लिए प्रायिक विज्ञान (प्रोबेबिलिस्टिक साइंस) का इस्तेमाल करती हैं। यह प्रायिक विज्ञान जनसांख्यिकीय या व्यक्तिगत पहचान से जुड़ी जानकारियों पर निर्भर रहता है। ये जानकारियां देश में प्रचलित विभिन्न दस्तावेज के साथ साझा की जाती हैं। एक विशिष्ट पहचान नहीं होने से पहचान के कई दस्तावेज किसी कर्जधारक से जुड़ी जानकारियां जुटाने में इस्तेमाल होते हैं। इससे खोज करना और जानकारियों का मिलान करना एक बड़ी चुनौती साबित होती है।

कर्जदाता एक विश्वसनीय क्रेडिट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट तैयार करने के लिए जिन लोकप्रिय दस्तावेज का इस्तेमाल करते हैं उनमें स्थायी खाता संख्या (पैन), वोटर आईडी, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस होते हैं। मगर इन दस्तावेज के दोहराव, इनके नवीकरण के समय इनमें बदलाव, कर्जधारक का पता बदलना आदि से स्थिति और जटिल हो जाती है।

पहले कर्जदाता आधार पर निर्भर रहते थे मगर 2019 में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद अब यह अनिवार्य नहीं रह गया है। कर्जदाताओं को ग्राहकों का आधार अपने डेटाबेस में सहेज कर रखने की अनुमति नहीं है और न ही वे क्रेडिट ब्यूरो को ही इसे सौंप सकते हैं। आधार एक विशिष्ट पहचान है जो कभी नहीं बदलता है। पहचान के रूप में इसका सबसे अधिक इस्तेमाल होता है। यह सभी भारतीय नागरिकों के लिए एक विशिष्ट पहचान है।

आरबीआई ने ‘नो योर कस्टमर’ पर अपने प्रमुख दिशानिर्देश में भी जांच-पड़ताल के लिए आधार को एक प्रमुख पहचान दस्तावेज के रूप में परिभाषित किया है। खोज एवं मिलान के प्रायिक विज्ञान को अपूर्ण और त्रुटिपूर्ण जानकारियों के बीच अनिवार्य रूप से संतुलन स्थापित करना चाहिए। कर्जदाता संस्थानों को अपनी सेवाएं लगातार देने के लिए एक क्रेडिट ब्यूरो के पास एक सार्वभौम एवं स्वीकार्य विशिष्ट पहचान दस्तावेज अवश्य उपलब्ध होना चाहिए।

ग्राहकों को जागरूक बनाना और उन्हें वित्तीय एवं अपनी साख मजबूत रखने के तरीके बताना काफी मददगार साबित हो सकते हैं। इससे न केवल एक बड़ी आबादी तक ऋण आवंटन बढ़ाने में आसानी होगी बल्कि वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण साबित होगा।

इन दिनों कई कर्जदाताओं के पास लोकप्रिय कंज्यूमर फेसिंग मोबाइल ऐप्लिकेशन हैं या ऋण देने के लिए वे दूसरे कर्जदाता संस्थानों के साथ हाथ मिलाते हैं। ऋण वास्तविक पंजीकृत वित्तीय संस्थान की क्रेडिट इन्फॉर्मेशन में दिखते हैं। मगर किसी लोकप्रिय फ्रंट-ऐंड ऐप में के मामले में (सह-उधारी के मामले में) ऐसे पंजीकृत वित्तीय संस्थानों की संख्या एक से अधिक भी हो सकती है।

ग्राहकों को यह बताया जाना चाहिए कि उनकी साख उनकी वित्तीय सेहत के लिए कितनी महत्त्वपूर्ण है। ग्राहकों को यह भी बखूबी मालूम होना चाहिए कि एक ऋण लेने और इन्हें समय पर चुकाने यानी एक मजबूत साख रखने के क्या फायदे होते हैं।

(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं)

First Published - September 6, 2024 | 9:11 PM IST

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