एक के बाद एक बजट में परमाणु ऊर्जा का लगातार उल्लेख इस बात का प्रमाण है कि सरकार इसके लिए काफी उत्साहित है। वित्त वर्ष 2024-25 के पूर्ण बजट में छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर यानी एसएमआर (300 मेगावॉट से कम क्षमता) पर जोर देते हुए कहा गया था कि इनके शोध एवं विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी होनी चाहिए। इस बार के बजट प्रस्तावों में उसी को आगे बढ़ाते हुए 2047 तक 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा उत्पन्न करने की बात कही गई है और यह भी कहा गया है कि 2033 तक कम से कम पांच छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर तैयार होकर काम कर रहे होंगे। यह साहसिक कदम है क्योंकि दुनिया भर में ऐसे छोटे रिएक्टर बनाए तो जा रहे हैं मगर अभी यह नहीं पता कि वे लंबे समय तक आर्थिक रूप से कारगर होंगे भी या नहीं।
दुनिया निजी क्षेत्र के छोटे माड्यूलर रिएक्टरों की ओर बढ़ रही है और नीति आयोग तथा परमाणु ऊर्जा विभाग की 2023 की रिपोर्ट में भी इसकी सिफारिश की गई थी। अमेरिका में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के कारण ऊर्जा की बढ़ती मांग पूरी करने के लिए इन छोटे रिएक्टरों को रामबाण माना जा रहा है। यूं भी छोटे माड्यूलर रिएक्टरों को कार्बन मुक्त ऊर्जा वाले भविष्य के लिए जरूरी माना जा रहा है। रूस, अमेरिका, कनाडा, अर्जेंटीना, चीन, दक्षिण कोरिया और अन्य देशों में उन्हें या तो लगाया जा रहा है या उनकी योजना बन रही है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) का कहना है कि दुनिया भर में इस समय छोटे वाणिज्यिक माड्यूलर रिएक्टरों की 80 से ज्यादा डिजाइन तैयार हो रही हैं और इन सभी के उत्पादन तथा इस्तेमाल अलग-अलग होंगे। सिलिकन वैली के एआई तकनीकी दिग्गज खास तौर पर परमाणु ऊर्जा और छोटे रिएक्टरों के हिमायती हैं और इन्हें बिजली की बढ़ती मांग का हल मानते हैं।
भारत में अभी करीब 8.18 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा तैयार होती है, जो अधिक नहीं है। इसकी एक वजह अमेरिका तथा अन्य विकसित देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध भी हैं। ये देश विकासशील देशों को परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए भी तकनीक तथा कच्चा माल नहीं देते। मगर एआई तथा क्रिप्टोकरेंसी के कारण ऊर्जा की मांग में जबरदस्त इजाफे के कारण यह रुख बदला है। रुख बदलने की एक वजह छोटे माड्यूलर रिएक्टर बनाने वाले उद्यमी भी हैं, जो नए बाजार तलाश रहे हैं। इसलिए भारत को 2033 तक पांच छोटे रिएक्टर तैयार कर चलाने में दिक्कत नहीं होगी चाहे वे स्वदेशी न होकर लाइसेंस वाली तकनीक पर ही क्यों न चल रहे हों।
निजी क्षेत्र को शामिल करने के लिए सरकार परमाणु ऊर्जा अधिनियम और परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम में संशोधन की योजना बना रही है ताकि हर किसी के लिए नियामकीय झंझटों में फंसे बगैर छोटे माड्यूलर रिएक्टरों की तकनीक खरीदना और उन्हें चलाना आसान हो जाए। मगर यहीं पर चिंता शुरू होती हैं।
छोटे माड्यूलर रिएक्टर का उत्पादन अब पुराने और बड़े परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित और किफायती है क्योंकि पुराने रिएक्टरों में दुर्घटनाएं हो जाती थीं। थ्री माइल आइलैंड, चेर्नोबिल और फुकुशिमा जैसी दुर्घटनाओं के कारण ही परमाणु ऊर्जा से मुंह मोड़ा जाने लगा था। दुर्घटनाओं के अलावा परमाणु संयंत्र बनाने और संभालने का ऊंचा खर्च तथा परमाणु कचरा निपटाने की चुनौती जैसे कारणों से भी दुनिया दूसरे विकल्प टटोल रही थी।
आज छोटे माड्यूलर रिएक्टर कम पूंजी खाने वाले माने जाते हैं और ज्यादा सुरक्षित होने का दावा भी करते हैं मगर ये फायदे अभी नजर नहीं आए हैं। आकार और स्तर में छोटे होने के कारण उनमें दुर्घटना होने पर भी असर छोटे इलाके तक ही रहना चाहिए और कम आबादी पर उसका असर होना चाहिए। मगर इसकी न तो गारंटी है और न ही यह बात साबित हुई है। हकीकत यह है कि छोटे माड्यूलर रिएक्टर जैसे-जैसे फैलेंगे और परमाणु ऊर्जा क्षमता जैसे-जैसे बढ़ेगी वैसे-वैसे ही दुर्घटनाओं की आशंका और दूसरे जोखिम भी बढ़ेंगे।
इससे भी अहम बात परमाणु कचरा है, जिससे निपटने का कोई संतोषजनक समाधान अभी तक नहीं मिला है। आगे जाकर यही सबसे बड़ी चुनौती हो सकता है। जब छोटे माड्यूलर रिएक्टर बढ़ेंगे तो परमाणु कचरे का अंबार भी लगेगा। चूंकि इससे निपटने का तरीका अभी दुनिया को नहीं मिला है, इसलिए एक-डेढ़ दशक में यह विकराल समस्या बन सकती है।
आखिर में यह जोखिम जो हमेशा बना रहेगा कि तैयार किया गया कुछ परमाणु ईंधन ऐसे कामों में लगा दिया जाए, जिनका शांति से कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए कड़े सुरक्षा मानकों, निगरानी और नियमन की जरूरत है। छोटे माड्यूलर रिएक्टरों की तकनीक तथा डिजाइन तेजी से विकसित हो रहे हैं और कार्बन से पीछा छुड़ाना चाह रही दुनिया के लिए यह कई मायनों में व्यावहारिक विकल्प हो सकता है। किंतु ये रिएक्टर रामबाड़ नहीं हैं और न ही परमाणु ऊर्जा को बड़ पैमाने पर अपनाने से पैदा होने वाले खतरों को कमतर मानना चाहिए।
देश के नीति निर्माताओं को सुनिश्चित करना होगा कि कड़े और सोच-समझकर बनाए गए नियम लागू किए जाएं तथा सुरक्षा उपायों पर भी पूरा ध्यान दिया जाए। इसके साथ ही मजबूत निगरानी व्यवस्था हो, जिसमें प्रशिक्षित कर्मचारी तैनात किए जाएं। इतना ही नहीं निगरानी और नियामकीय प्राधिकार को खतरा पता चलने पर फौरन हरकत में आने के लिए समुचित अधिकार भी दिए जाने चाहिए।
परमाणु ऊर्जा को अपनाने की प्रक्रिया तेज करने तथा इसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयास सही दिशा में हैं। किंतु जरूरत इस बात की है कि प्रोत्साहन के साथ सुरक्षा पक्की करने के लिए नियामकीय उपाय भी लागू किए जाएं। अंत में सरकार को दुनिया भर में छोटे माड्यूलर रिएक्टरों के विकास पर नजर रखनी चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि इस क्षेत्र में और भी जानकारी तथा उन्नति होने पर भारत भी तेजी से कदम उठाए।
(लेखक बिज़नेस वर्ल्ड और बिज़नेस टुडे के संपादक रह चुके हैं और संपादकीय परामर्श फर्म प्रोजैक व्यू के संस्थापक हैं)