करीब 500 सूचीबद्ध कंपनियों के चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च 2023) के नतीजों का परीक्षण करें तो यह संकेत मिलता है कि मुनाफे में कमी आई है। हालांकि कंपनियों का राजस्व बढ़ा है और खपत में सुधार के भी शुरुआती संकेत नजर आ रहे हैं। मुद्रास्फीति के कारण लागत में इजाफा हुआ है। फाइनैंसिंग की बढ़ी हुई लागत और वेतन का बढ़ता हुआ बिल भी मार्जिन को प्रभावित कर रहे हैं। इस समस्त नमूने के लिए परिचालन राजस्व सालाना आधार पर 14 फीसदी बढ़ा।
परंतु परिचालन व्यय में भी 13 फीसदी का इजाफा हुआ जबकि कर्मचारियों से संबंधित लागत 23 फीसदी तथा ब्याज लागत 37 फीसदी बढ़ी। परिचालन मुनाफा 16 फीसदी बढ़ा लेकिन फाइनैंसिंग की बढ़ी हुई लागत की वजह से शुद्ध मुनाफा 0.7 फीसदी की वृद्धि के साथ कमोबेश स्थिर बना रहा।
रिफाइनरी, बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों जैसे उतार-चढ़ाव वाले क्षेत्रों को इससे बाहर कर दिया जाए तो नतीजे और खराब नजर आते हैं। उस स्थिति में राजस्व में 12 फीसदी का इजाफा है लेकिन परिचालन मुनाफा 4 फीसदी कम जबकि शुद्ध मुनाफा 11 फीसदी कम है। इसके अलावा ब्याज लागत 39 फीसदी बढ़ जाती है। एक तरह से देखा जाए तो यह आर्थिक हालात का सामान्यीकरण है। पिछले वित्त वर्ष में कॉर्पोरेट मुनाफा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद के 4.3 फीसदी के बराबर हो गया था जो अनुपात के हिसाब से एक दशक का उच्चतम स्तर था।
ऐसा कम मुद्रास्फीति, कर कटौती और लागत कटौती के मिश्रण की बदौलत हुआ। ब्याज-मुद्रास्फीति चक्र वित्त वर्ष 2023 में स्पष्ट रूप से पलट गया। केंद्रीय बैंक ने मई 2022 में दरें बढ़ाना शुरू कर दिया था और कंपनियों के पास कटौती की गुंजाइश नहीं है। दरों में इजाफे के बावजूद चौथी तिमाही में बैंकों का प्रदर्शन मजबूत रहा। 25 सूचीबद्ध बैंकों के नमूने में ऋण विस्तार 32 फीसदी हो गया और शुल्क आधारित आय में 24 फीसदी इजाफा हुआ। बहरहाल, ब्याज लागत में भी 36 फीसदी का इजाफा हुआ। इस बीच ऋण-जमा अनुपात में सख्ती आई और बैंकों ने फंडिंग के लिए अधिक भुगतान करना शुरू कर दिया।
इस क्षेत्र का समायोजित शुद्ध मुनाफा 32 फीसदी बढ़ा। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के शुद्ध मुनाफे में 35 फीसदी का इजाफा हुआ। फाइनैंसिंग की उच्च लागत से संकेत मिलता है कि जमा दरों में इजाफा हुआ है। इसका अर्थ यह हुआ कि मौद्रिक हालात में और सख्ती आएगी क्योंकि बैंक हमेशा अपनी जमा दरें थोड़ा ठहरकर बढ़ाते हैं। खपत के क्षेत्र में वाहन और दैनिक उपयोग की उपभोक्ता वस्तुओं पर विचार किया जाता है। त्वरित खपत वाली उपभोक्ता वस्तुओं (एफएमसीजी) की शुद्ध बिक्री 22 फीसदी बढ़ी, ब्याज, कर, मूल्यह्रास और परिशोधन से पहले आय (एबिटा) में 35 फीसदी का इजाफा हुआ और शुद्ध मुनाफा 36 फीसदी बढ़ा जबकि ब्याज लागत 39 फीसदी बढ़ी।
वाहन क्षेत्र में शुद्ध बिक्री 18 फीसदी बढ़ी और एबिटा में 31 फीसदी बढ़ोतरी हुई। वहीं शुद्ध मुनाफा 29 फीसदी बढ़ा। प्रमुख दोपहिया वाहन निर्माताओं की बिक्री और मुनाफा दोनों बढ़े। इससे खपत में सुधार का संकेत मिलता है।
सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के नतीजे भी कॉर्पोरेट मशविरों के अनुरूप ही रहे जो सतर्कता से लेकर निराशा के अनुमान जता रहे थे। वैश्विक वृद्धि में मंदी ने यहां भी वृद्धि और मार्जिन को प्रभावित किया है। सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की अधिकांश दिग्गज कंपनियों ने नतीजे घोषित कर दिए हैं।
डॉलर के स्थिर मूल्य पर राजस्व में 17 फीसदी वृद्धि हुई है और शुद्ध मुनाफा 7 फीसदी बढ़ा है। सरकारी क्षेत्र के अधिकांश उपक्रम और औषधि क्षेत्र की कई प्रमुख कंपनियों ने अभी तक नतीजे घोषित नहीं किए हैं। उनके आने के बाद कुछ परिवर्तन नजर आ सकता है। बहरहाल, ऐसा प्रतीत होता है कि उपभोक्ता रुझान में सुधार नजर आ सकता है लेकिन मुद्रास्फीति और उच्च ब्याज लागत का दोहरा बोझ मुनाफे पर असर डालना शुरू कर रहा है।