Arbitrage funds in 2024: मार्केट में फिलहाल जबरदस्त उठापटक (volatility) देखने को मिल रही है। इस उठापटक के बीच निवेशको में घबराहट का माहौल है। जानकारों के अनुसार अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों को लेकर ग्लोबल इकॉनमी में बनी अनिश्चितता के बीच घरेलू बाजार निकट भविष्य में भी वोलेटाइल रह सकता है। इस बात के संकेत इंडिया वोलैटिलिटी इंडेक्स यानी India VIX (India Volatility Index) से भी मिल रहे हैं। India VIX इस साल अभी तक तकरीबन 14 फीसदी मजबूत हुआ है। फिलहाल यह 16 के ऊपर है। यह इंडेक्स नियर टर्म में मार्केट में संभावित उतार- चढ़ाव को दर्शाता है।
इस वोलैटिलिटी का कैसे उठाएं फायदा?
बाजार में जारी इस उठापटक के दौर में निवेशकों को घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि उनके लिए निवेश का एक ऐसा भी विकल्प है जहां वोलैटिलिटी का इस्तेमाल रिटर्न जेनरेट करने के लिए किया जाता है। यह विकल्प है- आर्बिट्राज फंड (Arbitrage Fund)। ये फंड हाइब्रिड म्युचुअल फंड कैटेगरी के तहत आते हैं।
2024 में इन फंडों ने किया 9 साल का सबसे बेहतर प्रदर्शन
आर्बिट्राज फंडों ने बीते साल यानी 2024 में 2016 के बाद सबसे ज्यादा रिटर्न दिया। वैल्यू रिसर्च के आंकड़ों के मुताबिक इस कैटेगरी के फंडों ने बीते साल औसतन 8 फीसदी का रिटर्न दिया। मार्केट को लेकर बने पॉजिटिव सेंटीमेंट, स्टॉक फ्यूचर्स को लेकर निवेशकों में जबरदस्त उत्साह और सितंबर के बाद आए भारी उतार-चढ़ाव की वजह से इन फंडों का प्रदर्शन इतना शानदार रहा। फ्यूचर्स रोलओवर के दौरान निवेशक बीते साल ज्यादा प्रीमियम देने से भी नहीं कतराए। उनके उत्साह का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2024 के दौरान स्टॉक फ्यूचर्स में ओपन इंटरेस्ट रिकॉर्ड 400 लाख करोड़ रुपये के लेवल को भी पार कर गया।
अन्य आंकड़े भी आर्बिट्राज फंड के प्रति निवेशकों की बढ़ती रुचि को दर्शाते हैं। इस कैटेगरी के फंडों का टोटल एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) दिसंबर 2024 में 1.96 लाख करोड़ रुपये के ऊपर चला गया। 2023 की तुलना में यह 46 फीसदी ज्यादा है। इन फंडों का एसेट अंडर मैनेजमेंट वर्ष 2023 में 1.34 लाख करोड़ रुपये दर्ज किया गया था। निवेशकों ने इन फंडों में 2024 के दौरान नेट 67,589.59 करोड़ रुपये डाले। जनवरी, फरवरी, अप्रैल, मई और जुलाई के दौरान तो नेट इनफ्लो 10 हजार करोड़ रुपये के लेवल को पार कर गया। हालांकि अक्टूबर के शानदार इनफ्लो के बाद नवंबर और दिसंबर में इन फंडों से निवेशकों ने पैसे निकाले।
टैक्स नियमों में बदलाव ने पहले बढ़ाया उत्साह लेकिन बाद में किया निराश
डेट फंड (debt funds) को लेकर टैक्स नियमों में किए गए बदलाव के बाद बीते कैलेंडर ईयर की पहली छमाही के दौरान निवेशक आर्बिट्राज फंडों को लेकर बेहद उत्साहित दिखे। बजट प्रावधानों के मुताबिक 1 अप्रैल 2023 से डेट फंड पर इंडेक्सेशन के फायदे के साथ लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन (LTCG) टैक्स के पुराने प्रावधान को हटा लिया गया है। मतलब डेट फंड से जो भी कैपिटल गेन होगा वह शार्ट-टर्म कैपिटल गेन माना जाएगा जो आपकी इनकम में जुड़ जाएगा और आपको अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स का भुगतान करना होगा। इन बदलावों के बाद टैक्स के मामले में आर्बिट्राज फंड डेट फंड के मुकाबले ज्यादा मुफीद हो गए।
लेकिन बजट 2024 में शार्ट-टर्म कैपिटल गेन टैक्स (STCG) रेट में 5 फीसदी का इजाफा किए जाने के बाद निवेशकों के लिए टैक्स के लिहाज से ये फंड उतने आकर्षक नहीं रह गए हैं। 23 जुलाई के बाद इन फंडों पर शार्ट-टर्म कैपिटल गेन टैक्स 20 फीसदी की दर से लग रहा है जबकि इससे पहले यह 15 फीसदी की दर से लगता था। इन फंडों में लोग आम तौर पर 6 महीने से साल भर के लिए निवेश करते हैं इसलिए ज्यादातर निवेशकों को रिडेम्प्शन के बाद शार्ट-टर्म कैपिटल गेन गैक्स चुकाना पडता है। लेकिन इसी अवधि के लिए निवेशक यदि डेट फंड में निवेश करते हैं तो उन्हें शार्ट-टर्म कैपिटल गेन टैक्स अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से चुकाना पड़ता है। इसका मतलब यह है कि टैक्स के मामले में आर्बिट्राज फंड डेट फंड के मुकाबले अब उन्हीं निवेशकों के लिए बेहतर हैं जो ऊपरी टैक्स ब्रैकेट (upper tax bracket) में आते हैं।
अब बात करते हैं इस फंड की।
क्या है आर्बिट्राज फंड?
बाजार में उतार-चढ़ाव के दौर में कम जोखिम उठाने वाले निवेशकों के लिए आर्बिट्राज फंड निवेश का एक बेहतर विकल्प है। ये हाइब्रिड फंड टैक्स ट्रीटमेंट के मामले में इक्विटी म्युचुअल फंड की कैटेगरी में आते हैं। मतलब इनमें कम से कम 65 फीसदी निवेश इक्विटी में होता है जबकि बाकी निवेश डेट और मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स में किया जाता है।
आर्बिट्राज फंड इक्विटी मार्केट के कैश और फ्यूचर (डेरिवेटिव) सेगमेंट में किसी शेयर की कीमत में अंतर का फायदा उठाकर रिटर्न जेनरेट करते हैं। शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव वाले दौर में दोनों सेगमेंट के बीच कीमतों का अंतर यानी स्प्रेड (spread) बढ़ जाता है। जब बाजार में वोलैटिलिटी (उतार-चढ़ाव) बढ़ती है, तब ये फंड ज्यादा रिटर्न देते हैं लेकिन जब उतार-चढ़ाव कम होता है तो रिटर्न में भी कमी आती है।
आर्बिट्राज फंड कैसे करता है काम ?
इसमें एक सेगमेंट से कम कीमत पर शेयर खरीद कर दूसरे सेगमेंट में ज्यादा कीमत पर बेच दिया जाता है। इसे एक उदाहरण की मदद से समझा जा सकता है।
मान लीजिए किसी कंपनी के एक शेयर की कीमत कैश सेगमेंट में 100 रुपये है और फ्यूचर/डेरिवेटिव सेगमेंट में 105 रुपये है। इस कीमत पर (आर्बिट्राज) फंड मैनेजर कंपनी के 100 शेयर (100X100 =1,000 रुपये) 1,000 रुपये में कैश सेगमेंट में खरीदता है और 10,500 (105×100=10,500) रुपये में डेरिवेटिव सेगमेंट में बेच देता है। इस तरह से फंड मैनेजर को प्रति शेयर 5 रुपये का यानी कुल 500 रुपये का प्रॉफिट होता है। बशर्ते फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के एक्सपायरी के वक्त कैश और डेरिवेटिव सेगमेंट में शेयर की यही कीमत बनी रहे।
लेकिन मान लीजिए फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के एक्सपायरी के वक्त कैश सेगमेंट में शेयर की कीमत घटकर 95 रुपये और डेरिवेटिव सेगमेंट में 90 रुपये तक आ जाए। ऐसा होने पर कैश मार्केट में प्रति शेयर 5 रुपये यानी 500 रुपये का नुकसान होगा जबकि डेरिवेटिव सेगमेंट में प्रति शेयर 15 रुपये यानी कुल 1,500 रुपये का मुनाफा। यानी फंड मैनेजर को 1,000 रुपये का नेट मुनाफा होगा।
इस तरह आर्बिट्राज फंड कैश सेगमेंट और फ्यूचर सेगमेंट में कीमतों के बीच अंतर का फायदा उठाता है।
क्या है टैक्स प्रावधान?
ये फंड टैक्स ट्रीटमेंट के मामले में इक्विटी म्युचुअल फंड की कैटेगरी में आते हैं। इसलिए इस पर टैक्स भी इक्विटी की तरह ही लगता है। यहां हम इसके दोनों ऑप्शन ग्रोथ और डिविडेंड में टैक्स प्रावधान की बात करेंगे:
ग्रोथ ऑप्शन: एक साल से कम अवधि में अगर आप रिडीम करते हैं तो इनकम शार्ट-टर्म कैपिटल गेन मानी जाएगी और आपको 20 फीसदी (प्लस 4 फीसदी सेस) शार्ट-टर्म कैपिटल गेन टैक्स देना होगा। लेकिन अगर आप एक साल के बाद रिडीम करते हैं तो इनकम लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन मानी जाएगी और आपको सालाना 1.25 लाख रुपए से ज्यादा के कैपिटल गेन पर 12.5 फीसदी (प्लस 4 फीसदी सेस) लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स चुकाना होगा। सवा लाख रुपये से कम के कैपिटल गेन पर कोई टैक्स देय नहीं होगा। 23 जुलाई 2024 से पहले शार्ट-टर्म कैपिटल गेन टैक्स और लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स की दरें क्रमश: 15 फीसदी और 10 फीसदी थी जबकि सालाना 1 लाख रुपये तक के कैपिटल गेन पर टैक्स में छूट का प्रावधान था।
डिविडेंड ऑप्शन: आर्बिट्राज फंड से मिलने वाला डिविडेंड निवेशकों के इनकम में जुड़ जाता है और निवेशकों को अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से उस डिविडेंड पर टैक्स चुकाना होता है।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
आर्बिट्राज फंड की भी कुछ जोखिम और सीमाएं हैं। मॉर्निंगस्टार के कौस्तुभ बेलापुरकर कहते हैं, ‘जब स्पॉट और फ्यूचर्स के बीच अंतर कम होता है या फ्यूचर्स डिस्काउंट पर ट्रेड करते हैं तो फंड मैनेजर नकदी रख सकते हैं या कम जोखिम वाले डेट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश कर सकते हैं जिससे रिटर्न प्रभावित हो सकता है।’
फंड्सइंडिया के अरुण कुमार ने कहा कि बाजार में जब गिरावट का दौर हो या इसमें रेंज बाउंड ट्रेडिंग हो रही हो तब रिटर्न नेगेटिव हो सकता है। हालांकि आर्बिट्राज फंड आमतौर पर 3-6 महीनों में पॉजिटिव रिटर्न देते हैं।
टैक्स बेनिफिट आर्बिट्राज फंड को डेट फंड के मुकाबले एक आकर्षक विकल्प बनाते हैं। कुमार का मानना है कि आर्बिट्राज फंड 30 फीसदी टैक्स ब्रैकेट में आने वालों निवेशकों के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद है, 20 फीसदी ब्रैकेट में आने वालों के लिए भी फायदेमंद है लेकिन 10 फीसदी ब्रैकेट में आने वालों के लिए कम फायदेमंद है। ऐसे 10 फीसदी ब्रैकेट में आने वाले निवेशक लिक्विड फंड को प्राथमिकता दे सकते हैं।’