facebookmetapixel
Year Ender 2025: टैरिफ, पूंजी निकासी और व्यापार घाटे के दबाव में 5% टूटा रुपया, एशिया की सबसे कमजोर मुद्रा बनाStock Market 2025: बाजार ने बढ़त के साथ 2025 को किया अलविदा, निफ्टी 10.5% उछला; सेंसेक्स ने भी रिकॉर्ड बनायानिर्यातकों के लिए सरकार की बड़ी पहल: बाजार पहुंच बढ़ाने को ₹4,531 करोड़ की नई योजना शुरूVodafone Idea को कैबिनेट से मिली बड़ी राहत: ₹87,695 करोड़ के AGR बकाये पर लगी रोकYear Ender: SIP और खुदरा निवेशकों की ताकत से MF इंडस्ट्री ने 2025 में जोड़े रिकॉर्ड ₹14 लाख करोड़मुंबई में 14 साल में सबसे अधिक संपत्ति रजिस्ट्रेशन, 2025 में 1.5 लाख से ज्यादा यूनिट्स दर्जसर्वे का खुलासा: डर के कारण अमेरिका में 27% प्रवासी, ग्रीन कार्ड धारक भी यात्रा से दूरBank Holiday: 31 दिसंबर और 1 जनवरी को जानें कहां-कहां बंद रहेंगे बैंक; चेक करें हॉलिडे लिस्टStock Market Holiday New Year 2026: निवेशकों के लिए जरूरी खबर, क्या 1 जनवरी को NSE और BSE बंद रहेंगे? जानेंNew Year Eve: Swiggy, Zomato से आज नहीं कर सकेंगे ऑर्डर? 1.5 लाख डिलीवरी वर्कर्स हड़ताल पर

लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी लेने से पहले हो जाएं सतर्क, बदल गए हैं टैक्स के नियम

1 अप्रैल 2023 से पहले यानी 31 मार्च 2023 तक जिन्होंने लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी ली है वे नए नियम के दायरे में नहीं आएंगे। यूलिपधारक भी इस नियम के दायरे में नहीं आएंगे।

Last Updated- June 10, 2023 | 11:50 AM IST
Life Insurance
BS

लाइफ इंश्योरेंस (जीवन बीमा) पॉलिसी के लिए चुकाए जाने वाले प्रीमियम और मैच्योरिटी की राशि पर टैक्स के नियमों को लेकर लोगों के बीच काफी गलतफहमी है। बजट 2023 में नियमों में किए गए बदलाव के बाद तो यह गलतफहमी और बढी है। बजट 2023 में प्रस्तावित प्रावधान 1 अप्रैल 2023 से लागू भी हो गए हैं।

फिलहाल असेसमेंट ईयर 2023-24 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न यानी आईटीआर (ITR) फाइल करने का काम भी तेजी से चल रहा है। इसलिए आज बात करते हैं लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी से संबंधित नए टैक्स नियमों की। साथ में उन टैक्स नियमों को भी समझेंगे जो 1 अप्रैल 2023 के पहले से ही प्रभावी हैं।

क्या कहते हैं नए नियम

फाइनेंस बिल 2023 में इनकम टैक्स ऐक्ट, 1961, के सेक्शन 10 (10D) में छठे और सातवें प्रावधान (Proviso) जोडे गए। 1 अप्रैल 2023 से प्रभावी सेक्शन 10(10D) के छठे प्रावधान के मुताबिक यदि लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के लिए चुकाए गए प्रीमियम की राशि पॉलिसी अवधि के दौरान किसी भी एक वित्त वर्ष में 5 लाख रुपये से ज्यादा हुई तो बीमाधारक को उस पॉलिसी के लिए मिलने वाली मैच्योरिटी की राशि टैक्सेबल यानी कर योग्य होगी। यानी मैच्योरिटी की राशि पर सेक्शन 10(10D) के तहत टैक्स में छूट नहीं मिलेगी।

ITR filing 2023: टर्म डिपॉजिट पर टैक्स नियमों को लेकर दूर करें गलतफहमी

वहीं सेक्शन 10(10D) के सातवें प्रावधान के मुताबिक अगर एक से ज्यादा पॉलिसी के लिए आप प्रीमियम का भुगतान कर रहे हैं तो सभी पॉलिसी के लिए चुकाए गए प्रीमियम को जोड़ने के बाद सालाना प्रीमियम 5 लाख रुपये से ज्यादा होने की स्थिति में उस पॉलिसी पर देय मैच्योरिटी की राशि टैक्सेबल होगी जिसके प्रीमियम को मिलाने के बाद सालाना प्रीमियम 5 लाख रुपये की लिमिट से ज्यादा हो रही है।

1 अप्रैल 2023 से पहले यानी 31 मार्च 2023 तक जिन्होंने लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी ली है वे नए नियम के दायरे में नहीं आएंगे। यूलिपधारक भी इस नियम के दायरे में नहीं आएंगे। यदि बीमाधारक की पॉलिसी अवधि के दौरान मौत हो जाती है तो नॉमिनी को जो राशि (डेथ बेनिफिट) मिलेगी वह भी टैक्सेबल नहीं होगी।

कैसे होगी टैक्सेबल राशि की गणना

मैच्योरिटी की राशि में से कुल चुकाए गए प्रीमियम को घटाने के बाद जो राशि बचेगी वह टैक्सेबल होगी। जिसकी गणना अन्य स्रोतों से होने वाली आय (income from other sources) के तौर पर की जाएगी और बीमाधारक को उस राशि पर अपने टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स चुकाना होगा।

Arbitrage Fund: शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव का उठाएं फायदा

लेकिन अगर आपने पॉलिसी अवधि के दौरान चुकाए गए प्रीमियम पर हर एक वित्त वर्ष 80C के तहत डिडक्शन का फायदा उठाया है तब टैक्सेबल मैच्योरिटी अमाउंट की गणना इस तरह से होगी – चुकाए गए कुल एनुअल प्रीमियम में से प्रीमियम की उस राशि – जिस पर आपने पॉलिसी अवधि के दौरान प्रति वर्ष 80C के तहत डिडक्शन क्लेम किया – को घटाने के बाद बची राशि को मैच्योरिटी की राशि से घटाने के बाद जो राशि बचेगी वह टैक्सेबल होगी।

अब बात करते हैं उन नियमों की जो 1 अप्रैल 2023 के पहले से प्रभावी हैं।

प्रीमियम (premium) पर डिडक्शन के नियम

अपने, पति/पत्नी और बच्चों की जीवन बीमा पॉलिसी के लिए किए गए प्रीमियम के भुगतान पर 80C के तहत एक वित्त वर्ष में निवेश के अन्य विकल्पों सहित अधिकतम 1,50,000 रुपए तक डिडक्शन (deductions) का फायदा मिलता है। अधिकांश लोगों को यह लगता है कि यह फायदा पूरी प्रीमियम राशि पर मिलता है। लेकिन हर मामले में ऐसा नहीं है। इसको लेकर कुछ शर्तें निर्धारित की गई हैं:

  • अगर कोई पॉलिसी 1 अप्रैल 2012 या उसके बाद जारी की गई है तो प्रीमियम की सालाना राशि सम एश्योर्ड (sum assured) राशि के 10 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। यानी उदाहरण के लिए अगर सम एश्योर्ड एक लाख रुपए है तो प्रीमियम की सालाना राशि 10 हजार रुपए से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। अगर फिर भी अगर आप इस पॉलिसी पर प्रीमियम 11 हजार रुपए देते हैं तब भी डिडक्शन का फायदा 10 हजार रुपए तक की राशि पर ही मिलेगा।
  • 1 अप्रैल 2003 से 31 मार्च 2012 तक के बीच जारी की गई पॉलिसियों के लिए प्रीमियम की राशि सम एश्योर्ड राशि के 20 फीसदी तक हो सकती है। यानी 20 फीसदी तक की राशि पर डिडक्शन का फायदा मिलेगा।
  • 31 मार्च 2003 से पहले जारी की गई पॉलिसी को लेकर कोई लिमिट नहीं है। यानी कितना भी प्रीमियम हो, पूरे पर डिडक्शन का फायदा मिलेगा।
  • अगर इंश्योर्ड व्यक्ति 80U में उल्लेखित डिसेबिलिटी का शिकार हो या वह 80DDB में उल्लेखित बीमारी से ग्रस्त हो तो 1 अप्रैल 2013 के बाद जारी की गई पॉलिसी के लिए सम एश्योर्ड राशि के अधिकतम 15 फीसदी तक प्रीमियम पर 80C के तहत टैक्स में छूट ली जा सकती है। इससे पहले ऐसा कोई प्रावधान नहीं था।

मैच्योरिटी बेनिफिट को लेकर टैक्स के नियम

ज्यादातर लोग यही समझते हैं कि पॉलिसी की निर्धारित अवधि पूरी होने के बाद मैच्योरिटी की जो राशि (सम एश्योर्ड + बोनस) पॉलिसी धारक को मिलती है उस पर कोई टैक्स नहीं लगता। लेकिन ऐसी बात नहीं है।

इनकम टैक्स ऐक्ट, 1961, के सेक्शन 10 (10D) के मुताबिक अगर पॉलिसी टर्म के दौरान किसी भी वित्त वर्ष में बीमाधारक (policy holder) अगर उन शर्तों को पूरा न करता हो जो 80C के तहत डिडक्शन का फायदा लेने के लिए प्रीमियम और सम एश्योर्ड के अनुपात को लेकर तय किए गए हैं, तो पूरी मैच्योरिटी की राशि बीमाधारक के इनकम में जोड़ दी जाएगी और बीमाधारक को अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स चुकाना होगा। लेकिन नॉमिनी (nominee) को मिलने वाला डेथ बेनिफिट हमेशा टैक्स-फ्री होता है। साथ ही सेक्शन 10 (10D) के तहत मिलने वाले टैक्स बेनिफिट को लेकर कोई ऊपरी लिमिट (अधिकतम सीमा) का प्रावधान नहीं है।

मैच्योरिटी पर TDS

सेक्शन 194DA में हुए बदलाव के मुताबिक (सितंबर 2019 से प्रभावी) अगर आपको मैच्योरिटी की राशि (सम एश्योर्ड + बोनस) पर टैक्स में छूट नहीं मिलती है तो 1 लाख रुपए से ज्यादा की मैच्योरिटी की राशि पर बीमा कंपनी 5 फीसदी TDS काट लेगी, जबकि 1 सितंबर 2019 से पहले 1 फीसदी TDS का ही प्रावधान था। यानी TDS बढ़ा दिया गया है। लेकिन यहाँ पर थोड़ी-सी राहत भी दी गई है।

यह राहत इस तरह से दी गई है कि 5 फीसदी TDS पूरी मैच्योरिटी की राशि पर नहीं कटेगा, बल्कि मैच्योरिटी की राशि में से पूरा प्रीमियम घटाने के बाद बची हुई राशि पर लगेगा। हालांकि अगर पॉलिसी टर्म के दौरान इंश्योर्ड व्यक्ति की मौत हो जाती है तो नॉमिनी को मिलने वाली मैच्योरिटी तो टैक्स-फ्री है ही, साथ ही TDS भी नहीं कटता है।

First Published - June 10, 2023 | 11:13 AM IST

संबंधित पोस्ट