यूलिप यानी यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (Unit Linked Insurance Plan) में आम लोगों की रुचि पिछले कुछ बदलावों के बाद फिर से बढ़ी है। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों के एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) में फिलहाल 10 फीसदी से ज्यादा की हिस्सेदारी अकेले यूलिप की है।
वैसे लोग जो बेहतर रिटर्न, टैक्स सेविंग के साथ साथ रिस्क कवर यानी जीवन बीमा का लाभ भी चाहते हैं, उनके लिए यह एक बेहतर विकल्प हो सकता है।
आइए अब इस स्कीम के बारे में विस्तार से समझते हैं:
यूलिप क्या है?
यूलिप एक ऐसा लाइफ इंश्योरेंस प्रोडक्ट है जहां बीमा कवर के साथ साथ निवेश (investment) का फायदा भी निवेशकों को मिलता है। इस स्कीम के तहत जो धनराशि बतौर प्रीमियम आप चुकाते हैं उसके एक हिस्से का इस्तेमाल बीमा कंपनी आपको बीमा कवरेज प्रदान करने के लिए करती है, जबकि बाकी धनराशि का इस्तेमाल इक्विटी या डेट फंड की खरीद में करती है। यूलिप में रिटर्न की कोई गारंटी नहीं होती है। इसकी वजह है कि इस स्कीम के तहत निवेश इक्विटी (शेयर), डेट या मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स में किया जाता है और इसके एवज में म्युचुअल फंड की तरह आपको यूनिट्स मिल जाती है। ऐसे में रिटर्न मार्केट के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है। हालांकि आप तय कर सकते हैं कि आपका कितना पैसा शेयर में और कितना डेट /मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स में लगे। चाहें तो आप अपने निवेश की अधिकतम राशि को इक्विटी फंड में लगा सकते हैं। इससे आपको लॉन्ग-टर्म मसलन 10-15 वर्षों के बाद बेहतर रिटर्न मिल सकता है।
यूलिप में क्यों करें निवेश?
यूलिप पर टैक्स बेनिफिट
यूलिप का लॉक इन पीरियड 5 साल है। मतलब प्लान की शुरुआत के 5 साल बाद आप इसे रिडीम/सरेंडर कर सकते हैं। अगर आप 5 साल तक इस स्कीम में निवेश जारी रखते हैं तो आपको 80C के तहत अधिकतम 1.5 लाख रुपये तक (निवेश के अन्य विकल्पों को मिलाकर) डिडक्शन का फायदा मिलेगा।
लेकिन अगर कोई पॉलिसी 1 अप्रैल 2012 या उसके बाद जारी की गई है तो एक वित्त वर्ष में सम एश्योर्ड के 10 फीसदी से ज्यादा के सालाना प्रीमियम पर डिडक्शन का फायदा नहीं मिलेगा।
मैच्योरिटी बेनिफिट (Maturity Benefit) पर टैक्स में छूट
यूलिप ईईई (एग्जेंप्ट-एग्जेंप्ट-एग्जेंप्ट) कैटेगरी में है। यानी इस स्कीम के तहत न तो जमा करने पर, न मिलने वाले रिटर्न और न निकासी पर टैक्स है। इसलिए 5 साल के बाद मिलने वाले मैच्योरिटी अमाउंट पर भी सेक्शन 10 (10D) के तहत टैक्स में छूट है। मसलन यहां इक्विटी और डेट फंड से होनेवाली कमाई पर भी कोई टैक्स नहीं लगता है।
लेकिन 2021 में यूलिप को लेकर टैक्स नियमों में बदलाव किया गया। नए नियमों के तहत अगर आप एक फरवरी 2021 या उसके बाद यूलिप खरीदते हैं और सालाना प्रीमियम 2.5 लाख रुपये से ज्यादा है तो आपको मैच्योरिटी बेनिफिट पर टैक्स में छूट नहीं मिलेगी। यानी मैच्योरिटी बेनिफिट कैपिटल गेन मानी जाएगी और चूंकि यूलिप का लॉक-इन पीरियड 5 साल है।
यदि इस स्कीम के तहत कम से कम 65 फीसदी निवेश इक्विटी मेंं किया है तो लॉक-इन पीरियड के बाद जब आप इस पॉलिसी को रिडीम करेंगे तो आपको कैपिटल गेन पर टैक्स इक्विटी फंड की तर्ज (सालाना 1 लाख से ज्यादा के कैपिटल गेन पर 10 फीसदी लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स) पर चुकाना होगा। वहीं यदि इक्विटी में निवेश 65 फीसदी से कम होगा तो इस पॉलिसी को रिडीम करने पर आपको कैपिटल गेन पर टैक्स डेट फंड की तरह देना होगा।
कुल मैच्योरिटी बेनिफिट (अगर बोनस भी इसमें शामिल है तो इसे भी मिलाकर) में से कुल चुकाए गए प्रीमियम को घटाने के बाद जो राशि बचेगी वह लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन मानी जाएगी।
एसेट क्लास स्विच करने की सुविधा
पॉलिसी लेने के समय ग्राहकों को अपने रिस्क के हिसाब से पोर्टफोलियो बनाने की मतलब लार्जकैप, मिडकैप, स्मॉलकैप, डेट या बैलेंस्ड फंड में निवेश करने की छूट दी जाती है। पॉलिसी के दौरान अलग-अलग फंडों/ अलग-अलग एसेट क्लास में स्विच करने की भी इजाज़त होती है। साथ ही एसेट क्लास के बीच निवेश को मॉडिफाई यानी कम ज्यादा भी किया जा सकता है। इन सुविधाओं के लिए फंड हाउस अतिरिक्त चार्ज नहीं लेते हैं। बशर्ते आप तय सीमा से ज्यादा बार इसका इस्तेमाल न कर रहे हों। जबकि निवेश के अन्य विकल्पों में इस तरह की सुविधा नहीं है।
यूलिप चार्जेज/ एक्सपेंस रेश्यो में कमी
पिछले कुछे वर्षों में फंड हाउस ज्यादातर ऑन लाइन यूलिप प्लान लेकर आ रहे हैं। जिस पर वे प्रीमियम एलोकेशन चार्ज, एडमिन चार्ज वगैरह नहीं ले रहे हैं। इससे पिछले वर्षों की तुलना में यूलिप का टोटल एक्सपेंस रेश्यो काफी कम हुआ है। 5 साल के बाद प्लान सरेंडर करने पर सरेंडर चार्ज भी खत्म कर दिया गया है। अब फंड हाउस सिर्फ मोर्टेलिटी और फंड मैनेजमेंट चार्ज ही लेते हैं। इन सब में मोर्टेलिटी चार्ज सबसे महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि फंड हाउस आपके बीमा कवर के एवज में आपसे मोर्टेलिटी चार्ज वसूलती है। मोर्टेलिटी चार्ज उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती है।
अगर पॉलिसी धारक की मौत पॉलिसी के दौरान हो जाती है ……
5 साल बाद पॉलिसी सरेंडर करने पर पॉलिसी धारक को कुल फंड वैल्यू टैक्स-फ्री मिलेगा। लेकिन अगर पॉलिसी धारक की मौत पॉलिसी के दौरान हो जाती है तो नॉमिनी को सम अश्योर्ड/ डेथ बेनिफिट और फंड वैल्यू में जो ज्यादा होगा वह मिलेगा या सम अश्योर्ड और फंड वैल्यू दोनों जोड़कर मिलेगा। यह अलग-अलग पॉलिसी पर निर्भर करता है।
इरडा के दिशा निर्देशों के मुताबिक रेगुलर प्रीमियम पॉलिसी के लिए सम अश्योर्ड सालाना प्रीमियम का कम से कम 7 गुना होगा। वहीं, सिंगल प्रीमियम पॉलिसी के लिए सम एश्योर्ड की न्यूनतम सीमा सिंगल प्रीमियम का 125 फीसदी है। साथ ही डेथ बेनिफिट किसी भी समय चुकाए गए कुल प्रीमियम का कम से कम 105 फीसदी होना चाहिए।
यूलिप पर क्या-क्या चार्ज देने होते हैं?
जितने तरह के चार्ज यूलिप के लिए देने होते हैं, उतने वैल्यू के यूनिट्स आपके फंड से रिडीम होते जाते हैं। इसलिए पॉलिसी सरेंडर करने के बाद आपको सरेंडर वैल्यू कुल यूनिट्स के नेट एसेट वैल्यू/ एनएवी (NAV) के हिसाब से नहीं बल्कि घटे हुए यूनिट्स के नेट एसेट वैल्यू के हिसाब से मिलेगा।
इसको एक उदाहरण से समझिए :
मान लीजिए आपको निवेश के वक्त किसी यूलिप फंड (सिंगल प्रीमियम पॉलिसी) के 50 रुपये एनएवी के 1,000 यूनिट्स मिले। मसलन उस समय फंड वैल्यू यानी वेल्थ 1000X 50= 50 हजार था। जब आप 10 साल बाद पॉलिसी सरेंडर करने जाते हैं उस समय एनएवी बढ़कर 100 रुपये हो जाता है। तब उस समय फंड वैल्यू बढकर एक लाख रुपए हो जाएगा। लेकिन पॉलिसी सरेंडर करने के वक्त आपको एक लाख रुपए नहीं मिलेंगे। क्योंकि मान लीजिए 100 यूनिट्स फंड हाउस की तरफ से मोर्टेलिटी और अन्य चार्जेज के लिए रिडीम किए गए हों। मतलब आपको सरेंडर करने के वक्त 900×100 यानी 90 हजार रुपए मिलेंगे।