जिंस बाजार में संस्थागत भागीदारी और तरलता बढ़ाने के इरादे से बाजार नियामक चुनिंदा जिंस डेरिवेटिव में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) को हेजिंग के लिए सौदों की इजाजत देने पर विचार कर रहा है। नियामक इस सेगमेंट में बैंकों, बीमा कंपनियों और पेंशन फंडों को भी लाने की संभावना तलाश रहा है। सेबी के चेयरमैन तुहिन कांत पांडेय ने बुधवार को कहा कि गैर-नकद निपटान और गैर-कृषि जिंस डेरिवेटिव अनुबंधों में एफपीआई को अनुमति देने के प्रस्ताव पर सक्रियता से विचार किया जा रहा है।
पांडेय ने मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) द्वारा आयोजित ‘धातु – खदानों से बाजार तक’ विषय पर आयोजित एक सम्मेलन में कहा, संस्थागत भागीदारी बढ़ने से तरलता बढ़ेगी, जिससे बाजार हेजिंग के लिए और अधिक आकर्षक बन जाएगा। हम इन बाजारों तक विवेकपूर्ण संस्थागत पहुंच सुनिश्चित करने के लिए नियामकाय ढांचे की दिशा में काम करते रहेंगे।
बुधवार को एमसीएक्स का शेयर 3.6 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 7,924 रुपये पर बंद हुआ।
उद्योग के विशेषज्ञों ने कहा कि सेबी का प्रस्ताव कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के अलावा भी हेजिंग विकल्पों के विस्तार में मददगार होगा, जिससे संभवतः सोने और चांदी जैसे अनुबंधों में तरलता में सुधार होगा। नियामक एक्सचेंज प्लेटफॉर्म पर कमोडिटी की डिलिवरी लेने या देने की इच्छुक संस्थाओं के सामने आने वाली वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए सरकार के साथ भी बातचीत कर रहा है।
उन्होंने कहा कि दिसंबर 2025 तक खास तौर पर कमोडिटी से जुड़े ब्रोकरों को अनुपालन के लिए सामान्य रिपोर्टिंग ढांचे के तहत लाया जाएगा। बाजार का और अधिक विस्तार करने के लिए सेबी ने कृषि वस्तुओं के व्यापार को बढ़ावा देने के लिए समिति गठित की है जो इस बारे में सिफारिश करेगी। धातु जैसी गैर-कृषि वस्तुओं के विकास के लिए अलग कार्य समूह बनाने पर विचार किया जा रहा है।
सेबी प्रमुख ने कहा, हमें तेजी से कीमत लेने वाले से कीमत निर्धारक बनने की जरूरत है। हम ऐसा इकोसिस्टम बना रहे हैं जो वैश्विक झटकों के प्रति लचीला और घरेलू जरूरतों के प्रति उत्तरदायी हो। दुर्लभ खनिजों और टैरिफ पर वैश्विक चिंताओं के बीच सेबी चेयरमैन ने हेजिंग के माध्यम से प्रतिभागियों की सुरक्षा के लिए आत्मनिर्भरता और मजबूत डेरिवेटिव बाजार का आह्वान किया।
पांडेय ने कहा, उदाहरण के लिए अमेरिका द्वारा हाल में एल्युमीनियम और तांबे के आयात पर टैरिफ को दोगुना करना एक ऐसा घटनाक्रम है, जो भारत के निर्यात परिदृश्य को सीधे प्रभावित करता है। ऐसे अस्थिर माहौल में मज़बूत डेरिवेटिव बाजार शक्तिशाली ढाल मुहैया कराता है, जिससे भारतीय उत्पादकों और उपभोक्ताओं को वैश्विक मूल्य झटकों से बचाव में मदद मिल सकती है।
उन्होंने लीथियम, कोबाल्ट, निकल और दुर्लभ धातुओं जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों को सुरक्षित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। इन संसाधनों को उन्होंने हरित ऊर्जा भविष्य के निर्माण ढांचे के रूप में बताया। ज्यादा आत्मनिर्भरता पर जोर देते हुए पांडेय ने एक बार फिर कहा कि वास्तविक समय पर मार्जिन संग्रह और निरंतर निगरानी जैसे सुरक्षा उपायों पर कोई ढिलाई नहीं होगी। इसके अलावा एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) ने सेबी को धातुओं को निवेश परिसंपत्ति वर्ग के रूप में स्थापित करने में मदद के लिए उपाय सुझाए हैं।