पिछले कुछ सप्ताह भारतीय शेयर बाजारों के लिए अच्छे रहे हैं। एएसके इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स (ASK Investment Managers) के उप मुख्य निवेश अधिकारी सुमित जैन ने पुनीत वाधवा के साथ बातचीत में कहा कि भारतीय इक्विटी बाजारों को घरेलू अर्थव्यवस्था में सुधार की मदद से शानदार आय परिदृश्य से ताकत मिली है। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
क्या मुद्रास्फीति की चुनौती और दर वृद्धि चक्र वैश्विक तौर पर है, या बाजार इन्हें लेकर ज्यादा आश्वस्त हैं?
भारत और दुनियाभर में ताजा ऊंचे स्तरों से मुद्रास्फीति में अब नरमी आई है। ऊंची मुद्रास्फीति की चाल कमजोर पड़ने लगी है। वैश्विक तौर पर, जिंस कीमतें (ऊर्जा समेत) अपने ऊंचे स्तरों से नीचे आई हैं। आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) को लेकर हालात तेजी से सामान्य हुए हैं, और कृषिगत कीमतें भी अपने ऊंचे स्तरों से नीचे आ रही हैं। हम सेवा संबंधित मुद्रास्फीति में भी नरमी दर्ज कर सकते हैं।
क्या भारतीय इक्विटी बाजार अपने प्रतिस्पर्धियों को मात देने में सक्षम होंगे?
शानदार प्रदर्शन के बाद, भारत ने वर्ष के शुरू में उभरते बाजारों (EM) के मुकाबले कमजोरी दर्ज की। गिरावट की रफ्तार अब काफी धीमी पड़ी है और भारत फिर से अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को भा रहा है। भारतीय बाजारों में बीच बीच में गिरावट के साथ साथ भारतीय उद्योग जगत द्वारा लगातार आय वृद्धि और ईएम में तेजी से मूल्यांकन वृद्धि में कमी आई है।
घरेलू संस्थागत निवेशक विदेशी संस्थागत निवेशकों की बड़ी भागीदारी के अभाव में बाजारों को कब तक ताकत प्रदान करते रहेंगे?
निफ्टी का 12 महीने की PE ऊंचे स्तरों से करीब 23 प्रतिशत नीचे है और यह ऐतिहासिक औसत के अनुरूप है। भारतीय इक्विटी बाजारों को घरेलू अर्थव्यवस्था (वित्तीय और खपत सेगमेंट मुख्य लाभार्थी होंगे) में मजबूती की वजह से समर्थन मिल सकता है, भले ही वैश्विक वृद्धि की राह चुनौतीपूर्ण (भारतीय आईटी कंपनियों के लिए कमजोर वृद्धि परिदृश्य को देखते हुए) बनी हुई है।
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क्या भारतीय बाजार प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले महंगे हैं?
अपने प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले भारतीय बाजारों का महंगा मूल्यांकन यहां मजबूत वित्तीय और नीतिगत परिवेश की वजह से है। समावेशी विकास की दिशा में भारत की बेहतर जनसांख्यिकी प्रोफाइल और नीतिगत फोकस को ध्यान में रखते हुए भारत द्वारा अनुमानित विकास संभावनाएं लंबी अवधि से जुड़ी हैं। जहां कई सामयिक कारक अल्पावधि में योगदान दे सकते हैं, वहीं दीर्घावधि आय परिदृश्य मजबूत बना हुआ है। भारतीय बाजारों को प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले मूल्यांकन पर ध्यान देना चाहिए।
पिछले 6-12 महीनों के दौरान आपकी निवेश रणनीति कैसी रही?
हमने वैश्विक वृद्धि के मुकाबले भारत की वृद्धि की संभावना पर ज्यादा ध्यान दिया है। हमारे निवेशक उन व्यवसायों पर ध्यान दे रहे हैं जिन्हें इससे (वृद्धि की गुणवत्ता) फायदा हो सकता है। जिन क्षेत्रों का प्रदर्शन अच्छा रहने की संभावना है, उनमें भारत में तेज निर्माण के लाभार्थी, रसायन आदि जैसी आपूर्ति श्रृंखलाएं शामिल हैं।
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उपभोक्ता व्यवसायों को प्रीमियमाइजेशन ट्रेंड यानी महंगी उत्पाद पेशकशों का लाभ मिल सकता है। जिंस कीमतों में गिरावट से मार्जिन पर सकारात्मक असर को बढ़ावा मिलेगा। आय अनुमानों में कमी आई है, खासकर आईटी क्षेत्र में। बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता, ऋण वृद्धि में तेजी, शुद्ध ब्याज मार्जिन में सुधार, और शहरी मांग में मजबूती (ग्रामीण मांग में सुस्ती के बावजूद) को देखते हुए भारतीय उद्योग जगत का आय परिदृश्य उचित नजर आ रहा है।