बीएनपी पारिबा बैंक में इक्विटी शोध प्रमुख (भारत) कुणाल वोरा का कहना है कि अमेरिकी व्यापार शुल्कों से जटिलता बढ़ी है, लेकिन भारत की जीडीपी वृद्धि में लगातार सुधार और आय की मजबूत होती स्थिति ने उसे अन्य वैश्विक प्रतिस्पर्धियों की तुलना में पसंदीदा बना दिया है। सुंदर सेतुरामन को दिए ईमेल इंटरव्यू में वोरा ने भारत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) की आवक के परिदृश्य पर विस्तार से बात की जो हाल तक ऊंचे मूल्यांकन और वैश्विक अनिश्चितताओं की वजह से बड़े बिक्री दबाव का सामना कर रहा था। बातचीत के अंश:
एफपीआई निकासी नरम पड़ी है। विदेशी निवेश के लिए परिदृश्य कैसा है?
भारत एफपीआई के लिए पसंदीदा बाजार रहा है। पिछले 10 में से सात वर्षों में भारत में शुद्ध एफपीआई निवेश आया है जो उभरते बाजारों में सबसे ज्यादा है। हालांकि हाल के वर्षों में हमने भारत के महंगे मूल्यांकन और बढ़ते अमेरिकी बॉन्ड यील्ड के कारण एफपीआई की बिकवाली देखी और घरेलू निवेशकों की बड़ी खरीदारी। भारत में निवेश का वापस आना वैश्विक तौर पर टैरिफ को लेकर स्थिति स्पष्ट होने पर निर्भर करेगा।
अमेरिकी व्यापार शुल्कों को लेकर आपका आकलन क्या है? क्या भारत अपेक्षाकृत इससे बचा हुआ है? लंबे समय में भारतीय अर्थव्यवस्था और बाजारों पर इसका किस तरह प्रभाव पड़ेगा?
टैरिफ पर स्थिति अभी साफ हो रही है, लेकिन भारत अपने कम वस्तु निर्यात निर्भरता के कारण अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में दिख रहा है। भारत घरेलू केंद्रित अर्थव्यवस्था है और निफ्टी-50 में शामिल सेक्टरों में ज्यादातर का 10 प्रतिशत से भी कम राजस्व अमेरिका को निर्यात (आईटी और फार्मास्युटिकल को छोड़कर) से आता है। निफ्टी 50 के बाहर के सेक्टर जैसे इलेक्ट्रिकल मैन्युफैक्चरिंग सर्विसेज, केबल और वायर तथा रत्न एवं आभूषण आदि ऐसे अन्य क्षेत्र हैं जिनका अमेरिका को निर्यात है। लार्जकैप इंडेक्स से जुड़े शेयरों पर संपूर्ण आय का प्रभाव अधिक होने की संभावना नहीं है। फिलहाल, अमेरिका ने चीन पर ऊंचे टैरिफ बरकरार रखे हैं। अगर ये टैरिफ जारी रहते हैं, तो आपूर्ति श्रृंखला की समीक्षा हो सकती है और भारत संभावित लाभार्थियों में से एक हो सकता है। हालांकि हमें टैरिफ से अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले नकारात्मक असर पर नजर रखने की भी जरूरत है।
क्या आपको लगता है कि टैरिफ के बाद भारतीय इक्विटी के लिए जोखिम प्रीमियम बढ़ जाएगा?
भारत का वैश्विक व्यापार में अपेक्षाकृत कम जोखिम है और जब अमेरिकी टैरिफ जैसी बड़ी अनिश्चितताएं होती हैं तो जोखिम प्रीमियम बढ़ जाता है, लेकिन ऊपर बताए गए कारकों के कारण भारतीय बाजार अपेक्षाकृत लचीला रहा है। पिछले कुछ हफ्तों में देखी गई अस्थिरता के बावजूद, पिछले एक महीने में निफ्टी 50 का रिटर्न सकारात्मक रहा है और इस सूचकांक में इस साल अब तक (वाईटीडी) के लिहाज से मामूली गिरावट आई है। एशिया (जापान को छोड़कर) के समकक्ष देशों की तुलना में भारत का मूल्यांकन प्रीमियम कुछ महीने पहले के 70 प्रतिशत से गिरकर 40 प्रतिशत के करीब आ गया है। भारतीय बाजार में गिरावट और चीन के प्रति दिलचस्पी बढ़ने के कारण ऐसा हुआ।
मार्च तिमाही के नतीजों से आपको क्या उम्मीद है? क्या आय में कमजोरी बनी रहेगी?
वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही आय के लिहाज से कमजोर रह सकती है। सालाना आधार पर आय वृद्धि में इस तिमाही के दौरान मामूली गिरावट देखी जा सकती है क्योंकि बैंक, मैटैरियल, आईटी और एफएमसीजी के आंकड़े नरम रह सकते हैं। वित्त वर्ष 2025 के आय अनुमान 15 प्रतिशत से घटाकर 6-8 फीसदी किए गए हैं। निर्यात आधारित क्षेत्र कमजोर वैश्विक विकास परिदृश्य से प्रभावित हुए हैं।
आप कौन से क्षेत्रों पर सकारात्मक और नकारात्मक हैं? क्या घरेलू-केंद्रित क्षेत्र/शेयर अब बेहतर दांव हैं?
हम निजी क्षेत्र के बैंकों, दूरसंचार और कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी शेयरों को पसंद कर रहे हैं। स्टैपल्स पर हमारा नजरिया नकारात्मक रहा है, लेकिन टैरिफ संबंधी चिंताओं के बीच निवेशकों ने कंज्यूमर स्टेपल्स को रक्षात्मक क्षेत्र के रूप में देखा और इस क्षेत्र ने बेहतर प्रदर्शन किया। हमें आईटी क्षेत्र का मूल्यांकन पसंद है, क्योंकि गिरावट के बाद डिविडेंड में बड़ा सुधार हुआ है, लेकिन अमेरिकी टैरिफ से इस क्षेत्र में अनिश्चितता बढ़ गई है।