नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) और बीएसई अभी भी क्लियरिंग और सेटलमेंट शुल्कों को लेकर आपस में सहमति नहीं बना पाए हैं और यह विवाद एक साल से ज्यादा समय से चला आ रहा है। एनएसई ने अपने ताजा वित्तीय विवरण में कहा है कि उसकी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक एनएसई क्लियरिंग (एनसीएल) के पास बाजार नियामक सेबी के नियमों के तहत जरूरी न्यूनतम लिक्विड परिसंपत्तियों में 177 करोड़ रुपये की कमी है।
एनसीएल ने कहा कि यह कमी मुख्य रूप से प्रतिस्पर्धी बीएसई के पास 312 करोड़ रुपये के लंबित बकाया की वजह से है। कंपनी ने कहा कि इस कमी को 31 मार्च, 2025 से पहले आंतरिक संग्रह/रिकवरी से पूरा जाएगा।
पिछले साल बीएसई ने कहा था कि ऊंचा क्लियरिंग और सेटलमेंट शुल्क उन वजहों में से एक है जो उसके शुद्ध लाभ पर प्रभाव डाल रहे हैं। एक्सचेंज ने एनएसई से राहत मांगी थी और इंटरऑपरेबिलिटी एग्रीमेंट के तहत शुल्कों की समीक्षा की मांग की थी। हालांकि एनएसई ने बाद में स्पष्ट किया कि समझौते के पुनर्गठन की उसकी कोई योजना नहीं है और वह करार के तहत तय कीमत जारी रखेगा।
सूत्रों ने संकेत दिया कि बाजार नियामक की सेकेंडरी मार्केट एडवाइजरी कमेटी में मामले पर चर्चा हुई है। एक अन्य सूत्र ने कहा कि बीएसई गुरुवार को होने वाली अपनी बोर्ड बैठक में इस पर चर्चा करेगा। एक सूत्र ने कहा कि एक्सचेंज एक बयान जारी करेगा जिससे संकेत मिलता है कि बीएसई पर एनसीएल के कुछ बकाया हो सकते हैं। वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही के वित्तीय नतीजों में बीएसई ने क्लियरिंग और सेटलमेंट खर्च के तौर पर 101 करोड़ रुपये दर्ज किए थे। इस बारे में जानकारी के लिए बीएसई को भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं मिला।