केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अमेरिका के विभिन्न देशों पर व्यापार शुल्क थोपने के मद्देनजर शुक्रवार को कहा कि भारत और विकासशील देशों को उनकी नियति तय करने वाले फैसलों में सक्रिय रूप से हिस्सा लेना होगा।
उन्होंने नई दिल्ली में आयोजित कौटिल्य इकनॉमिक कॉन्क्लेव में कहा, ‘यह विकासशील देशों के लिए आवश्यक है और यह कोई काल्पनिक आकांक्षा नहीं हैं। हम विश्व की घटनाओं के लिए निष्क्रिय दर्शक नहीं रह सकते हैं जहां हमारी नियति को फैसले प्रभावित करते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘हम उस समय एकत्रित हुए हैं, जब हमारे पांव के नीचे से वैश्विक व्यवस्था की मूल बुनियाद खिसक रही है। शीत युद्ध के बाद उभरी वैश्विक व्यवस्था में वैश्वीकरण का विस्तार, खुला बाजार और बहुपक्षीय सहयोग बीते समय का प्रतीक लगती हैं।’
प्रतिबंधों और शुल्कों के साथ भूराजनीतिक तनाव बढ़ते हैं जबकि अलग-अलग होती रणनीतियां वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को नई स्वरूप दे रही हैं।
सीतारमण ने बताया, ‘एक समय जो गठबंधन बने थे, उनकी जांच की गई है और नए गठबंधन बन रहे हैं। भारत के लिए तेजी से बदलती घटनाएं जोखिम और मजबूती दोनों उजागर करती हैं।’ भारत जोखिमों को झेल सकता है और अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहा है। उन्होंने बताया, ‘हमारे चुनाव यह तय करेंगे कि मजबूती नेतृत्व का आधार बनेगा या सिर्फ अनिश्चितता के खिलाफ मात्र सुरक्षा कवच।’
सीतारमण ने कहा कि भारत न संयोगवश और न ही बदलाव के कारण विश्व में संतुलन करने की ताकत बना है बल्कि कई मजबूत कारकों के एकसाथ होने के परिणाम के कारण हुआ है।
उन्होंने कहा कि भारत की मजबूती घरेलू कारकों पर निर्भर करती है और इससे वैश्विक झटके न्यूनतम होते हैं।