उज्जीवन स्मॉल फाइनैंस बैंक और इक्विटास एसएफबी का अपनी-अपनी होल्डिंग कंपनी के साथ रिवर्स ने प्रवर्तकों की शेयरधारिता शून्य कर दी है। इस कदम से इकाइयों को भारतीय रिजर्व बैंक के दिशानिर्देश का अनुपालन करने और होल्डिंग कंपनियों की शेयरधारिता से मोटा लाभ हासिल करने में मदद मिली है। उज्जीवन फाइनैंशियल सर्विसेज के शेयर की कीमतें 20-20 फीसदी तक उछल गई जब दोनों इकाइयों को अपने-अपने स्मॉल फाइनैंस बैंक के साथ रिवर्स मर्जर की मंजूरी मिली।
जब केंद्रीय बैंक ने एसएफबी के लिए दिशानिर्देश जारी किया था तब उसने कहा था कि होल्डिंग कंपनी के ढांचे को पांच साल बाद बैंक के साथ दोबारा विलय की इजाजत दी जा सकती है, जो नियामकीय मंजूरी पर निर्भर करेगा। इस बीच, होल्डिंग कंपनी का डिस्काउंट दोनों फर्मों के लिए बाजार में 66 फीसदी से ज्यादा हो गया था क्योंंकि शेयरधारक आश्वस्त नहीं थे कि आरबीआई रिवर्स मर्जर की इजाजत दे देगा। नियामकीय मंजूरी से हर तरह के संदेह के बादल छंट गए।
उज्जीवन फाइनैंशियल सर्विसेज के चेयरमैन और उज्जीवन एसएफबी के संस्थापक एमडी व सीईओ समित घोष ने कहा, रिवर्स मर्जर होल्डिंग कंपनी के शेयरधारकों के लिए काफी लाभकारी है क्योंंकि उन्हें खास शेयर अदला-बदली अनुपात पर बैंक के शेयर मिलेंगे, जिसका फैसला अभी होना बाकी है। होल्डिंग कंपनी का ढांचा सैद्धांतिक तौर पर यूनिवर्सल बैंकों के लिए आवश्यक है, जो अपने क्लाइंटों को हर तरह की सेवाएं देते हैं। नॉन-ऑपरेटिव फाइनैंशियल होल्डिंग कंपनी का ढांचा मूल रूप से बताता है कि अगर प्रवर्तक इकाई के पास बैंक के अलावा अन्य वित्तीय कारोबार है तो सभी कारोबार का परिचालन एक साथ होना चाहिए, न कि अलग-अलग। यह बैंक को संरक्षित करने के लिए था। औद्योगिक समूह को बैंंक लाइसेंस की इजाजत नहीं है।
हालांकि अगर किसी फर्म के पास सिर्फ बैंक है तो नॉन-ऑपरेटिव फाइनैंशियल होल्डिंग कंपनी के ढांचे की दरकार नहीं होती। आरबीआई ने अपनी वेबसाइट पर एक जनवरी, 2015 को एफएक्यू में कतहा है, दिशानिर्देश के तहत एसएफबी के गठन के लिए होल्डिंग कंपनी बनाने की दरकार नहीं है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि नॉन-ऑपरेटिव फाइनैंशियल होल्डिंग कंपनी के ढांचे में प्रवर्तक होना चाहिए और गैर-प्रवर्तकों को इजाजत नहीं है। उज्जीवन एसएफबी के मामले में प्रवर्तक शेयरधारिता या एनओएफएचसी के तहत शेयरधारिता जून 2021 में 83.32 फीसदी थी। इक्विटीस के मामले में एनओएफएचसी के पास इस साल मार्च में बैंक की 81.98 फीसदी हिस्सेदारी थी।
आरबीआई के नियम मेंं कहा गया है कि एफएसबी प्रवर्तकों को पांच साल में अपनी शेयरधारिता घटाकर न्यूनकम 40 फीसदी पर लानी होगी। इस मामले में रिवर्स मर्जर से प्रवर्तकों की शेयरधारिता शूनन्य हो जाएगी और होल्डिंग कंपनी का अस्तित्व नहीं रहेगा। घोष ने कहा, बाजार में होल्डिंग कंपनी की ट्रेडिंग 40-50 फीसदी छूट पर हो रही थी क्योंकि निवेशकों को भरोसा नहीं था कि होल्डिंग कंपनी का पांच साल बाद बैंक के साथ रिवर्स मर्जर हो सकता है। अब इसकी मंजूरी मिल गई है और ऐसे में होल्डिंग कंपनी के शेयरधारक अप सीधे तौर पर बैंक के शेयरधारक होंगे।