भारत में तेजी से बढ़ता म्युचुअल फंड उद्योग कई फर्मों को इस क्षेत्र में आकर्षित कर रहा है। ढेर सारी कंपनियों ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) के पास परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी (AMC) के लाइसेंस के लिए आवेदन जमा कराया है। इस क्षेत्र में आने वाली अधिकतर नई कंपनियों के पास पहले से ही स्टॉक ब्रोकिंग, निवेश बैंकिंग या म्युचुअल फंड वितरण क्षेत्र का अनुभव और विशेषज्ञता है।
हाल में आवेदन करने वाली फर्मों में पेंटोमैथ कैपिटल एडवाइजर्स, च्वॉइस इंटरनैशनल और अल्फाग्रेप सिक्योरिटीज शामिल हैं। इस बीच रिलायंस इंडस्ट्रीज के निवेश वाली जियो-ब्लैकरॉक एएमसी और कैपिटलमाइंड एएमसी को हाल में कारोबार शुरू करने के लिए नियामक की हरी झंडी मिली है। 66 लाख करोड़ रुपये के म्युचुअल फंड उद्योग में एनजे म्युचुअल फंड, जीरोधा म्युचुअल फंड और हेलिओस म्युचुअल फंड ने हाल में एएमसी का कारोबार शुरू किया है।
खुदरा भागीदारी को देखते हुए म्युचुअल फंड उद्योग के वित्त वर्ष 2024 से 30 के बीच सालाना 18 फीसदी चक्रवृद्धि दर से बढ़ने का अनुमान है। नए आवेदनों को इस व्यवसाय में विविधता लाने और पूंजी बाजार में उपस्थिति बढ़ाने के उपाय के रूप में देखा जा रहा है।
एक आवेदक ने पहचान गुप्त रखे जाने के अनुरोध के साथ कहा, ‘म्युचुअल फंड एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जिसमें अभी हम मौजूद नहीं हैं। इसलिए यह स्वाभाविक विस्तार है। हम सक्रिय प्रबंधन क्षेत्र पर ध्यान देना चाहेंगे। हमारी दक्षता मिड-मार्केट सेगमेंट में है जबकि एआईएफ में न्यूनतम निवेश 1 करोड़ रुपये का है। हमारी टीम तैयार है। हमने इसका नेतृत्व करने के लिए दिग्गजों को शामिल किया है।’
हालांकि इस उद्योग में पहले से ही 46 कंपनियां हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें और अधिक कंपनियों के लिए गुंजाइश है क्योंकि निवेश साधन के रूप में फंडों का वैश्विक मानकों की तुलना में अभी भी पर्याप्त उपयोग नहीं हुआ है।
आदित्य बिड़ला सनलाइफ एएमसी के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी ए बालासुब्रमण्यन ने कहा, ‘घरेलू बचत और निवेश के लिहाज से म्युचुअल फंड अब एक स्वीकार्य विकल्प बन गए हैं। अगले पांच साल में म्युचुअल फंड उद्योग में कंपनियों की संख्या 100 पर भी पहुंच सकती है क्योंकि देश में इस उद्योग की तेजी से पैठ बढ़ रही है। हालांकि मौजूदा कंपनियों को अपनी प्रतिस्पर्धी क्षमता साबित करनी होगी।’
एक ताजा रिपोर्ट में नोमूरा ने भारतीय एएमसी उद्योग के लिए मजबूत विकास क्षमता को रेखांकित किया। इसकी वजह एसआईपी प्रवाह में निरंतर मजबूत गति और सकल घरेलू बचत के प्रतिशत के रूप में म्युचुअल फंडों की बढ़ती हिस्सेदारी है। नोमुरा के विश्लेषण के अनुसार भारत का फंड एयूएम-जीडीपी अनुपात वित्त वर्ष 2024 तक 18 प्रतिशत पर था और यह वित्त वर्ष 2023 के 65 प्रतिशत के वैश्विक औसत से काफी कम और कई उभरते बाजारों से भी नीचे है।
सितंबर में एसआईपी प्रवाह 24,500 करोड़ रुपये की सर्वाधिक ऊंचाई पर पहुंच गया और निवेशकों की संख्या 5 करोड़ के पार हो गई। नोमूरा ने कहा है, ‘उम्मीद है कि भारत के म्युचुअल फंड उद्योग की एयूएम वित्त वर्ष 2024-30 एफ के दौरान 18 प्रतिशत की सालाना वृद्धि दर्ज करेगी क्योंकि उसे इक्विटी सेगमेंट (20 प्रतिशत वृद्धि) और पैसिव (24 प्रतिशत) से मदद मिलेगी।’
सेबी ने हाल में निवेश रणनीतियों के आधार पर एक नए एसेट क्लास की शुरूआत को मंजूरी दी है – इसे पीएमएस और एआईएफ के बीच रखा गया है। इसके अलावा, उसने एएमसी के लिए एमएफ लाइट नाम से एक अलग नियामकीय व्यवस्था जारी करने का फैसला किया है।