भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) बड़े आईपीओ (5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा) की सुगमता के मकसद से अहम सुधार लागू करने की तैयारी में है। इन प्रस्तावों में व्यक्तिगत निवेशकों (जो 2 लाख रुपये से कम राशि के साथ आवेदन करते हैं) के लिए आरक्षित कोटा मौजूदा 35 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी करना शामिल है। इसमें पात्र संस्थागत खरीदारों (क्यूआईबी) के लिए आवंटन 50 फीसदी से बढ़ाकर 60 फीसदी करने का प्रस्ताव है। यह कदम बड़े सार्वजनिक निर्गमों में दक्षता और स्थिरता में सुधार के लिए है।
सूत्रों के अनुसार, इसके अलावा सेबी बड़ी लिस्टिंग के लिए अनिवार्य विनिवेश मानदंडों को आसान बनाने पर भी विचार कर रहा है। अभी 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्यांकन वाली कंपनियों को आईपीओ में कम से कम 5 फीसदी हिस्सेदारी बेचनी होती है। सूत्रों ने बताया कि नियामक इस आवश्यकता को आधा करके 2.5 फीसदी करने पर विचार हो रहा है, जिससे रिलायंस जियो इन्फोकॉम, नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) और फ्लिपकार्ट जैसी बड़ी कंपनियों को लिस्टिंग में अधिक लचीलापन मिलेगा और उन्हें शुरुआत में आम लोगों से बड़ी रकम जुटाने की आवश्यकता नहीं होगी।
अभी 1 लाख करोड़ रुपये मूल्यांकन वाली कंपनी को आईपीओ में 5,500 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर बेचने की जरूरत होती है। नए प्रस्ताव से जरूरी पेशकश में काफी कमी आ सकती है। निवेश बैंकरों ने सेबी की पहल का स्वागत किया है और इसके लिए 1 अरब डॉलर से अधिक मूल्यांकन वाली फर्मों की लिस्टिंग में वृद्धि और बड़े आईपीओ के लिए लाखों खुदरा निवेशकों से धन जुटाने में परिचालन चुनौतियों का हवाला दिया है।
उदाहरण के लिए, गैर-सूचीबद्ध बाजार में एनएसई का मूल्यांकन करीब 6 लाख करोड़ रुपये है। मौजूदा नियमों के तहत इसके लिए लगभग 30,000 करोड़ रुपये के आईपीओ लाना अनिवार्य है। इसी तरह जियो के संभावित आईपीओ (जिसका मूल्यांकन 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक है) के लिए 50,000 करोड़ रुपये से कहीं अधिक के सार्वजनिक निर्गम की आवश्यकता हो सकती है।
ह्युंडै मोटर इंडिया के 27,859 करोड़ रुपये के आईपीओ जैसे हालिया अनुभव (जिसमें खुदरा श्रेणी में आधे से भी कम आवेदन आए) बड़ी पेशकश में खुदरा श्रेणी में पूरे आवेदन पाने की कठिनाइयों को उजागर करते हैं। शुरुआती पेशकश का आकार कम करने से बड़ी कंपनियों को अपनी सार्वजनिक हिस्सेदारी को संतुलित करने की सुविधा मिलेगी, बजाय इसके कि उन्हें एक साथ बड़ी हिस्सेदारी बेचने के लिए मजबूर होना पड़े।
उद्योग के विश्लेषकों ने बाजार के अनुकूल नजरिए के लिए सेबी की प्रशंसा की है। इक्विरस के एमडी और निवेश बैंकिंग प्रमुख भावेश शाह ने कहा, बड़े इश्यू के लिए पर्याप्त संस्थागत मांग सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है। संस्थाएं अक्सर म्युचुअल फंडों के जरिए खुदरा निवेशकों के धन का प्रबंधन करती हैं। लंबी अवधि के नज़रिए से ज्यादा संस्थागत कोटा और कम खुदरा आवंटन सकारात्मक कदम है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि सेबी ने आवश्यकतानुसार नियमों में संशोधन किया है, पहले कोल इंडिया के लिए, फिर एलआईसी के लिए। वे इसमें और ढील देने को लाभकारी मानते हैं। जेएसए एडवोकेट्स ऐंड सॉलिसिटर्स में पार्टनर मधुरिमा मुखर्जी साहा ने कहा, सेबी के लिए मामले के हिसाब से छूट की शक्ति भविष्य में उन परिदृश्यों में भी सहायक होगी, जिनमें लचीलेपन की आवश्यकता होती है। साहा ने कहा कि कम विनिवेश के लिए सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट रेग्युलेशन (एससीआरआर) में बदलाव की आवश्यकता होगी।
एक अन्य प्रमुख प्रस्ताव एंकर निवेशक ढांचे को लक्षित करता है। सेबी 250 करोड़ रुपये से अधिक के आवंटन के लिए एंकर निवेशक आवंटियों की सीमा बढ़ाने की योजना बना रहा है, जिससे कई फंडों का प्रबंधन करने वाले बड़े विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को लाभ होगा। इसके अतिरिक्त, बीमा कंपनियों और पेंशन फंडों को एंकर निवेशक श्रेणी में बड़ा हिस्सा दिया जा सकता है, जिससे ऐसे इश्यू के लिए उनके आरक्षित कोटे को 30 फीसदी से बढ़ाकर 40 फीसदी किया जा सकता है।
विशेषज्ञों ने कहा कि सेबी के प्रस्ताव बाजार के बदलते आयाम के अनुरूप हैं। इससे बड़ी पूंजी वाली कंपनियों के लिए सूचीबद्ध होना आसान हो जाएगा, संस्थागत भागीदारी बढ़ेगी और इंटरमीडियरीज पर परिचालन संबंधी दबाव कम होगा।