आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के तहत ऑफर फॉर सेल (ओएफएस) के जरिये जुटाई गई रकम साल 2025 में करीब 96,000 करोड़ रुपये के नए शिखर पर पहुंच गई। इसने पिछले वर्ष के 95,285 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर को पार कर लिया। साल 2025 में आईपीओ से अभी तक कुल 1.53 लाख करोड़ रुपये जुटाए गए हैं जो पिछले वर्ष के उच्चतम स्तर 1.59 लाख करोड़ रुपये से 7,160 करोड़ रुपये कम है। आईपीओ में नए शेयर जारी करके जुटाई गई नई पूंजी इस वर्ष 56,796 करोड़ रुपये रही है जो विशेषज्ञों के अनुसार एकल आधार पर अभी भी अच्छी है।
साल खत्म होने में अभी छह सप्ताह बाकी है। आईपीओ की कुल संख्या पिछले वर्ष का रिकॉर्ड तोड़ने के कगार पर है। साथ ही ओएफएस से जुटाई गई रकम भी एक साल में पहली बार 1 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा पार करने जा रही है।
प्राइम डेटाबेस के अनुसार 2015 से अभी तक आईपीओ से जुटाई गई कुल रकम का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा ओएफएस (4.73 लाख करोड़ रुपये) के रूप में रहा है जबकि केवल 2.44 लाख करोड़ रुपये नए शेयर से आए हैं।
आईपीओ से मिलने वाली नई पूंजी आम तौर पर पूंजीगत व्यय में जाती है। इसे आर्थिक गति का सूचक माना जाता है। इसके विपरीत ओएफएस स्वामित्व में बदलाव का प्रतीक है। इसके तहत आमतौर पर निजी इक्विटी (पीई) निवेशक या प्रवर्तक अपनी हिस्सेदारी बेचते हैं। हालांकि इस तरह से मिलने वाली रकम से सीधे कंपनी को विस्तार के लिए धन नहीं मिलता। फिर भी इसका उत्पादक इस्तेमाल हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि पीई निवेशक ऐसी पूंजी को नए उद्यमों में लगा सकते हैं और प्रवर्तक नए कारोबारों में पैसा डाल सकते हैं।
इस साल लेंसकार्ट, ग्रो और पाइन लैब्स समेत नई पीढ़ी की कंपनियों के ज्यादातर आईपीओ में नई पूंजी के मुकाबले ओएफएस की हिस्सेदारी ज्यादा रही है। कई मामलों में शुरुआती निवेशकों ने जबरदस्त मुनाफा कमाया है। लिहाजा, यह चिंता बढ़ गई है कि पीई फंड खुदरा निवेशकों को बेचकर अपना पैसा निकाल रहे हैं। मगर बाजार के प्रतिभागी इस दृष्टिकोण को खारिज करते हैं।
इक्विरस कैपिटल के प्रबंध निदेशक और निवेश बैंकिंग प्रमुख भावेश शाह ने कहा, आईपीओ में ओएफएस का आधिक्य बाजार के लिए अच्छा संकेत है। निवेशकों को इस बात पर ध्यान देने के बजाय कि उनकी पूंजी का इस्तेमाल प्राथमिक निर्गम से धन जुटाने के लिए किया जा रहा है या नहीं, कारोबार की बुनियादी बातों पर ध्यान देना चाहिए।
उन्होंने कहा, अतीत में प्राथमिक निर्गमों के प्रति झुकाव था। लेकिन इसका मतलब अक्सर नकदी पैदा करने वाले कारोबारों के बजाय नकदी की कमी वाले कारोबारों को धन मुहैया कराना होता था। वास्तव में, निवेशकों को उन परिपक्व, नकदी पैदा करने वाली कंपनियों में अधिक मूल्य मिलता है, जिन्हें आमतौर पर प्राथमिक पूंजी की कम आवश्यकता होती है।
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि भारत का आईपीओ ढांचा प्राइमरी और सेकंडरी दोनों प्रकार के निर्गमों का समर्थन करने के लिहाज से परिपक्व हो गया है। इसलिए यह मिश्रण अब कम प्रासंगिक है।