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कमाई नहीं, टैक्स बचाना है मकसद! नितिन कामत ने बताया भारत के IPO बूम का असली राज

भारत के शेयर बाज़ार में नए-नए स्टार्टअप्स की IPO की लहर है। लेकिन जेरोधा के को-फाउंडर नितिन कामत का कहना है कि इस जोश के पीछे असली वजह कंपनियों की ग्रोथ नहीं है

Last Updated- November 04, 2025 | 4:02 PM IST
Nithin Kamath

आजकल भारत के शेयर बाजार में बहुत सी नई कंपनियां अपने IPO ला रही हैं। लेकिन जेरोधा (Zerodha) के को-फाउंडर नितिन कामत का कहना है कि यह सिर्फ कंपनियों के बढ़ने या नाम कमाने की चाह नहीं है। इसके पीछे भारत का टैक्स सिस्टम भी एक बड़ी वजह है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (X) पर लिखा कि भारत का टैक्स नियम ऐसा है जो निवेशकों और बड़ी कंपनियों को मुनाफे की जगह ऊंची वैल्यू (Valuation) दिखाने के लिए प्रोत्साहित करता है।

डिविडेंड और कैपिटल गेन के टैक्स में इतना फर्क क्यों है?

कामत का कहना है कि अगर कोई निवेशक कंपनी से डिविडेंड यानी मुनाफे का पैसा निकालता है, तो उस पर करीब 52% तक टैक्स देना पड़ता है। इसमें कंपनी का 25% कॉर्पोरेट टैक्स और व्यक्ति का 35.5% इनकम टैक्स शामिल होता है।

लेकिन अगर वही निवेशक कंपनी के शेयर बेचकर पैसा कमाता है, तो उसे सिर्फ करीब 15% टैक्स देना पड़ता है। कामत ने कहा, “अगर आप निवेशक हैं, तो बात सीधी है। मुनाफा दिखाने के बजाय यूजर बढ़ाइए, कंपनी की ग्रोथ की कहानी बनाइए और फिर शेयर ऊंचे दाम पर बेच दीजिए। इससे टैक्स भी कम लगेगा और कंपनी की वैल्यू भी ज्यादा बनेगी।”

क्या टैक्स बचाने की होड़ में स्टार्टअप्स मुनाफा भूल गए हैं?

कामत का कहना है कि इस टैक्स के फर्क की वजह से, वेंचर कैपिटल (VC) वाले निवेशक स्टार्टअप कंपनियों को ज्यादा खर्च करने और मुनाफा बाद में कमाने के लिए कहते हैं। इसी कारण, पिछले कुछ सालों में जो भी VC की मदद से बनी कंपनियां शेयर बाजार में आई हैं, उनमें से ज्यादातर अभी तक घाटे में चल रही हैं।

कामत ने कहा, “जो कंपनियां बहुत तेजी से बढ़ती हैं, भले ही घाटे में हों, उनकी वैल्यूएशन ज्यादा होती है। लेकिन जो कंपनियां धीरे-धीरे बढ़ती हैं और मुनाफा कमाती हैं, उन्हें कम वैल्यू दी जाती है।” उदाहरण के लिए, अगर किसी कंपनी की कमाई 100 करोड़ रुपये है और वह हर साल 100% की दर से बढ़ रही है, तो उसकी वैल्यू 10 से 15 गुना तक लग सकती है। जबकि कोई दूसरी कंपनी अगर 20% की दर से बढ़ रही है और मुनाफा भी कमा रही है, तो उसे सिर्फ 3 से 5 गुना वैल्यू मिलती है।

IPO ही बचा एकमात्र रास्ता

कामत का कहना है कि भारत में कंपनियों के मिलने या बिकने (Merger & Acquisition) के मौके बहुत कम हैं। इस वजह से, निवेशकों के पास IPO ही एक मुख्य रास्ता बचता है जिससे वे अपना पैसा वापस निकाल सकें। उन्होंने कहा, “हर स्टार्टअप पर निवेशकों (VCs) का दबाव होता है कि वह जल्दी से जल्दी IPO लाए, ताकि उन्हें अपना रिटर्न (मुनाफा) मिल सके।”

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क्या टैक्स पॉलिसी तैयार कर रही है कमजोर और नकदी पर निर्भर कंपनियां?

कामत ने माना कि सरकार की मंशा शायद निवेश को बढ़ावा देने की थी, लेकिन इस टैक्स ढांचे ने ऐसी कंपनियाँ पैदा की हैं जो कर्ज़ और नकदी पर ज़्यादा निर्भर हैं। उन्होंने चेतावनी दी, “एक लंबे मार्केट डाउनटर्न में, ऐसी कंपनियाँ टिक नहीं पाएंगी,”

कामत का कहना है कि सरकार का इरादा शायद निवेश को बढ़ावा देना था, ताकि लोग कंपनियों में ज्यादा पैसा लगाएं। लेकिन उन्होंने कहा कि इस टैक्स सिस्टम की वजह से अब ऐसी कंपनियां बन रही हैं जो कर्ज और नकदी (कैश) पर ज्यादा निर्भर हैं। उन्होंने चेतावनी दी, “अगर बाजार कुछ समय के लिए नीचे चला गया, तो ऐसी कंपनियां ज्यादा दिन नहीं टिक पाएंगी।”

First Published - November 4, 2025 | 3:51 PM IST

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