स्पंज आयरन यूनिट को बेचने का फैसला उचित है,चूंकि यह यूनिट मुनाफा देने में नाकाम साबित हो रहा था।
ग्रासिम स्पाँज आइरन का कारोबार बिल्कुल स्पाँज की भांति हो चला था जो कंपनी का कीमती प्रबंधन वक्त और पूंजी दोनों के लिए ही नाकारा साबित हो गया था। इस प्लांट का कैपिटल यूटिलाइजेशन महज 65 फीसदी था,क्योंकि प्लांट को पर्याप्त मात्रा में गैस उपलब्ध नही थी।
लिहाजा कंपनी के टॉपलाइन ग्र्रोथ में यह सिर्फ 6 फीसदी ही अपना योगदान दे पा रहा था। इसलिए कंपनी ने आखिरकार इसे 1,030 करोड़ रुपये पर बेच दिया। हालांकि यह यूनिट वित्तीय वर्ष 2008 की बिक्री के आकलन के 1.08 गुना पर कारोबार कर रहा है जबकि टाटा स्पंज 0.88 गुना पर कारोबार कर रहा है।
दूसरी ओर 17,037 करोड़ का कारोबार करने वाली यह कंपनी अपनी क्षमता को 3 करोड़ 10 लाख से 4 करोड़ 80 लाख करने की सोच रहा है(ऍल्ट्रा टेक को मिलाकर )। कंपनी के रेवेन्यू का जहां तक सवाल है तो इसके 69 फीसदी रेवेन्यू की उगाही सीमेंट के कारोबार से होती है। कच्चे माल की लागतों और ईंधन की कीमत में इजाफा होने के चलते मार्च 2008 को खत्म हुई तिमाही में इसके मार्जिन में 55 बेसिस पाइंट की कमी आई।
अगले साल तक 2 करोड़ टन सीमेंट केपेसिटी सिस्टम में आ जाएगी। इससे बाजार में कुल 1 करोड़ टन के सीमेंट की सरप्लस मौजूदगी हो जाएगी जो अंतिम रूप से इनकी कीमतों में 10 से 15 फीसदी की कमी ला देंगे। मार्च तिमाही तक इस कंपनी के सीमेंटों की कीमत 3,267 रुपये प्रति टन आंकी गई थी जो पिछले साल के मुकाबले 10 फीसदी अधिक है।
इसके बाद जून की तिमाही से सीमेंट की कीमतें पहले ही कमजोर हैं। इसके अलावा कंपनी के रेवेन्यू में अपनी 20 फीसदी की हिस्सेदारी देने वाले फाइबर औप प्लप कारोबार भी खासा दवाब झेल रहा है। ऐसा सल्फर की कीमतों में इजाफा होने के चलते हो रहा है। इसके अलावा इस सेगमेंट का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन मार्च की तिमाही में 410 बेसिस प्वांइट कम हुआ है।
ग्रासिम की वित्तीय वर्ष 2009 में प्रति शेयर आय जो वित्तीय वर्ष 2008 में 289.4 रुपये थी, से गिरकर 260 रुपये होने का अनुमान है। अंत में 2210 रुपये की कीमत पर शेयर वित्तीय वर्ष 2009 की अनुमानित आय की तुलना में 8.4 गुना पर कारोबार कर रहे हैं जबकि दूसरी कंपनियों मसलन एसीएसी की बात करें तो इसके शेयर 632 रुपये पर वाणिज्यिक वर्ष 2008 के आकलित मूल्य के लिए 9.6 पर कारोबार कर रहा है।
पीवीआर – धंधा है मंदा
मार्च 2008 तिमाही में बहुत ज्यादा लोगों के थियेटर में फिल्म देखने न आने के चलते इस कंपनी के रेवेन्यू में पिछले साल के मुकाबले महज 33 फीसदी का इजाफा हुआ है। लिहाजा,इसने कंपनीह के स्टैंड अलोन कारोबार के ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन यानि ओपीएम में खासी गिरावट दर्ज की गई है।
यह गिरावट 350 बेसिस प्वांइट के साथ कुल 13 फीसदी की है। नतीजतन कंपनी का शुद्ध मुनाफा महज 23 फीसदी पर आकर ठिठक गया है। ऐसा अमूमन होता है कि मार्च का महीना थिएटर वालों के लिए मुफीद साबित नही होता। इसके अलावा इस महीने में ज्यादतर फिल्में बॉक्स आफिस पर पिट गईं हैं,लिहाजा इसने पीवीआर जैसी कंपनियों के थिएटरों का धंधा मंदा करने में कोई कसर बाकी नही रखी है।
आलम यह है कि कंपनी के ऑक्यूपेंसी लेवल में भी कमी दर्ज की गई है और मार्च 2007 की तिमाही के 36.2 फीसदी के मुकाबले इस बार यह स्तर महज 32 फीसदी का रह गया है। यहां तारीफ के काबिल टिकट हैं जिन्होनें कंपनी को कुछ हद तक मदद दी। टिकटों की कीमतों में इजाफे के चलते के साथ-साथ दर्शकों द्वारा खाने और पीने पर खर्च के चलते कंपनी को कुछ हद तक अपना रेवेन्यू जुटाने में मदद मिली।
जबकि पीवीआर के लिए वित्तीय वर्ष 2008 बेहतर साबित हुआ था जिस दौरान कंपनी ने हाइयर फुटफॉल प्राप्त किया था। इसके अलावा फिल्मों के प्रॉडक् शन समेत वितरण से रेवेन्यू की उगाही भी खूब की थी। कुल मिलाकर कहें तो कंपनी के रेवेन्यू में 50 फीसदी के इजाफे के साथ कुल 266 करोड़ रुपये की उगाही हुई थी। बिक्री में इजाफा भी खासा रहा था और 16 नई स्क्रीनों के साथ कंपनी का बेसिस प्वांइट उछलकर 16 फीसदी का हो गया था।
पीवीआर ने वित्तीय वर्ष 2009 के अंत तक कुल 125 नई स्क्रीनें और फिल्मों प्रॉडयूस करने में कुल 80 से 100 करोड़ रुपयों का निवेश करेगा। हालांकि पीवीआर ने अब तक सफलतापूर्वक फिल्मों को प्रॉडयूस किया है लेकिन जो जोखिम वाला कारोबार रहा है वो यह है कि फिल्मों का प्रॉडक्शन और वितरण खासा जोखिम वाला कारोबार साबित रहा है। मसलन जून 2008 की बात करें तो इस महीने में बहुत कम फिल्में ही बॉक्स ऑफिस पर चल सकी हैं।