पिछले दो साल से बैंकिंग और फाइनेंशियल सेक्टर के म्यूचुअल फंड्स धीमी चाल में थे। 2023 और 2024 में इनका प्रदर्शन बाकी इक्विटी फंड्स की तुलना में कमजोर रहा। लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। बैंकिंग सेक्टर की वैल्यूएशन इतनी सस्ती हो गई है कि अगर क्रेडिट ग्रोथ में तेजी आई, तो ये निवेशकों को शानदार रिटर्न दे सकते हैं।
पिछले साल बैंकिंग सेक्टर क्यों पिछड़ा?
बैंकिंग सेक्टर के फंड्स के कमजोर प्रदर्शन की कई वजहें थीं। सबसे पहले, बैंकों पर लोन-टू-डिपॉजिट रेशियो (LDR) को लेकर सख्ती हुई, जिससे उनका उधार देने का मार्जिन कम हो गया। इसके अलावा, अनसिक्योर्ड लोन (बिना गारंटी वाले कर्ज) को लेकर बढ़ती चिंताओं ने निवेशकों को सावधान कर दिया। क्रेडिट ग्रोथ को लेकर भी अनिश्चितता बनी रही, जिससे बैंकिंग सेक्टर में निवेशकों का भरोसा कमजोर पड़ गया।
ICICI प्रूडेंशियल बैंकिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज फंड के सीनियर फंड मैनेजर रोशन चटकी के मुताबिक, इन वजहों से बैंकिंग सेक्टर में निवेश का जोश ठंडा पड़ गया। टाटा एसेट मैनेजमेंट के फंड मैनेजर अमेय साथे का कहना है कि बैंकिंग सेक्टर की अर्निंग्स ग्रोथ 13-14% थी, जबकि कई दूसरे सेक्टर्स 20-25% की दर से बढ़ रहे थे। ऐसे में निवेशकों ने पैसा कहीं और लगाना बेहतर समझा।
विदेशी निवेशकों (FIIs) ने भी बैंकिंग सेक्टर में जमकर बिकवाली की। करीब 40% FII सेलिंग फाइनेंशियल सेक्टर में हुई, जिससे यह सेक्टर और दबाव में आ गया। बीमा सेक्टर भी रेगुलेटरी बदलावों के कारण सुस्त पड़ा रहा।
अब ग्रोथ की उम्मीद क्यों है?
फंड मैनेजर्स को अब उम्मीद है कि क्रेडिट ग्रोथ में तेजी आएगी। आने वाले 12-18 महीनों में कॉरपोरेट लोन की मांग बढ़ सकती है क्योंकि कंपनियां अपने निवेश बढ़ाने की तैयारी कर रही हैं। पिछले तीन-चार सालों में क्रेडिट ग्रोथ मुख्य रूप से रिटेल लोन (खुदरा कर्ज) पर टिकी थी, लेकिन अब कॉरपोरेट लोन ग्रोथ भी इसमें योगदान देगा।
Mirae Asset Investment Managers (India) के फंड मैनेजर गौरव कोचर का मानना है कि FY25 की पहली छमाही में चुनावों के चलते कैपेक्स धीमा था, लेकिन दूसरी छमाही और FY26 में इसमें बूम आ सकता है।
बड़े बैंकों को सबसे ज्यादा फायदा
बड़े बैंकों की स्थिति मजबूत नजर आ रही है। जिन बैंकों की लायबिलिटी फ्रेंचाइजी (फंड जुटाने की क्षमता) अच्छी है, वे आसानी से सस्ती दरों पर फंड जुटा सकते हैं और बड़े कर्जदारों को किफायती दरों पर लोन दे सकते हैं। इससे वे सिस्टम में एसेट क्वालिटी की समस्याओं से बेहतर तरीके से निपट सकते हैं। ICICI प्रूडेंशियल के चटकी का कहना है कि बड़े बैंक कम लागत पर फंड जुटा सकते हैं, जिससे वे हाई-क्वालिटी कस्टमर्स को अच्छे रेट पर लोन दे सकते हैं और आगे बढ़ सकते हैं।
क्या ब्याज दरों में कटौती से बैंकिंग सेक्टर को फायदा होगा?
विशेषज्ञ मानते हैं कि FY26 में RBI दो बार ब्याज दरों में कटौती कर सकता है। इससे कर्ज लेना सस्ता होगा, जिससे क्रेडिट ग्रोथ को बढ़ावा मिलेगा और बैंकिंग सेक्टर का मुनाफा बढ़ सकता है। Mirae Asset Investment Managers के गौरव कोचर के मुताबिक, ब्याज दरों में कमी से उपभोक्ता मांग और औद्योगिक निवेश दोनों को फायदा मिलेगा, जिससे बैंकिंग सेक्टर को ग्रोथ का सपोर्ट मिलेगा।
इतनी सस्ती वैल्यूएशन पहले कभी नहीं दिखी!
टाटा एसेट मैनेजमेंट के फंड मैनेजर अमेय साठे कहते हैं, वैल्यूएशन के लिहाज से बैंकिंग सेक्टर इस समय बेहद आकर्षक स्थिति में है। निफ्टी बैंक इंडेक्स का निफ्टी 50 के मुकाबले डिस्काउंट अपने लाइफटाइम हाई पर है। कई बड़े बैंक ऐसे रेट पर ट्रेड कर रहे हैं, जो कोविड या ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस के समय भी नहीं देखे गए थे।
Sanctum Wealth के डायरेक्टर हेमांग कपासी के मुताबिक, कोविड से पहले बैंकिंग सेक्टर की प्राइस-टू-बुक वैल्यू 2.3-2.5 गुना थी, लेकिन अब यह 1.7-1.8 गुना पर आ गई है। यानी, बैंकिंग सेक्टर में निवेश का ऐसा मौका पहले बहुत कम देखने को मिला है।
जोखिम भी हैं, इन्हें नजरअंदाज न करें
बैंकिंग सेक्टर का प्रदर्शन इस बात पर निर्भर करेगा कि क्रेडिट डिमांड कितनी बढ़ती है। यदि GDP ग्रोथ, जो फिलहाल 6.5-7% के आसपास है, गिरकर 3.5-4% तक आ गई, तो बैंकिंग सेक्टर को बड़ा झटका लग सकता है।
साथ ही, अगर NPA (गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) का संकट अनसिक्योर्ड लोन से सिक्योर्ड लोन (जैसे हाउसिंग और ऑटो लोन) तक फैल गया, तो सेक्टर पर और दबाव आ सकता है।
क्या अभी निवेश करना चाहिए?
Sanctum Wealth के कपासी कहते हैं कि सेक्टर फंड्स में निवेश करने का सही समय वही होता है जब सेक्टर में गिरावट हो, ताकि अगले 1.5-2 साल में होने वाली रिकवरी का पूरा फायदा उठाया जा सके। वर्तमान में बैंकिंग सेक्टर की वैल्यूएशन लॉन्गटर्म औसत से नीचे है, और जैसे-जैसे ग्रोथ आउटलुक सुधरेगा, इसमें री-रेटिंग की संभावना है।
SEBI से रजिस्टर्ड निवेश सलाहकार और सहजमनी डॉट कॉम के संस्थापक अभिषेक कुमार कहते हैं, निवेशकों को ध्यान रखना चाहिए कि सेक्टर फंड्स में रिस्क ज्यादा होता है। निवेशकों को इस उतार-चढ़ाव के लिए तैयार रहना चाहिए। निवेश का हिस्सा सीमित रखना बेहतर होगा—इक्विटी पोर्टफोलियो का 10-15% से ज्यादा इसमें न लगाएं। साथ ही, कम से कम 3-5 साल का नजरिया रखें, ताकि बाजार में होने वाले उतार-चढ़ाव का असर कम हो और बेहतर रिटर्न की संभावना बनी रहे।