आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) एल्गोरिदम आधारित तपेदिक (टीबी) जांच से टीबी मरीजों की बढ़ती संख्या का पता चल रहा है। साथ ही 30-40 फीसदी ऐसे मरीजों की पहचान भी हो रही हैं जिन्हें इसका पता नहीं है और वे उसका इलाज नहीं करा रहे थे।
मेडिकल इमेजिंग और डायग्नोस्टिक्स के लिए एआई आधारित समाधान प्रदान करने वाली मुंबई की प्रौद्योगिकी स्टार्टअप कंपनी क्योर.एआई ने इंडिया हेल्थ फंड (आईएचएफ) के साथ मिलकर फरवरी 2020 से अबतक भारत के 139 स्वास्थ्य केंद्रों पर क्यूएक्सआर उपकरण लगाए हैं। यह एआई के जरिये टीबी की जांच (स्क्रीनिंग) करती हैं और अब तक करीब 1,20,031 लोगों की जांच की गई है। आईएचएफ एक गैर-लाभकारी संगठन है, जिसे एड्स, टीबी और मलेरिया से लड़ने के लिए टाटा ट्रस्ट और द ग्लोबल फंड की संयुक्त पहल के तौर पर स्थापित किया गया है।
क्योर.एआई के मुख्य कार्य अधिकारी और सह-संस्थापक प्रशांत वारियर ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘हमें ऐसा लगा कि देश में पर्याप्त रेडियोलॉजिस्ट की कमी है और दूर-दराज के इलाकों के लोगों को एक्स-रे में परेशानी होती है। हम एआई लेकर आए ताकि वह तुरंत छाती की एक्स-रे पढ़ सके। छाती के एक्स-रे से टीबी का पता लगाने के लिए किसी को रेडियोलॉजिस्ट की जरूरत नहीं है, केवल एल्गोरिदम पर निर्भर रहना होगा।’
क्यूएक्सआर उन तीन एआई एल्गोरिदम में से एक था जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मार्च 2021 के टीबी स्क्रीनिंग दिशानिर्देशों में संदर्भित किया था।
वारियर ने समझाया कि अभी जिन मरीजों में टीबी के लक्षण होते हैं वह छाती की एक्स-रे कराता है। उसकी रिपोर्ट जब तक आती है तब तक मरीज की स्थिति और बिगड़ जाती है। अगर इसके लिए हम एआई का उपयोग करें तो यह तुरंत रिपोर्ट देगा और मरीज का इलाज भी उसी दिन शुरू हो सकेगा।
उन्होंने दावा किया, ‘हमारे पास मुंबई और राजस्थान के आंकड़े हैं। उससे पता चलता है कि मरीजों की संख्या काफी बढ़ी है। नतीजतन फॉलोअप मामलों की संख्या घटी है। जब तक जांच रिपोर्ट आते हैं तब तक कई बार मरीजों की मौत हो जाती है क्योंकि वे लंबी दूरी की यात्रा कर इलाज कराने के लिए पहुंचते हैं। अगर हम राजस्थान और मुंबई के आंकड़ों को देखें तो संख्या में 30 से 40 फीसदी का इजाफा हुआ है।’
आईएचएफ के मुख्य कार्य अधिकारी माधव जोशी ने कहा कि बृहन्मुंबई महानगरपालिका इसका उदाहरण है। उन्होंने कहा, ‘बृहन्मुंबई महानगरपालिका के मामले में वहां उसकी शुरुआत उन मरीजों के एक्सरे के लिए की गई थी, जो टीबी की जांच कराने के लिए पहुंचे थे। फिर अन्य बीमारियों का इलाज कराने के लिए आने वाले मरीजों तक इसका विस्तार किया गया और अब बृहन्मुंबई महानगरपालिका को वैसे 20 फीसदी टीबी के मरीज मिले जो असलियत में टीबी का नहीं बल्कि अन्य बीमारियों का इलाज कराने के लिए पहुंचे थे।’ जोशी बताते हैं इससे पता चलता है कि टीबी का दायरा बढ़ा रहा है और मुंबई में टीबी के काफी अधिक मरीज हैं।
अचानक से मिलने वाले मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है। वारियर कहते हैं बृहन्मुंबई महानगरपालिका में करीब 35 फीसदी टीबी मरीज अचानक मिले। अनुमान है कि लगभग 40 फीसदी टीबी के मामले बिना लक्षण वाले होते हैं।
बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) ने अपने अस्पतालों में एआई वाले चेस्ट एक्स-रे आधारित निगरानी का उपयोग करके बिना लक्षण वाले टीबी रोगियों का पता लगाकर टीबी उन्मूलन की दिशा में अपने प्रयासों में तेजी लाने के लिए कदम उठाए। इस कार्यक्रम के माध्यम से बृहन्मुंबई महानगरपालिका के सात अस्पतालों में अब तक 1 लाख से अधिक लोगों की जांच की जा चुकी है।
चार बड़े अस्पतालों के 1,000 मरीजों के नमूनों की जांच के दौरान 141 में टीबी की पुष्टि हुई। उनमे 35 फीसदी यानी 141 में 50 मरीज ऐसे थे जो हड्डी, महिला, सर्जरी से पहले छाती की एक्सरे कराने के लिए वहां पहुंचे थे। मुंबई शहर के 24 वार्डों में एक-एक मोबाइल स्क्रीनिंग वैन की भी व्यवस्था की गई है। एआई द्वारा चिह्नित किए गए संभावित टीबी के मरीजों में से करीब 26 फीसदी का इलाज किया गया।
करीब 64 फीसदी मरीज शहरी झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले थे। इस परियोजना का विस्तार देश के दूरदराज के हिस्सों में भी किया गया है। नगालैंड के मोन जिले में भी क्यूएक्सआर आधारित टीबी जांच से तुरंत परिणाम मिल जाते हैं।