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इटालियन ब्रांड पर विवाद के बीच फिर से चमकी कोल्हापुरी चप्पल की वैश्विक पहचान

इटली की प्रसिद्ध लग्जरी फैशन ब्रांड प्राडा (Prada) द्वारा Kolhapuri chappal जैसी चप्पलें अपनी नई कलेक्शन में दिखाने के बाद ये विवाद शुरु हुआ।

Last Updated- July 27, 2025 | 9:02 PM IST
kolhapuri chappal

भारत की पारंपरिक हस्तशिल्प की अमूल्य धरोहर Kolhapuri chappal एक बार फिर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर सुर्खियों में है। इटली की प्रसिद्ध लग्जरी फैशन ब्रांड प्राडा (Prada) द्वारा कोल्हापुरी जैसी चप्पलें अपनी नई कलेक्शन में दिखाने के बाद जहां कारीगरों ने GI अधिकारों के उल्लंघन की शिकायत की, वहीं अब इस बहस ने पारंपरिक कारीगरों के पक्ष को मजबूती दी है।

सरकार द्वारा संचालित लेदर इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ महाराष्ट्र (LIDCOM) ने इस पारंपरिक कुटीर उद्योग को नई पहचान देने के लिए QR कोड आधारित प्रमाणन प्रणाली शुरू की है। इससे न केवल नकली उत्पादों पर रोक लगेगी, बल्कि हर चप्पल के पीछे काम करने वाले कारीगर या स्वयं सहायता समूह की पहचान को भी उजागर किया जाएगा।

2019 में महाराष्ट्र और कर्नाटक सरकारों ने मिलकर कोल्हापुरी चप्पलों को GI (भौगोलिक संकेतक) टैग दिलाया था। यह टैग केवल उन्हीं जिलों के कारीगरों को पारंपरिक तरीके से हाथ से बनी, प्राकृतिक चमड़े की खुली चप्पलें बनाने और बेचने का अधिकार देता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौते TRIPS के तहत यह अधिकार कानूनी रूप से मान्य है।

प्राडा विवाद के बाद, ब्रांड ने महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स को जवाब में कहा कि उनकी चप्पलें “भारतीय पारंपरिक हस्तनिर्मित जूतों से प्रेरित” हैं और अभी वे सिर्फ डिज़ाइन स्तर पर हैं, व्यावसायिक उत्पादन शुरू नहीं हुआ है।

LIDCOM द्वारा शुरू की गई QR कोड पहल के अंतर्गत हर जोड़ी चप्पल के साथ एक डिजिटल कोड दिया जाएगा जिसे स्कैन कर ग्राहक जान सकेंगे:

  • कारीगर या उत्पादन इकाई का नाम व स्थान

  • किस जिले में बनी है चप्पल

  • इस्तेमाल की गई पारंपरिक तकनीक और कच्चा माल

  • GI प्रमाणन की वैधता और स्थिति

LIDCOM की प्रबंध निदेशक प्रेरणा देशभरतर ने कहा, “कोल्हापुरी चप्पल सिर्फ फैशन नहीं, यह हमारे कारीगरों की पहचान, कौशल और स्वाभिमान का प्रतीक है।” उन्होंने आम जनता, फैशन डिजाइनरों और उपभोक्ताओं से अपील की कि वे भारत की पारंपरिक कारीगरी के साथ एकजुटता दिखाएं।

कोल्हापुरी चप्पल की परंपरा 12वीं शताब्दी से चली आ रही है। मुख्य रूप से महाराष्ट्र के कोल्हापुर, सांगली और सोलापुर जिलों में बनने वाली यह चप्पल प्राकृतिक चमड़े और हस्तनिर्मित पट्टियों से तैयार की जाती है। 20वीं सदी की शुरुआत में छत्रपति शाहू महाराज ने इस हस्तशिल्प को स्वदेशी गर्व और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बनाकर व्यापक समर्थन दिया।

1974 में स्थापित LIDCOM, जिसे संत रोहिदास चर्मोद्योग एवं चर्मकार विकास महामंडल भी कहा जाता है, पिछले कई दशकों से ग्रामीण कारीगरों को प्रशिक्षण, नवाचार, आर्थिक सहायता और बाजार से जोड़ने के प्रयासों में जुटा है। संस्था का उद्देश्य न केवल आर्थिक सशक्तिकरण है, बल्कि सांस्कृतिक संरक्षण भी है।

LIDCOM ने अब तक हजारों ग्रामीण कारीगरों को प्रशिक्षित कर उन्हें स्थायी आजीविका की दिशा में अग्रसर किया है और यह सुनिश्चित किया है कि कोल्हापुरी चप्पल केवल इतिहास का हिस्सा न बने, बल्कि बदलती वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखे।

(एजेंसी इनपुट के साथ)

First Published - July 27, 2025 | 9:00 PM IST

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