ऑडिटर्स यानी लेखा परीक्षक और विज्ञापन कुछ महीने पहले तक इन दोनों शब्दों का आपस में कोई तालमेल ही नहीं था।
कुछ समय पहले तक एकाउंटिंग प्रोफेशनल को खुद के प्रचार तक की अनुमति नहीं थी और वे जो सेवाएं देते थे उसका विज्ञापन देने की सख्त मनाही थी। अभी इस विषय में हम जो उदाहरण लेंगे वह एक संस्थान के पूर्व प्रख्यात अध्यक्ष का है जिसे सख्त अनुशासनात्मक अपराध के एवज में कचहरी में घसीटा गया था।
इस व्यक्ति ने अपनी आत्मकथा में इस बात का जिक्र किया था कि वह अपने ही नाम से प्रोफेशनल के तौर पर प्रैक्टिस कर रहा था। हालांकि, अब तक जो भी होता आ रहा है उसे खत्म करते हुए इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट (आईसीएआई) ने हाल ही में एक अनोखा फैसला सुनाया है कि जून के महीने से ही चार्टर्ड एकाउंटेंट्स अपने काम के विषय में विज्ञापन दे सकेंगे। इस बारे में काउंसिल ने दिशा निर्देश भी जारी कर दिए हैं।
विज्ञापन देने पर रोक उस दौर में लगाई गई थी जब सीए का प्रोफेशन अपेक्षाकृत कम व्यापक हुआ करता था। ऐसे संस्थान कम हुआ करते थे जहां सीए अपनी सेवाएं दे सकते थे और ज्यादातर यही देखने को मिलता था कि सीए किसी परिवार के जनरल प्रैक्टिशनर की तरह ही काम किया करता था।
देश में सीए की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और अब तो यह बढ़कर दो लाख के आंकड़े तक पहुंच चुकी है। साथ ही विभिन्न कंपनियों में सीए की आवश्यकता भी बढ़ने लगी है और इतना ही कंपनियों के बदलने के साथ ही वह प्रोफाइल भी बदलता जा रहा है जिस हिसाब पर सीए की भर्ती की जा रही है। ऐसे में अगर सीए को खुद का प्रचार (दूसरे शब्दों में इसे खुद के बारे में जानकारी देना कह सकते हैं) से रोका जाता है तो ऐसे में यह एक नियोक्ता के लिए सूचना के अधिकार का हनन होगा।
ऐसा इसलिए कि अगर उसे सीए के बारे में पूरी जानकारी ही नहीं होगी तो आखिरकार सही पेशेवर के चयन का उनका मिशन पूरा कैसे होगा। खासतौर पर विज्ञापन की इजाजत नहीं देना उन युवा पेशेवरों के लिए उनके करियर की राह में रोड़े अटकाने की तरह था जो खुद को एक ब्रांड की तरह पेश कर पाने में सफल नहीं हो पा रहे थे। ऐसे में जब कि देश में पहले से नामी गिरामी सीए मौजूद हैं तो फिर बिना खुद के बारे में बताए आखिर ये युवा प्रतिभाशाली पेशेवर कैसे खुद के लिए जगह बना पाते।
हालांकि, अब तक जो भी कहा गया हो पर यह सभी जानते हैं कि एकाउंटिंग एक गंभीर प्रोफेशन है। ऐसे में भले ही एकाउंटेंसी के लोगों को अपने बारे में विज्ञापन देने का अधिकार मिल गया हो फिर भी इसका गलत फायदा नहीं उठाया जाना चाहिए। न तो इस पेशे से और न ही व्यक्तिगत सेवाएं देने वाले इन पेशेवरों से झूठी उम्मीदों की चाहत रखी जानी चाहिए। ऐसे में यह बात समझ में आती है कि आईसीएआई आगे भी इस विषय पर सतर्कता बरतता रहेगा। इसकी झलक हमें काउंसिल के दिशा निर्देशों से ही मिल जाती है जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि विज्ञापन के लिए फॉन्ट का आकार 14 से अधिक नहीं रखा जाना चाहिए।
पर अब भी जो दिशा निर्देश जारी किए गए हैं वे कुछ मोर्चों पर उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते हैं। जैसे कि इन दिशा निर्देशों में उल्लेख किया गया है कि विज्ञापन में क्लाइंट का नाम नहीं दिया जा सकता है। साथ ही चार्टर्ड एकाउंटेंट इकाइयों को यह छूट नहीं दी गई है कि वे अपनी बिलिंग और खासतौर पर ऑडिट असाइनमेंट से मिलने वाली फीस का जिक्र कर सकें। पर अब तक यूरोपीय यूनियन के 8वें डाइरेक्टिव के जो निर्देश लागू किए जा रहे हैं, मौजूदा निर्देशपत्र में ठीक उससे उल्टा वाधान है।
यूरोपीय यूनियन के इस निर्देशपत्र में सार्वजनिक पारदर्शिता को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है और इस बात का उल्लेख है कि ऑडिटर फर्म को अपनी पब्लिक ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट में सभी सार्वजनिक हित की इकाइयों के नाम का उल्लेख करना अनिवार्य है। इन फर्मों को ऑडिट के जरिए जो आय होती है उसका भी साफ उल्लेख करना जरूरी है। अब आईसीएआई के इन मौजूदा दिशा निर्देशों से होगा यह कि भारतीय ऑडिट इकाइयां अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार पारदर्शिता नहीं रख पाएंगी। यही वजह है कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी सेवाएं देने के लिए पंजीयन कराना मुश्किल हो जाएगा।
ऐसे में जो भारतीय कंपनियां यूरोपीय एक्सचेंजों में सूचीबद्ध हैं उनका ऑडिट करना और उन कंपनियों के बारे में रिपोर्ट जारी करना भारतीय ऑडिटिंग इकाइयों के लिए मुमकिन नहीं हो पाएगा। हालांकि यह जरूरी है कि इस पेशे में विज्ञापन के महत्त्व को समझना जरूरी है और इसकी छूट भी दी जानी चाहिए पर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आईसीएआई का मुख्य काम है कि वह सुनिश्चित करे कि ऑडिट फर्म अपने क्लाइंट्स को बेहतर सेवाएं दे रही हों। अगर ये इकाइंया क्लाइंट्स को बेहतर सेवाएं देंगी तभी सही मायने में इस प्रोफेशन का रुतबा लोगों की नजर में बढ़ेगा और वे इस पेशे को सम्मान की दृष्टि से देखेंगे।