उच्चतम न्यायालय ने सोम मित्तल मामले में उन्हें किसी भी आरोप में जिम्मेदार या दोषी करार नहीं दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने इतना ही किया कि मित्तल के खिलाफ शुरु की गई कार्यवाही को निरस्त करने से इनकार कर दिया।
उसने इस मामले में फैसला मजिस्टे्रट पर छोड़ दिया। इसलिए अब ये सवाल कि क्या मित्तल के खिलाफ शिकायत स्वीकार्य है या क्या मित्तल का कार्यालय महिला कर्मचारियों को सुरक्षा देने के लिए कानूनी रुप से बाध्य है, मुकदमे पर निर्भर रहेगा।
कंपनियों पर अपने कर्मचारियों के प्रति जवाबदेही को लेकर कई तरह के सवाल पैदा होते रहे हैं, जैसे-कंपनियां किस सीमा तक कानूनी कार्यवाही का सामना कर सकती हैं। ऐसी क्या परिस्थितियां हैं, जिनके तहत कर्मचारियों को जवाबदेह ठहराया जा सकता है।
सामान्य अवधारणा की बात की जाए, तो ऐसा कोई भी अपराध, जिसमें व्यक्तिगत शत्रुता शामिल न हो, कारपोरेशन को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। कंपनियों और उनके कर्मचारियों को लेकर नागरिक और प्रशासनिक, दोनों तरह के कानून हैं, जिसकी अवहेलना करने पर कैद व जुर्माना हो सकता है।
हाल के दिनों में जालसाजी, कर्मचारियों की मृत्यु और वित्तीय घोटालों के बढ़ने से कारपोरेशन की जिम्मेदारियां तय करना अत्यंत जरूरी हो गया है।इनमें एनरॉन प्रमुख है, जिसके कारण ऑर्थर एंडरसन का विघटन तक हो गया।
व्यापारिक संगठनों की जिम्मेदारियां साामान्य कानून से भिन्न नहीं है। दुर्भाग्य से बात उन मामलों पर जाकर अटक जाती है, जिन पर संविधान मौन है। भारत में इस बात को लेकर दोहरी अवधारणा स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के उस मामले से बनी है, जिसमें बेंच व्यापारिक संगठनों के ऐसे किसी अपराध पर विभाजित हो गया, जिसमें कैद के साथ जुर्माने का भी प्रावधान है।
एक महत्वपूर्ण बात यह निकलती है, वह यह कि व्यापारिक संगठनों को कारावास की सजा सुनाना व्यावहारिक या तर्कसंगत नहीं लगता है। और इस मामले में सुनवाई मजाक बनकर रह जाती है। भारतीय दंड संहिता और उपखंड कानून ‘व्यक्ति’ को परिभाषित कंपनी या संगठन और व्यक्तियों के समूह के रूप में करता है। ऐसा करके लोगों, संगठनों सभी पर जिम्मेदारियां तय कर दी जाती है।
कंपनी कानून 1956 के तहत कंपनी को व्यक्ति माना गया है। इस कानून के तहत बहुत कठोर प्रावधान हैं औैर इस बात पर पूरी तरह से बल दिया जाता है कि वास्तविक रूप से जिम्मेदार व्यक्ति का पता लगा कर कानूनी कठघरे में खड़ा किया जा सके।
कई बार ऐसा देखा गया है कि जिम्मेदारियां ठीक से तय न होने के कारण दोषी व्यक्ति कानूनी दांव-पेंच से आसानी से बच जाते हैं।
वास्तविकता पर गौर करें, तो व्यापारिक संगठनों की जिम्मेदारियां तय करने लाजिमी हो गया है।
व्यापारिक संगठनों की ऊंची पहुंच होने के कारण उनके लिए कड़े कानून बनाना वर्तमान समय की जरूरत बन गई है। कानून निर्माता भी अब महसूस करने लगे हैं कि ड्रग तस्कर, प्रदूषण फैलाने वाले, महाजन से जुड़ी अन्य आपराधिक गतिविधियों में सजा का निर्धारण अत्यंत जरूरी हो गया है।
कंपनी या व्यापारिक संगठन सजा या जिम्मेदारी से बचने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाते आ रहे हैं। मसलन-प्रतिबंधित चीजों से जुड़े मामले में कंपनियां किसी अन्य व्यक्ति को फैक्टरी का मालिक करार देकर खुद जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेते थे औैर सजा से बच जाते थे। फैक्टरी कानून में प्रबंध निदेशक या पूरे बोर्ड की जिम्मेदारी तय करने के लिए बहुत सारे बदलाव लाए गए हैं।
हालांकि ऐसा करने के दौरान इसे कठिन चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इन संशोधनों को जायज ठहराया है। दी शॉप्स ऐंड स्टैबलिशमेंट (एस ऐंड ई) कानून इस नियम का अनुसरण नहीं करता है औैर नियम उल्लंघन के लिए खास अधिकारी ही दोषी माना जाता है।
सोम मित्तल के मामले में नियोक्ता की परिभाषा और जिम्मेदारी तय कर पाने में सामंजस्य की कमी के कारण न्याय में बाधा आने की पूरी गुंजाइश बन जाती है। समय की मांग है कि कानून निर्माता इन अनियमितताओं पर ध्यान केंद्रित करें, क्योंकि व्यापारिक संगठन आधुनिक समाज में मजबूत बनकर उभरे हैं।