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अंतरराष्ट्रीय श्रमिकों को ईपीएस में शामिल किया जा सकेगा

Last Updated- December 10, 2022 | 1:06 AM IST

मुझे यह स्वीकार करना होगा कि अपने पेशे के शुरुआती वर्षों में मैं इस बात से अनभिज्ञ थी कि कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) कानून सामान्यतया केवल उन कर्मचारियों के लिए लागू है जिनका सकल वेतन 5,000 रुपये से कम है।
बाकी के लिए यह कर योग्य आय के रूप में योगदान के साथ एक स्वैच्छिक लाभ है। जब मेरी पेशेवर जानकारी में सुधार आया तो वैश्वीकरण की बयार में श्रम बाजार भी काफी बदल चुका था। लेकिन आज के परिदृश्य में बड़े श्रम सुधारों का कार्यान्वयन अहम विषय नहीं रह गया है।
सच्चाई यह भी है कि श्रम क्षेत्र में सुधारों को लेकर भारत पिछड़ा हुआ है और शुरुआती बिंदु ईपीएफ पात्रता पर 6500 रुपये की मौजूदा सीमा को हटा सकता है। 

जब श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने कर्मचारियों की एक नई श्रेणी ‘इंटरनेशनल वर्कर’ के लिए 1 अक्टूबर, 2008 को एक अधिसूचना के जरिये इम्पलॉयीज पेंशन स्कीम में संशोधन किया तो शुरू में प्रतिक्रिया आई कि यह एक भेदभावपूर्ण प्रावधान है ।
क्योंकि इससे विदेशी कंपनियां और उनके प्रवासी कर्मचारी सांविधिक लाभ उठा सकेंगे और भारतीय नागरिक इससे वंचित रह जाएंगे। इस संशोधन में ‘पेंशनेबल सर्विस’ और ‘इंटरनेशनल’ वर्कर की दो प्रमुख व्याख्याएं स्पष्ट की गई हैं। इस पेंशन योग्य सेवा का मतलब अंतरराष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा समझौते के दायरे में आने वाले सदस्य द्वारा दी जाने वाली सेवा से है।
लेकिन ‘इंटरनेशनल वर्कर’ के तौर पर कौन अर्हता रखता है? ‘एक्सक्लूडिड इम्पलॉयी’ का क्या मतलब है जो एक अलग किया गया कर्मचारी है। किस तरह से भारतीय इस संदर्भ में योग्य हैं? 

अंतत: मंत्रालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि ‘इंटरनेशनल वर्कर’ एक भारतीय श्रमिक हो सकता है जिसने अपने कार्य को भारत और अन्य देश के बीच विभाजित कर रखा हो, या फिर भारत में काम करने वाला विदेशी श्रमिक।
एक डिटैच्ड वर्कर यानी अलग किया गया श्रमिक भारत में एक गैर-भारतीय अंतरराष्ट्रीय श्रमिक है जो स्रोत देश के सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम के लिए योगदान करता है। ‘एक्सक्लूडिड वर्कर’ एक ऐसा व्यक्ति है जिसके लिए ईपीएफ ऐक्ट लागू नहीं है।
अगर यह व्यक्ति पारस्परिक आधार पर संबद्ध देश और भारत के बीच द्विपक्षीय सामाजिक सुरक्षा समझौते (एसएसए) के तहत अन्य क्षेत्राधिकार में सामाजिक सुरक्षा योगदान करता है तो वह इस अधिनियम के दायरे में नहीं आएगा। ऐसे मामले में कर्मचारी को पीएफ ऐक्ट की जद से मुक्त है।
1 नवंबर, 2008 से प्रभावी इस संशोधन के बाद भारतीय कंपनियों और फर्मों को अंतरराष्ट्रीय श्रमिकों को नियुक्त करते समय पीएफ कमीशनर को अपने अंतरराष्ट्रीय श्रमिकों के बारे में ब्योरा देना अनिवार्य है।
एक बार जब श्रमिक कंपनी के सदस्य के रूप में नियुक्त कर लिया जाता है तो उसके बेसिक वेतन में से 12 फीसदी की कटौती और इतनी ही राशि कंपनी को ईपीएफएओ के समक्ष जमा करानी अनिवार्य होगी।
रोजगार के लिए भारत में आने वाले विदेशी नागरिक, जिन्हें शुरू में ईपीएफ ऐक्ट के प्रावधानों से अलग कर दिया गया था, क्योंकि कई मामलों में उनका पारिश्रमिक सांविधिक सीमा से काफी अधिक था, अब इसका पालन करने के लिए बाध्य होंगे।
विदेशी कामगारों को नौकरी पर रखने वाले किसी भी संगठन में यदि श्रमिकों की संख्या 20 से अधिक हो जाती है तो संशोधन लागू है और इंडियन पीएफ अथॉरिटी के समक्ष रिटर्न करना होगा जिसमें वेतन स्तर, राष्ट्रीयता आदि का हवाला देना होगा।
इसका एक उद्देश्य रोजगार के लिए स्थानीय लोगों को प्रोत्साहित करना है, लेकिन प्रमुख उद्देश्य भारत के साथ सामाजिक सुरक्षा समझौते में शामिल कराने के लिए अन्य देशों पर दबाव डालना है।
लेखिका राजिन्दर नारायण ऐंड कंपनी में पार्टनर हैं।

First Published - February 15, 2009 | 9:52 PM IST

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