देश के बड़े उद्योगपतियों पर विमानों के आयात पर कर नहीं चुकाने के बारे में जो आरोप लगाए गए हैं, उनके बारे में सीमाशुल्क विभाग ने हाल ही में कुछ और ब्योरा पेश किया।
ऐसा लगता है कि ज्यादातर उद्योगपतियों ने मांग किए जाने पर शुल्क का भुगतान कर दिया। कुछ ने इस मसले को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया और हो सकता है उनके हक में फैसला भी हो जाए। पर उनके लिए इस आरोप से मुक्त होना उतना आसान नहीं है कि उन्होंने कर के भुगतान से बचने की कोशिश की है।
इंडियन ट्रेड क्लासिफिकेशन, जिसे आईटीसी (एचएस) के तौर पर जाना जाता है के अंतर्गत हवाईजहाज और हेलीकॉप्टर शीर्षक 88.02 के तहत आते हैं। जिन उत्पादों को 88.02 में शामिल किया गया है, विदेश व्यापार नीति के तहत उनके आयात की इजाजत नहीं दी गई है।
पर आईटीसी के अध्याय 88 में आयात लाइसेंस नोट में कहा गया है कि कुछ एयरलाइंस कंपनियों, एयरपोर्ट अधिकारियों और प्रशिक्षण संस्थाओं को एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टरों (इनमें इस्तेमाल किए गए एयरक्राफ्ट भी शामिल हैं) के आयात की छूट है और इसके लिए उन्हें लाइसेंस लेने की जरूरत नहीं है।
जिन लोगों को नागरिक विमानन मंत्रालय की ओर से सूचित या गैर सूचित यातायात विमान सेवा (इसमें एयर टैक्सी सेवा भी शामिल है) का अधिकार दिया गया है, वे भी लाइसेंस के बिना विमानों का आयात कर सकते हैं।
पिछले साल वित्त मंत्रालय ने 3 मई, 2007 की तारीख से अधिसूचना 612007 जारी की थी जिसमें नागरिक विमान मंत्रालय की ओर से लाइसेंस प्राप्त ऑपरेटरों को यह छूट दी गई थी कि वे नॉन शेडयूल्ड (यात्री) और नॉन शेडयूल्ड(चार्टर) विमानों की सेवा के लिए अगर विमानों का आयात करते हैं तो इसके लिए उन्हें कोई शुल्क नहीं चुकाना पड़ेगा।
इस अधिसूचना में साफ किया गया था कि ऑपरेटर अगर इन सेवाओं के लिए विमानों का आयात करते हैं तो उन्हें कोई आयात शुल्क नहीं चुकाना पड़ेगा। पर अगर कोई निजी इस्तेमाल के लिए विमान का आयात करता है तो 25.32 फीसदी आयात शुल्क चुकाना पड़ेगा।
अब सीमा शुल्क विभाग ने जो सवाल उठाया है वह यह है कि कुछ उद्योगपति गैर-सूचित यात्री या चार्टर सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए कंपनियां गठित कर लेते हैं। एयर टैक्सी चलाने के लिए ये कंपनियां नागरिक उड्डयन मंत्रालय से लाइसेंस भी प्राप्त कर लेती हैं और इसी आधार पर बिना कोई आयात शुल्क चुकाए विमानों का आयात भी कर लेती है। पर इन विमानों का इस्तेमाल एयर-टैक्सी सेवाओं के लिए न के बराबर किया जाता है।
अधिकांशत: इन विमानों का इस्तेमाल व्यक्तिगत यात्रा के लिए ही किया जाता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि ये कंपनियां सिर्फ अपने इस्तेमाल के लिए ही विमानों का आयात करती हैं और इसके लिए जो कंपनी बनाई जाती है वह महज एक औपचारिकता ही होती है। इस वजह से सीमाशुल्क विभाग का कहना है कि ऐसी कंपनियों को विमानों की खरीद पर कर में आयात शुल्क में छूट नहीं दी जानी चाहिए।
उद्योगकर्मी इस बारे में बचाव करते हुए कहते हैं कि उन्होंने जिन कंपनियों का निर्माण किया है उनके पास नॉन शेडयूल्ड ऑपरेटर्स परमिट (एनएसओपी) है और इस वजह से उनकी वैधानिकता पर उंगली नहीं उठाई जा सकती है। काननू के हिसाब से ये इकाइयों से पूरी तरह से अलग हैं। साथ ही उनका यह भी तर्क है कि एनएसओपी के जरिए उन्हें जो कमाई होती है वे उनका भी समय समय पर कर चुकता करते हैं।
उद्योगपतियों का कहना है कि उन्होंने आयात के किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया है। भले ही इन कंपनियों की दलील कुछ भी रही हो, पर उन पर जो आरोप लगाया गया है कि ये एनएसओपी मंजूरी लेने के बाद व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए इन विमानों का आयात करती हैं, इसे एक बार में दूर कर पाना काफी मुश्किल है।