कोरोनावायरस के भारतीय दोहरे म्यूटेंट – बी.1.617 को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा चिंता वाली किस्म के तौर पर परिभाषित किया गया है। यह किस्म ऐंटीबॉडी के प्रति कुछ हद तक प्रतिरोधी पाई गई है और अत्यधिक संक्रामक है, लेकिन जिन लोगों का टीकाकरण हुआ है, उनमें इसकी उग्रता कम है। इस किस्म के एक अध्ययन में यह जानकारी मिली है। ब्रिटेन में कैंब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के साथ इंडियन सार्स-कोवी-2 जीनोमिक कंसोर्टिया द्वारा बायोआरएक्सआईवी के प्री-पिं्रट सर्वर में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि हमने और अन्य लोगों ने विट्रो न्यूट्रलाइजेशन में जो आंकड़े प्रस्तुत किए हैं, उनको ध्यान में रखते हुए व्यापक टीकाकरण संभवत: मध्य से गंभीर स्तर तक की बीमारी से रक्षा करेगा और बी.1.617 के संक्रमण को कम करेगा। बी.1.617 किस्म पहली बार वर्ष 2020 के अंत में महाराष्ट्र में सामने आई थी और देश भर तथा कम से कम 40 देशों में फैल चुकी है। अध्ययन से पता चलता है कि इस भारतीय म्यूटेशन ने भारत में इस महामारी की लहर में योगदान दिया है। इसमें पाया गया है कि गंभीर बीमारी और मृत्यु में इजाफा सभी अध्ययनों में कम रहा है।
सार्स-कोवी-2 बी.1.617 इमर्जेंस ऐंड सेंसिटिविटी टू वैक्सीन-एलीसिटेड ऐंटीबॉडी शीर्षक वाले इस अध्ययन में कहा गया है कि संचरण पर प्रकाशित आंकड़ों की अनुपस्थिति में यह पूर्वानुमान लगाया गया है कि इस किस्म ने उन लोगों में भी संक्रमण में वृद्धि हुई होगी जिन्हें टीका लगाया गया है या जिनमें पहले से रोग प्रतिरोधक शक्ति मौजूद है। अध्ययन में कहा गया है कि यह स्पष्ट नहीं है कि क्या बी1.617 किस्म बी.1.1.7 की तुलना में अधिक संक्रामक साबित होगी, जो भारत में चल रही है और अब विश्व स्तर पर प्रबल है। अध्ययन में पाया गया है कि किसी एकल टर्शियरी अस्पताल में सीएचएडीओएक्स-1 (ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका टीका) के साथ टीकाकरण किए जाने वाले स्वास्थ्य कर्मियों में काफी संक्रमण, जो मुख्य रूप से भारतीय किस्म थी। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस समुदाय में इस किस्म की प्रबलता के कारण ऐसा हो सकता है या शायद यह केवल स्वास्थ्य कर्मियों के बीच संक्रमण को प्रतिबिंबित कर रहा हो। अध्ययन में कहा गया है कि इसके बावजूद आंकड़े इस बात की संभावना पैदा करते हैं कि टीकाकरण किए जाने वाले व्यक्तियों में बी.1.617 के संक्रमण की संभावना है।
इस अनुसंधान समूह ने इस किस्म के एक उप-वंश का भी अध्ययन किया है जिसमें तीन स्ट्रेन हैं – एल452आर, ई484क्यू और पी681आर। विषाणुविज्ञानियों का कहना है कि इनमें से आखिर वाला (पी681आर) ऊतक क्षति तथा और अधिक रोगों को बढ़ा सकता है। वैज्ञानिकों ने अपने निष्कर्षों में यह भी कहा है कि यह विशेष किस्म दिल्ली में चल रहे प्रकोप के दौरान अधिक बार पाई गई है।