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भारत में भी शुरू होगा 4 दिन काम और 3 दिन छुट्टी वाला प्लान? सरकार ने बताई इसको लेकर पूरी योजना

भारत में चार दिन काम और तीन दिन पेड छुट्टी को लेकर लेबर मिनिस्ट्री ने स्पष्ट किया है कि नए लेबर कोड्स में हफ्ते के काम के घंटों को अलग-अलग तरीके से बांटा जा सकता है

Published by
ऋषभ राज   
Last Updated- December 16, 2025 | 4:42 PM IST

देश में इन दिनों चार दिन काम करने और तीन दिन छुट्टी मनाने की बात जोरों पर है। लेबर मिनिस्ट्री की हालिया सफाई के बाद लोग पूछ रहे हैं कि क्या सचमुच हफ्ते में सिर्फ ‘फोर डे’ ऑफिस जाना पड़ेगा और पूरी सैलरी मिलेगी? जवाब है हां, लेकिन कुछ शर्तों के साथ। नए लेबर कोड में इसको लचीलापन तो दिया गया है, पर कुल काम के घंटे कम नहीं हुए हैं।

लेबर मिनिस्ट्री ने एक्स पर पोस्ट करके साफ किया कि नए लेबर कोड्स में हफ्ते के काम के घंटों को अलग-अलग तरीके से बांटने की छूट है। यानी ‘फोर डे’ काम करके तीन दिन पेड छुट्टी लेना मुमकिन है, लेकिन इसके लिए हर दिन 12 घंटे तक काम करना पड़ सकता है। मंत्रालय के मुताबिक, “लेबर कोड्स में चार काम के दिनों के लिए 12 घंटे की छूट है, बाकी तीन दिन पेड हॉलिडे होंगे। हफ्ते के कुल घंटे 48 ही रहेंगे और रोज के घंटों से ज्यादा काम पर डबल मजदूरी देनी होगी।”

इसका अर्थ साफ है कि अगर कोई कर्मचारी चार दिन काम करता है तो 12-12 घंटे करके 48 घंटे पूरे करने होंगे। लेकिन अगर कंपनी द्वारा इससे ज्यादा काम करवाया जाता है तो उसे ओवरटाइम माना जाएगा और दोगुनी तनख्वाह मिलेगी। हफ्ते में 48 घंटे से ऊपर किसी को भी काम नहीं करवाया जा सकता। ये नियम कर्मचारियों को ज्यादा लंबे घंटों से बचाने के लिए हैं, साथ ही कंपनियों को शेड्यूल बनाने की आजादी भी देते हैं।

खास बात ये कि 12 घंटे का मतलब लगातार काम नहीं। इसमें लंच ब्रेक, रेस्ट टाइम या शिफ्ट के बीच का गैप भी शामिल है। काम के हिसाब से ये ब्रेक तय हो सकते हैं।

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नए लेबर कोड्स में क्या- क्या हैं?

21 नवंबर 2025 को सरकार ने पुराने 29 लेबर कोड की जगह चार नए लेबर कोड्स लागू कर दिए। इनका नाम है वेजेस कोड 2019, इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड 2020, सोशल सिक्योरिटी कोड 2020 और ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड 2020।

इनका मकसद कानूनों को आसान बनाना और पूरे देश में काम करवाने के तरीकों में सुधार लाना है। समय पर तनख्वाह, काम के तय घंटे, सुरक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और सामाजिक सुरक्षा पर जोर है। इससे पुराने 29 कानूनों को चार में समेटने से कंपनियों के लिए नियमों का पालन करना आसान हो गया। इससे राज्य दर राज्य अलग-अलग नियमों की उलझन कम होगी और कंप्लायंस बेहतर तरीके से मैनेज हो सकेगा।

साथ ही इसमें सोशल सिक्योरिटी को बढ़ाना भी बड़ा कदम है। पहली बार गिग वर्कर्स, प्लेटफॉर्म वर्कर्स और एग्रीगेटर वर्कर्स को कानून में जगह मिली। आधार से लिंक यूनिवर्सल अकाउंट नंबर से इनके वेलफेयर फंड को पोर्टेबल बनाया गया, यानी जॉब या प्लेटफॉर्म बदले तो फायदे साथ चलेंगे।

फिक्स्ड टर्म कर्मचारियों के लिए भी अच्छी खबर है। अब ये लोग परमानेंट स्टाफ जैसी सुविधाएं पाएंगे। उन्हें भी छुट्टी, स्वास्थ्य कवर, सामाजिक सुरक्षा की सुविधाएं मिलेंगी। समान काम के लिए समान वेतन जरूरी है। ग्रेच्युटी के नियम बदले है, जो पहले पांच साल लगातार नौकरी के बाद मिलती थी, अब सिर्फ एक साल में ही मिलने लगेगा।

हालांकि, एक्सपर्ट के मुताबिक, ‘फोर डे’ का वर्क वीक हर सेक्टर्स में फिट नहीं बैठेगा। इसे कुछ सेक्टर जल्दी अपनाएंगे, लेकिन कुछ पुरानी व्यवस्था ही रखेंगे। कंपनियों की पॉलिसी, राज्य के नियम और काम पर भी निर्भर करेगा। कुल मिलाकर, नए कोड्स घंटे कम नहीं कर रहे, बस उन्हें बांटने का तरीका लचीला बना रहे हैं। कंपनियां और कर्मचारी मिलकर फैसला करेंगे कि ये ऑप्शन इस्तेमाल करना है या नहीं।

First Published : December 16, 2025 | 4:42 PM IST