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साइबर चोरी ही तो हुई है… तो क्यों मिले बीमा कवर!

Last Updated- December 05, 2022 | 7:15 PM IST

विज्ञान और तकनीक के फायदे हैं, तो उसके दुरुपयोग से नुकसान भी बहुत झेलना पड़ता है। सूचना तकनीक की बात करें, तो साइबर अपराध इसका नकारात्मक पहलू है।


भारत में साइबर अपराध से जुड़े हजारों मामले हर साल सामने आते हैं और तमाम कंपनियों और संस्थाओं को इसका नुकसान झेलना पड़ता है। बावजूद इसके भारत में कारपोरेट क्षेत्र के लिए साइबर अपराध से हुई क्षतिपूर्ति के लिए व्यापक बीमा सुविधा उपलब्ध नहीं है।


हालांकि अमेरिका में ई-चोरी, ई-सेवा में होने वाली गड़बड़ी, ई-कम्युनिकेशन और ई-धोखाधड़ी से बचने के लिए साइबर अपराध नीति के तहत व्यापक बंदोबस्त है, जबकि भारत में केवल धोखधड़ी, हैकिंग, गलत बयानी, पाइरेसी से बचाव के लिए ही उपाय किए जा रहे हैं। एचडीएफसी ईआरजीओ जेनरल इंश्योरेंस एकमात्र ऐसी बीमा कंपनी है, जो साइबर अपराध पर बीमा कवर मुहैया कराती है।


हालांकि इसके तहत केवल बैंकिंग और वित्तीय संस्थाओं को ही बीमा कवर दिया जाता है, साथ ही इसकी प्रीमियम राशि भी काफी ज्यादा (करीब 1 से 2 करोड़ रुपये) होती है। आईटी कंपनियों और रिटेल क्षेत्र, जो साइबर अपराध से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, उनके लिए बीमा कवर की सुविधा उपलब्ध नहीं है।


एचडीएफसी ईआरजीओ के एक अधिकारी के मुताबिक, भारत में साइबर क्राइम से हुए नुकसान की भरपाई के लिए बीमा कवर की सुविधा सीमित है, वहीं कंपनियां भी इस ओर आकर्षित नहीं होती हैं, क्योंकि इसका प्रीमियम काफी ज्यादा है। यही वजह है कि हम साल में एक या दो पॉलिसी ही कर पाते हैं।


हालांकि ऑनलाइन के बढ़ते चलन की वजह से इस क्षेत्र में बीमा कवर की काफी संभावनाएं हैं और हम इस ओर ध्यान दे रहे हैं। वैश्विक स्तर की बात करें, तो 100 करोड़ रुपये का बीमा कराया जाता है, जबकि भारत में बीमित राशि करीब 20 करोड़ रुपये ही है। प्रीमियम की बात करें, तो इसमें विभिन्न कारकों का ध्यान रखा जाता है और यह राशि जोखिम के अनुसार 1 से 2 करोड़ रुपये के आस-पास होती है।


टाटा-एआईजी जेनरल इंश्योरेंस की ओर से 2001 में साइबर अपराध के विरूद्ध बीमा कवर की सुविधा मुहैया उपलब्ध कराई गई थी, लेकिन बाद में कंपनी ने इसकी सुविधा बंद कर दी। कंपनी के अधिकारी से जब यह पूछा गया कि उन्होंने कितनी पॉलिसी बेची और दावा कितनों ने किया, तो इस बारे में उन्होंने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया।
 
फाउंडेशन फॉर इन्फॉर्मेश्न सिक्युरिटी एंड टेक्नोलॉजी (एफआईएसटी) के अध्यक्ष विजय मुखी ने कहा कि हमने ऐसे किसी भी व्यापार के बारे में नहीं सुना है, जिसे साइबर अपराध पर बीमा कवर मिला हो। सच तो यह है कि बहुत सी कंपनियां साइबर अपराध से आहत होने के बाद भी उसे उजागर नहीं करना चाहती, क्योंकि इससे कंपनी के साख पर असर पड़ने का खतरा रहता है।


हालांकि भविष्य में इस ओर ध्यान देना ही होगा। साइबर अपराध मामलों के सलाहकार और वकील पवन दुग्गल का मानना है कि अब समय आ गया है कि बीमा कंपनियां इस ओर ध्यान दें।


मुखी का कहना है कि दुनियाभर में कंपनियां इस बात को समझ रही हैं कि उनके लिए डाटा कितना महत्वपूर्ण है। भारतीय बीमा कंपनियों को भी इस बारे में अब सोचना होगा। हालांकि भारत में डाटा चोरी का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।

First Published - April 7, 2008 | 2:19 AM IST

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