बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार | फाइल फोटो
बिहार में विधानसभा चुनाव की मतगणना चल रही है। मतगणना की शुरुआत के साथ ही एनडीए यानी नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस ने अपने प्रदर्शन से सबको चौंका दिया है। अभी तक के ट्रेंड्स में एनडीए 200 सीटों के पार पहुंचने की ओर बढ़ रहा है। 243 सीटों वाली विधानसभा में ये आंकड़ा किसी बड़े उलटफेर की ओर इशारा कर रहा है। जनता दल यूनाइटेड यानी जेडीयू और भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी मिलकर विपक्ष को काफी पीछे छोड़ते दिख रहे हैं।
2010 में बिहार ने ऐसा ही कुछ देखा था। उस साल 24 नवंबर को जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन 243 में से 206 सीटें जीतकर इतिहास बना दिया था। उससे पहले 2005 में इन दोनों को मिलाकर सिर्फ 143 सीटें मिली थीं। लेकिन 2020 में नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जेडीयू ने तब अपनी ताकत दिखाई थी। आरजेडी को महज 22 सीटें मिलीं, भले ही वो लोक जनशक्ति पार्टी के साथ लड़ी थी। पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी दोनों सीटों से हार गई थीं। पासवान परिवार को भी झटका लगा था। कांग्रेस सिर्फ चार सीटें ही बचा पाई थी। वो चुनाव बिहार में एकतरफा जीत का नया मानक बन गया था।
हालांकि, पांच साल बाद 2015 में कहानी बदल गई। जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस का महागठबंधन 243 में से 178 सीटें लेकर सत्ता में आया। एनडीए को सिर्फ 58 सीटें मिलीं, बाकी सात सीटें दूसरों के खाते में गईं। महागठबंधन में लालू प्रसाद की आरजेडी सबसे आगे रही, जिसने 80 सीटें जीती थीं। जेडीयू को 71 और कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं। एनडीए की तरफ से बीजेपी 53 सीटें लाई थीं। राम विलास पासवान की एलजेपी को दो, उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को दो और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को एक सीट मिली थी। ये जीत बिहार की राजनीति में बड़ा उलटफेर थी। बाद में नीतीश कुमार ने फिर बीजेपी का साथ थाम लिया था।
इस बार ट्रेंड्स में जेडीयू सबसे बड़ा फायदा उठाती दिख रही है। 2020 में ये पार्टी सिर्फ 43 सीटें जीत पाई थी, लेकिन अब 80 सीटों पर आगे चल रही है। बीजेपी भी कमाल कर रही है, 82 सीटों पर लीड कर रही है। 2020 में बीजेपी को 74 सीटें मिली थीं, यानी आठ का इजाफा। अगर ये ट्रेंड्स नतीजों में बदल गए तो एनडीए 2010 जैसा स्वीप दोहरा सकता है। विपक्ष के लिए ये झटका है। आरजेडी, कांग्रेस और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी मुश्किल में फंसती नजर आ रही हैं। कई जानकार कह रहे हैं कि विपक्ष को अपनी रणनीति, गठबंधन और संगठन पर फिर से सोचना पड़ेगा।