एच1-बी वीजा पर राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के बयान ने वैश्विक स्तर पर भारत की इंजीनियरिंग प्रतिभा की भूमिका को रेखांकित किया है। कुछ समय पहले एच1-बी वीजा पर सख्ती करने वाले ट्रंप ने हाल ही में कहा था कि अमेरिका को बाहर से प्रतिभाओं की जरूरत है।
उद्योग विशेषज्ञों और वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन यह देखना होगा कि नई वीजा फीस और नियमों में बदलाव कैसे सामने आते हैं। अमेरिका में कर्मचारी गतिशीलता को लेकर अनिश्चितता ने कई अमेरिकी फर्मों को अपने वैश्विक क्षमता केंद्र (जीसीसी) स्थापित करने या मौजूदा केंद्रों को बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है। अनअर्थइनसाइट्स के अनुसार, जीसीसी सबसे बड़े नियोक्ता होंगे। वित्त वर्ष 2026 में जीसीसी में 1.3-1.5 लाख शुद्ध वृद्धि हो सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले तीन वर्षों में सबसे तेजी से बढ़े जीसीसी वित्त वर्ष 26 में 85-90 अरब डॉलर का कारोबार करेंगे, जिसमें 20 से 25 लाख पेशेवर कार्यरत होंगे।
जेंसर के पूर्व सीईओ तथा नैसकॉम की कार्यकारी परिषद के सदस्य रहे 5एफ वर्ल्ड और जीटीटी डेटा के अध्यक्ष गणेश नटराजन ने कहा, ‘विश्व स्तर पर भारतीय पेशेवर कड़ी मेहनत और नवाचार के लिए जाने जाते हैं। अमेरिका में 70 के दशक से पेशेवर जाते रहे हैं। उम्मीद है कि अब वैश्विक प्रतिभाओं की अहमियत को समझा जा रहा है।’
विशेषज्ञ स्टाफिंग कंपनी एक्सफेनो के आंकड़ों के अनुसार, एच1-बी वीजा का सबसे बड़ा फायदा अमेरिकी कंपनियां ही उठाती रही हैं। शीर्ष 100 एलसीए याचियों और शीर्ष 100 एच1-बी प्रायोजक नियोक्ताओं पर 15 वर्षों के डेटा से पता चलता है कि कैसे अमेरिकी फर्म कुशल प्रवासी कार्यक्रम के सबसे बड़ी लाभार्थी रही हैं। एच1-बी अनुमोदन प्राप्त करने वाली शीर्ष 20 फर्मों में से 10 का मुख्यालय अमेरिका में है। कुल मिलाकर 15 वर्षों में जारी किए गए एच1-बी वीजा का 58 प्रतिशत (लगभग दस लाख विदेशी कर्मचारी) अमेरिकी फर्मों को गया है।
एक्सफेनो के सह-संस्थापक कमल कारंत ने कहा, ‘अमेरिका में स्थानीय व्यावसायिक हलकों में विदेशी ज्ञान प्रतिभाओं पर निर्भरता जगजाहिर है। ट्रंप का बयान केवल इसे और अधिक समर्थन देता है। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि राष्ट्रपति के इस बयान के बाद आधिकारिक तौर पर क्या होगा।’