मंहगाई वह शै है, जो किसी की भी आंख से आंसू निकाल सकती है। मिस्र के लोग इस समय कुछ ऐसे ही हालात से गुजर रहे हैं।
आसमान छूती कीमतों ने आम आदमी से लेकर सरकार तक सबकी नीदें हराम कर दी हैं।फिलहाल ब्रेड ही एक ऐसी चीज है जिसे खरीदने के बारे में सोचा जा सकता है। ऊर्जा और दूसरी चीजों के बेहिसाब बढ़ते दाम के चलते सब्सिडी रहित खाद्य वस्तुओं की कीमतों में एक साल के अंदर 20 फीसदी का इजाफा हुआ है।
उधर ज्यादा चीजों पर सब्सिडी देने की वजह से सरकार परेशान है क्योंकि बजट घाटे पर लगाम लगाने की उसकी सारी कोशिशें नाकाम हो रही हैं। लोगों में असंतोष भी बढ़ रहा है। हाल ही में मिस्र की महाल्लाह अल कोबरा फैक्टरी पर 500 राजनैतिक कार्यकर्ताओं और कपड़ा उद्योग से जुड़े कामगारों को पुलिस ने गिरफ्तार किया।
इस दौरान पुलिस और लोगों के बीच झड़पें भी हुई जिसमें दर्जन भर लोग घायल हो गए। दरअसल ये लोग खाने की चीजों के बढ़ते दाम के खिलाफ एक दिन की राष्ट्रीय हड़ताल पर थे। सरकार ने इसे दबाने की कोशिश की और लोग भड़क गए।
सरकारी अखबार इजिप्टियन गजट ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में लिखा था कि अब हालात ये हैं कि सस्ती ब्रेड लेने के लिए लाइन में लगे लोगों आपस में ही उलझ जाते हैं। इस साल की शुरुआत में इस तरह की घटनाओं में क म से कम 7 लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के निदेशक जैक डियोफ कहते हैं हमने दुनिया भर में दंगे होते देखे हैं और इस बात का खतरा है कि ऐसी विस्फोटक स्थिति उन देशों तक पहुंच जाएगी जहां लोगों की आमदनी का आधे से ज्यादा हिस्सा केवल रोटी जुटाने में निकल जाता है।
खफा है जनता
अनाज के रेकार्ड दामों से लोगों में बेचैनी बढ़ती जा रही है। जहां अर्जेंटीना में लोग हड़ताल कर रहे हैं वहीं कैमरून, बुर्किना फासो, मोरक्को और आइवरी कोस्ट में तो दंगे भड़क उठे हैं। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक यमन से लेकर मेक्सिको तक 33 देशों में लोगों का गुस्सा गंभीर रूप ले सकता है।
काहिरा की सेंट्रल एजेंसी फॉर पब्लिक मोबिलाइजेशन ऐंड स्टैटिसटिक्स की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल फरवरी में मिस्र में मुद्रास्फीति की दर 12.1 फीसदी थी। यह पिछले 11 महीने का सबसे ऊंचा स्तर था। खाने पीने की चीजों के दामों में 16.8 फीसदी का इजाफा हुआ जबकि सब्सिडी रहित खाद्य वस्तुओं की कीमतों में 27 फीसदी का उछाल आया। अंडे और डेयरी उत्पादों में 20.1 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई।
प्रधानमंत्री होस्ने मुबारक की सरकार ने इस साल करीब 2 अरब डॉलर की गेहूं का आयात करने की घोषणा की थी लेकिन काहिरा के एक निवेश बैंक इएफजी-हरमस के अर्थशास्त्री साइमन किचन का कहना है कि अब हालत इतनी ज्यादा खराब हो चुकी है कि सरकार क ो जीडीपी का 1 फीसदी हिस्सा गेहूं खरीदने में खर्च करना होगा।
घाटे का बोझ
मिस्र की सरकार खाने की वस्तुओं और ईंधन पर काफी रियायत दे रही है। नतीजतन बजट घाटा लगातार 7 फीसदी के स्तर पर बना हुआ है जबकि सरकार इसे घटाकर 2010 तक 3 फीसदी करने का ख्वाब देख रही है। किचन कहते हैं कि महंगाई के चलते सरकार काफी मुश्किल में है।