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आतंकवाद के खिलाफ साझा खाका बने

Last Updated- December 12, 2022 | 12:57 AM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कट्टरता और अतिवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए शुक्रवार को शांघाई सहयोग संगठन (एससीओ) से एक साझा खाका विकसित करने का आह्वान किया और शांति, सुरक्षा व विश्वास की कमी को इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती करार देते हुए कहा कि इन समस्याओं के मूल में कट्टरपंथी विचारधारा ही है।
ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में शुक्रवार को आयोजित एससीओ की वार्षिक शिखर बैठक को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने इस कड़ी में अफगानिस्तान के हाल के घटनाक्रम का उल्लेख किया और कहा कि संगठन के सदस्य देशों को ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए साथ मिलकर काम करना चाहिए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर अफगानिस्तान में अस्थिरता और कट्टरवाद कायम रहता है, तो यह पूरी दुनिया में आतंकवादी और चरमपंथी विचारधाराओं को प्रोत्साहित करेगा। उन्होंने कहा कि वित्तीय और व्यापार प्रवाह में रुकावट के कारण अफगान लोगों का आर्थिक संकट बढ़ रहा है। मोदी ने कहा कि अफगानिस्तान के घटनाक्रम से मादक पदार्थ, अवैध हथियारों का अनियंत्रित प्रवाह और मानव तस्करी की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
उन्होंने बंदरगाह विहीन मध्य एशिया के देशों और भारत के बीच संपर्कों को बेहतर बनाने का आह्वान किया लेकिन साथ ही कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए संपर्क परियोजनाएं परामर्शी, पारदर्शी और सहभागी हो और इनका क्रियान्वयन करने के लिए सभी देशों की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान होना चाहिए। 

उन्होंने कहा कि एससीओ की 20वीं वर्षगांठ इस संस्था के भविष्य के बारे में सोचने के लिए भी उपयुक्त अवसर है। उनका मानना है कि इस क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौतियां शांति, सुरक्षा और विश्वास की कमी से संबंधित हैं और इन समस्याओं का मूल कारण बढ़ती हुई कट्टरता है। अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रम ने इस चुनौती को और स्पष्ट कर दिया है। 
उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर एससीओ को पहल करके कार्य करना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि यदि इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो यह पता चलेगा कि मध्य एशिया का क्षेत्र शांत और प्रगतिशील संस्कृति तथा मूल्यों का गढ़ रहा है और सूफीवाद जैसी परंपराएं यहां सदियों से पनपीं और पूरे क्षेत्र और विश्व में फैलीं। उन्होंने कहा कि इनकी छवि हम आज भी इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत में देख सकते हैं।
उन्होंने कहा, मध्य एशिया की इस ऐतिहासिक धरोहर के आधार पर एससीओ को कट्टरता और अतिवाद से लडऩे का एक साझा खाका विकसित करना चाहिए। भारत में और एससीओ के लगभग सभी देशों में इस्लाम से जुड़ी शांत, सहिष्णु समावेशी संस्थाएं व परम्पराएं हैं। एससीओ को इनके बीच एक मजबूत नेटवर्क विकसित करने के लिए काम करना चाहिए। 

उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में एससीओ के रैट्स प्रक्रिया तंत्र की ओर से किए जा रहे काम की वह प्रशंसा करते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि कट्टरपंथ से लड़ाई क्षेत्रीय सुरक्षा और आपसी विश्वास के लिए तो आवश्यक है ही युवा पीढियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि विकसित विश्व के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए हमारे क्षेत्र को उभरती प्रौद्योगिकी में हितधारक बनना होगा।
इसके लिए हमें अपने प्रतिभाशाली युवाओं को विज्ञान और विवेकपूर्ण सोच की ओर प्रोत्साहित करना होगा। हम अपने उद्यमियों और स्टार्टअप को एक दूसरे से जोड़कर इस तरह की सोच को बढ़ावा दे सकते हैं। इसी सोच से पिछले वर्ष भारत ने पहले एसएसीओ स्टार्टअप फोरम और युवा वैज्ञानिक सम्मेलन का आयोजन किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि एससीओ की सफलता का एक मुख्य कारण यह है कि इसके केंद्र में क्षेत्र की प्राथमिकताएं रही हैं।

उन्होंने कहा, कट्टरता, संपर्क और जनता के बीच संबंधों पर मेरे सुझाव एससीओ की इसी भूमिका को और सबल बनाएंगे। मोदी ने कहा कि कट्टरता और असुरक्षा के कारण इस क्षेत्र की विशाल आर्थिक क्षमता का भी दोहन नहीं हो सका। खनिज संपदा हो या एससीओ देशों के बीच व्यापार, इनका पूर्ण लाभ उठाने के लिए आपसी संपर्क पर जोर देना होगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत मध्य एशिया के साथ संपर्कों को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है क्योंकि उसका मानना है कि मध्य एशियाई देश भारतीय बाजारों से जुड़कर लाभ उठा सकते हैं।
उन्होंने कहा कि ईरान के चाबहार बंदरगाह में भारत का निवेश और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण गलियारे में उसके प्रयास इसका समर्थन करते हैं।
उन्होंने कहा कि संपर्क का कोई भी प्रयास एकतरफा नहीं हो सकता। इसे सुनिश्चित करने के लिए ऐसी परियोजनाओं को परामर्शी, पारदर्शी और सहभागी होने की जरूरत है और सभी देशों की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इन सिद्धांतों के आधार पर एससीओ को क्षेत्र में संपर्क परियोजनाओं के लिए उपयुक्त नियम कायदे विकसित करने चाहिए।

उन्होंने कहा कि इसी से हम इस क्षेत्र के पारंपरिक संपर्क को पुन: स्थापित कर पाएंगे और तभी संपर्क परियोजनाएं हमें जोडऩे का काम करेंगी न कि हमारे बीच दूरी बढ़ाने का। इस प्रयत्न के लिए भारत अपनी तरफ से हर प्रकार का योगदान देने के लिए तैयार है। एससीओ परिषद के सदस्य देशों के प्रमुखों की 21वीं बैठक शुक्रवार को हाइब्रिड प्रारूप में दुशांबे में आरंभ हुई। इसकी अध्यक्षता ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमान कर रहे हैं। 
पहली बार एससीओ की शिखर बैठक हाइब्रिड प्रारूप में आयोजित की जा रही है और यह चौथी शिखर बैठक है जिसमें भारत एससीओ के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में हिस्सा ले रहा है। हाइब्रिड प्रारूप के तहत आयोजन के कुछ हिस्से को डिजिटल आधार पर और शेष हिस्से को आमंत्रित सदस्यों की प्रत्यक्ष उपस्थिति के माध्यम से संपन्न किया जाता है।

First Published - September 18, 2021 | 7:02 AM IST

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