हालिया वर्षों में भारत के गांवों में महिला श्रमबल की भागीदारी बढ़ी है। इसका प्रमुख कारण खेती की गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी और महिला उद्यमिता का बढ़ना है। यह जानकारी वित्त मंत्रालय की सोमवार को जारी रिपोर्ट ‘भारतीय अर्थव्यवस्था : एक समीक्षा’ में दी गई है।
वित्त मंत्रालय के अर्थशास्त्रियों के समूह ने इस रिपोर्ट को तैयार किया है। इस समूह का नेतृत्व मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने किया। रिपोर्ट ने इंगित किया कि बीते कम से कम छह वर्षों में महिला श्रमबल साझेदारी दर (एफएलएफपीआर) बढ़ी है। यह 2017-18 के 23.3 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 37 प्रतिशत हो गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘शहरी एफएलएफपीआर बढ़ रही है जबकि ग्रामीण एफएलएफपीआर में तेजी से इजाफा हुआ है। स्वरोजगार और खेती में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से ग्रामीण महिलाओं की श्रम बल साझेदारी दर बढ़ी है। इस पर गौर करने की आवश्यकता है।’
ग्रामीण क्षेत्रों में एफएलएफपीआर 2017-18 के 24.6 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 41.5 प्रतिशत हो गई। हालांकि इसी अवधि के दौरान यह शहरी क्षेत्रों में 20.4 प्रतिशत से बढ़कर 25.4 प्रतिशत हो गई।
इस रिपोर्ट में बताया गया कि ग्रामीण महिला रोजगार की वृद्धि में श्रमिकों/नियोक्ता श्रेणी दोनों का योगदान (हिस्सेदारी 2017-18 के 19 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 27.9 प्रतिशत) रहा है। अवैतनिक सहायक श्रेणी में हिस्सेदारी 38.7 प्रतिशत से बढ़कर 41.3 प्रतिशत हो गई। यह ग्रामीण उत्पादन में महिलाओं की बढ़ती हिस्सेदारी का सूचक है।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘’यह संभवत कई कारणों से हुआ है। इनमें कृषि क्षेत्र की पैदावार में निरंतर ज्यादा वृद्धि और बुनियादी सुविधाओं जैसे पाइप से पेय जल आपूर्ति, खाना बनाने के स्वच्छ ईंधन, स्वच्छता आदि के कारण महिलाओं का समय बचना है। यह आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण के आंकड़ों से भी उजागर होता है कि महिलाएं घरेलू दायित्वों के अलावा अन्य काम भी महत्त्वपूर्ण रूप से कर रही हैं।’
रिपोर्ट में यह भी इंगित किया गया है कि पुरुष श्रमबल खेती के कार्यों से दूर हो रहा है। और वह गैर कृषि क्षेत्र में बढ़ती अन्य संभावनाओं में हाथ आजमा रहा है।