भारत के समुद्री इतिहास में 9 जून 2025 का दिन बेहद खास रहा। दुनिया का सबसे बड़ा कंटेनर जहाज MSC IRINA पहली बार भारत पहुंचा और केरल में बने विझिंजम अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह पर लंगर डाला। यह पहली बार है जब इतना बड़ा जहाज दक्षिण एशिया के किसी बंदरगाह पर आया है। इस ऐतिहासिक मौके ने विझिंजम पोर्ट को एक बार फिर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया है।
MSC IRINA एक अल्ट्रा-लार्ज कंटेनर जहाज है, जिसकी लंबाई लगभग 400 मीटर और चौड़ाई 61 मीटर है। यह जहाज आकार में एक फुटबॉल के मैदान से करीब चार गुना बड़ा है। इसकी कंटेनर ले जाने की क्षमता 24,346 TEU है, यानी यह एक बार में इतने बीस फुट लंबे कंटेनर ले जा सकता है। इसकी खासियत यह भी है कि कंटेनर इसकी ऊंचाई में 26 परतों तक रखे जा सकते हैं। मार्च 2023 में लॉन्च हुए इस जहाज ने अप्रैल 2023 में अपनी पहली यात्रा शुरू की थी और यह लाइबेरिया के झंडे के तहत चलता है।
विझिंजम पोर्ट केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के पास स्थित भारत का पहला गहरे पानी वाला कंटेनर ट्रांसशिपमेंट पोर्ट है। यह एक ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट है जिसे पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत बनाया गया है। केंद्र सरकार, केरल सरकार और अदाणी पोर्ट्स मिलकर इसे विकसित कर रहे हैं। इस परियोजना की शुरुआत 2015 में हुई थी और इसका पहला चरण करीब ₹7,600 करोड़ की लागत से तैयार हुआ है।
यह पोर्ट समुद्र के जिस हिस्से में बना है, वहां पानी की गहराई 18 से 20 मीटर तक है। इस गहराई की वजह से यहां दुनिया के सबसे बड़े जहाज भी बिना किसी रुकावट के आ सकते हैं। विझिंजम पोर्ट सिर्फ 10 नॉटिकल मील यानी लगभग 19 किलोमीटर की दूरी पर अंतरराष्ट्रीय शिपिंग रूट से जुड़ा है। इसका मतलब है कि दुनिया भर के जहाज, जो यूरोप से एशिया की ओर आते हैं, इस पोर्ट पर आसानी से रुक सकते हैं। विझिंजम पोर्ट इसलिए खास है क्योंकि ये सीधे उस समुद्री मार्ग के बहुत पास है जहां से दुनिया के बड़े जहाज आते-जाते हैं। इस वजह से भारत का व्यापार बढ़ेगा और मजबूत होगा।
विझिंजम पोर्ट ने जुलाई 2024 में ट्रायल रन शुरू किया था और दिसंबर 2024 में व्यावसायिक संचालन शुरू कर दिया गया। अब तक इस पोर्ट पर 349 से ज़्यादा जहाज आ चुके हैं और कुल 7.33 लाख TEU कंटेनर यहां संभाले जा चुके हैं। MSC IRINA जैसे जहाज का आना दिखाता है कि पोर्ट अब पूरी तरह से बड़े जहाजों के संचालन के लिए तैयार है। पहले चरण में पोर्ट की सालाना क्षमता 1 मिलियन TEU है और तीसरे चरण में यह क्षमता बढ़कर 3.3 मिलियन TEU हो जाएगी।
अब तक भारत का लगभग 75 फीसदी कंटेनर ट्रांसशिपमेंट दूसरे देशों के पोर्ट्स – जैसे कोलंबो, सिंगापुर और दुबई – के ज़रिए होता था। इससे हर कंटेनर पर $80 से $100 यानी ₹6,000 से ₹8,000 तक का अतिरिक्त खर्च आता था। विझिंजम जैसे पोर्ट से यह खर्च बचेगा, साथ ही समय की भी बचत होगी। इससे भारत की समुद्री व्यापार में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में उसकी पकड़ मजबूत होगी।
विझिंजम पोर्ट की एक और खासियत इसकी ज़बरदस्त कनेक्टिविटी है। यह पोर्ट चार-लेन वाले NH-66 से जुड़ा है, जो देश के दक्षिणी हिस्सों को जोड़ता है। तिरुवनंतपुरम इंटरनेशनल एयरपोर्ट यहां से सिर्फ 16 किलोमीटर दूर है और पास में रेल नेटवर्क भी मौजूद है। भविष्य में यहां एक डेडिकेटेड मालगाड़ी कॉरिडोर की योजना भी बनाई जा रही है जिससे माल आसानी से देश के भीतर पहुंचाया जा सकेगा।
इस बंदरगाह की राह आसान नहीं रही। 2017 में ओखी तूफान की वजह से दो ड्रेजर क्षतिग्रस्त हो गए, 2018 में आई भारी बाढ़ से महीनों काम बंद रहा। 2021 में तौकते तूफान ने ब्रेकवॉटर का एक हिस्सा तोड़ दिया जो इस पोर्ट का अहम हिस्सा था। फिर कोविड महामारी ने दो साल तक काम धीमा कर दिया। इसके बाद 2022 में मछुआरा समुदाय ने परियोजना के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया, जिससे काम फिर रुक गया। लेकिन सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच बातचीत के बाद समाधान निकाला गया और काम दोबारा शुरू हो सका।
विझिंजम पोर्ट न केवल भारत को विदेशी पोर्ट्स पर निर्भरता से मुक्त करेगा, बल्कि कोलंबो, दुबई और सिंगापुर जैसे बड़े पोर्ट्स को सीधी टक्कर देगा। यह बंदरगाह भारत को समुद्री व्यापार में एक नई पहचान देगा। MSC IRINA जैसे जहाजों का यहां आना दिखाता है कि भारत अब पूरी तरह से वैश्विक समुद्री ताकत बनने की ओर बढ़ रहा है। विझिंजम अब सिर्फ एक पोर्ट नहीं, बल्कि भारत के भविष्य की नींव है।