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भारत में अक्षय ऊर्जा के उतार-चढ़ाव से ग्रिड स्थिरता की चिंता बढ़ी, सरकार कर रही कड़े नियमों पर विचार

फिलहाल अक्षय ऊर्जा क्षमता 224 गीगावाॅट है जबकि भारत की कुल बिजली उत्पादन क्षमता 470 गीगावाॅट है।

Last Updated- May 26, 2025 | 11:32 PM IST
Solar Energy
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

पिछले दो दशक में अक्षय ऊर्जा क्षमता में तेज वृद्धि हुई है जिसे देखते हुए ग्रिड भी अब ‘बहुत अधिक अक्षय ऊर्जा’ को संभालने के तरीके खोज रहा है। अक्षय ऊर्जा के प्रमुख स्रोत में सौर, पवन, लघु पनबिजली आदि शामिल हैं और इनका उत्पादन अनियमित है। अक्षय ऊर्जा का उत्पादन अचानक बढ़ने और घटने से ग्रिड में व्यापक स्तर पर व्यवधान हो सकता है और बिजली गुल भी हो सकती है। 

इस उतार-चढ़ाव को सही तरीके से संभालने के लिए केंद्रीय बिजली मंत्रालय की इकाइयां ग्रिड इंडिया, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) और केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (सीईआरसी) अक्षय ऊर्जा के शेड्यूल, पूर्वानुमान और उसके प्रबंधन के लिए विभिन्न योजनाएं बना रही हैं जबकि तापीय बिजली को बुनियादी आपूर्ति के रूप में रखा गया है। ​फिलहाल अक्षय ऊर्जा क्षमता 224 गीगावाॅट है जबकि भारत की कुल बिजली उत्पादन क्षमता 470 गीगावाॅट है।

पिछले महीने स्पेन को व्यापक रूप से ब्लैकआउट का सामना करना पड़ा था। इसकी प्रमुख वजह उसके ग्रिड में अचानक अक्षय ऊर्जा की आपूर्ति में भारी गिरावट थी। वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि भारत में अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता अभी उस मात्रा तक नहीं पहुंची है लेकिन ग्रिड में असंतुलन जरूर पैदा हो सकता है। भारत में अक्षय ऊर्जा के लिए बड़े पैमाने पर स्टोरेज की सुविधा नहीं है इसलिए जब उन्हें ग्रिड में फीड किया जाता है तो अनियमित अक्षय ऊर्जा स्रोतों का प्रबंधन करना मुश्किल हो जाता है।

ग्रिड इंडिया के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि वे द्विआयामी नजरिया अपना रहे हैं। एक अधिकारी ने कहा, ‘हम इस पर विचार कर रहे हैं कि ताप ऊर्जा की आपूर्ति दो पाली में सुबह और सूर्यास्त के बाद की जाए। दूसरा यह कि ताप ऊर्जा को 40 से 55 फीसदी की हीट रेट पर चलाएं और फिर दिन और रात के समय अक्षय ऊर्जा की आपूर्ति घटने पर ताप ऊर्जा की आपूर्ति बढ़ा दें।’ ग्रिड इंडिया देश का बिजली ग्रिड ऑपरेटर है। उन्होंने कहा कि सीईआरसी द्वारा नियम बनाए जाने की उम्मीद है ताकि ताप ऊर्जा उत्पादकों को उनकी हीट रेट कम करने के लिए मुआवजा दिया जा सके। 

अक्षय ऊर्जा का योगदान हर साल बढ़ रहा है और भारतीय ग्रिड ‘डक कर्व’ समस्या का सामना कर रहा है। डक कर्व का मतलब बतख के आकार से है, जिसमें उसकी पूंछ नीची होती है और गर्दन तथा सिर ऊंचा।

बिजली की मांग दिन के समय कम रहती है और शाम को अचानक से बढ़ जाती है। भारत में बिजली की मांग पहले दिन के समय सर्वा​धिक होती थी लेकिन हाल के वर्षों में घरेलू बिजली की मांग बढ़ने से शाम के घंटों के दौरान एक नई चरम स्थिति उभरी है। घरों में विशेष रूप से एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर के इस्तेमाल से बिजली की मांग बढ़ रही है।

ग्रिड के एक अधिकारी ने कहा, ‘शाम के घंटों के दौरान मांग चरम पर होती है लेकिन उस समय सौर और पवन ऊर्जा उपलब्ध नहीं होती है। सुबह तथा दोपहर के दौरान जब सौर ऊर्जा उपलब्ध होती है तो मांग उतनी अधिक नहीं होती है। आपूर्ति अधिक और मांग कम होने पर यह डक कर्व आने वाले वर्षों में खतरनाक हो सकता है क्योंकि अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ रही है।’ उन्होंने आगे कहा कि ऊर्जा स्टोरेज डक कर्व की समस्या से निपटने में मदद करेगा।

हरित ऊर्जा को व्यव​स्थित करना

ग्रिड को अक्षय ऊर्जा स्रोतों की अनियमित शेड्यूल की समस्या का भी सामना करना पड़ र​हा है। ग्रिड इंडिया द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार देश के अक्षय ऊर्जा समृद्ध क्षेत्रों में 2024 में उच्च मांग वाले महीनों के सौर घंटों के दौरान वोल्टेज में भारी उतार-चढ़ाव दिखा। इन क्षेत्रों में अक्षय ऊर्जा आपूर्ति शेड्यूल में भी बड़ा विचलन देखा गया। सरकार अब अक्षय ऊर्जा शेड्यूल और पूर्वानुमान के लिए सख्त प्रावधान पर विचार कर रही है।

ग्रिड और अक्षय ऊर्जा प्रबंधन के लिए तकनीकी समाधान पेश करने वाली प्रमुख कंपनी आरईकनेक्ट एनर्जी के सह-संस्थापक विशाल पंड्या ने कहा, ‘यह देखा जा रहा है कि अक्षय ऊर्जा समृद्ध क्षेत्रों को वोल्टेज में उतार-चढ़ाव और बिजली आपूर्ति की तीव्रता में बदलाव की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। दोनों मामले ग्रिड की स्थिरता को बाधित कर सकते हैं।’ पंड्या ने कहा कि सरकार दोनों मोर्चों पर नीतियों को सक्रिय रूप से बदल रही है। 

पंड्या ने कहा, ‘शेड्यूल से विचलन सभी हितधारकों के लिए महंगा साबित हो रहा है। इसका पता राष्ट्रीय ग्रिड पर डीएसएम शुल्क से भी चलता है, जो वित्त वर्ष 2021 से 2024 के बीच 103 फीसदी तक बढ़ गया। आगे इसमें और इजाफा होने का अनुमान है।’

ऊर्जा क्षेत्र के अधिकारियों ने कहा कि सख्त उपाय सभी हितधारकों के लिए डीएसएम शुल्क के कारण होने वाले नुकसान को काफी कम करने में मदद करेंगे। पंड्या ने कहा कि इससे ग्रिड ऑपरेटरों को बेहतर मांग-आपूर्ति प्रबंधन के माध्यम से ग्रिड की स्थिरता में सुधार करने में भी मदद मिलेगी।

First Published - May 26, 2025 | 11:00 PM IST

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