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सर्वोच्च का भूषण स्टील फैसले से IBC में निवेशक भरोसा बढ़ेगा

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से निवेशकों और लेनदारों का भरोसा बढ़ेगा और IBC के तहत परिसमापन प्रक्रिया में तेजी और निश्चितता आएगी।

Last Updated- September 27, 2025 | 10:48 AM IST
Supreme Court
Representative Image

भूषण स्टील ऐंड पावर के परिसमापन के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपना पिछला आदेश पलटने वाले शुक्रवार के फैसले को दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के लिए बहुत जरूरी सुधार के रूप में देखा जा रहा है। इस फैसले से निश्चितता आई है और कानून के विधायी इरादे को रेखांकित किया है। आईबीसी विशेषज्ञों ने कहा कि शीर्ष अदालत के इस आदेश से निवेशकों की जरूरत और लेनदारों के लिए अधिक वसूली में भी सुधार होगा।

केएस लीगल ऐंड एसोसिएट्स की प्रबंध साझेदार सोनम चंदवानी ने कहा, ‘जेएसडब्ल्यू-भूषण स्टील मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आईबीसी के परिपक्व कानून के रूप में संकेत देता है, जो समाधान में रफ्तार, निश्चितता और अंतिम रूप देने के अपने विधायी इरादे के करीब है। खरीदार अब अप्रत्याशित मुकदमेबाजी के साये के बिना कदम उठा सकते हैं, जो वाणिज्यिक व्यावहारिकता को कमजोर करती है।’

न्यायालय के आदेश में इस बात पर जोर दिया गया कि ‘आईबीसी का प्रमुख उद्देश्य परिसमापन की कार्यवाही को अंतिम विकल्प के रूप में उपयोग करना है।’ विशेषज्ञों ने कहा कि नवीनतम फैसला निवेशकों का विश्वास बहाल करेगा, बड़ी दबावग्रस्त परिसंपत्तियों में मूल्य हानि को रोकेगा।

इंडियालॉ एलएलपी के प्रबंध साझेदार शिजू पीवी ने कहा, ‘न्यायालय ने इस सिद्धांत को मजबूत किया है कि लेनदारों की समिति की वाणिज्यिक समझ का सम्मान किया जाना चाहिए और देरी या प्रक्रियात्मक बाधाओं से काई व्यावहारिक समाधान पटरी से नहीं उतारना चाहिए।’ सर्वोच्च न्यायालय ने आईबीसी में मुकदमेबाजी और विस्तार के कारण होने वाली देरी के मसलों पर भी ध्यान दिया है, जो सफल समाधान योजना के कार्यान्वयन की राह में खड़े होते हैं। न्यायालय ने कहा कि आईबीसी का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दिवाला कार्यवाही से गुजर रही कंपनी को किसी निर्धारित समय सीमा के भीतर जल्दी से पुनर्जीवित किया जाए या उसका परिसमापन किया जाए।

आईबीसी के मौजूदा ढांचे के तहत कॉरपोरेट दिवाला समाधान शुरू करने वाले आवेदन को 14 दिनों के भीतर स्वीकार कर लिया जाना चाहिए। हालांकि वास्तव में निर्णायक अधिकारियों द्वारा लिया गया औसत समय 434 दिनों से अधिक या लगभग 14.5 महीने है।

First Published - September 27, 2025 | 10:48 AM IST

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