आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना (एबीआरवाई) से लाभ उठाने वाले राज्यों में पंजाब सबसे आगे है। यह योजना केंद्र सरकार ने औपचारिक रोजगार को गति देने के लिए महामारी के दौरान शुरू की थी। आंकड़ों के मुताबिक राज्य में हर पांच सक्रिय कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) सबस्क्राइबरों में से एक सदस्य इस योजना में शामिल है।
श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में पिछले सोमवार को बताया कि केंद्र की योजना से इस साल 18 जुलाई तक केंद्र की योजना का लाभ पाने वाले औपचारिक श्रमिकों में से 20.1 प्रतिशत पंजाब से हैं। उसके बाद हिमाचल प्रदेश (19.1 प्रतिशत), राजस्थान (18.9 प्रतिशत), गुजरात (15.4 प्रतिशत) और मध्य प्रदेश (14.2 प्रतिशत) हैं।
बहरहाल अगर योजना के तहत कुल लाभार्थियों की संख्या के हिसाब से देखें तो 9,78,308 लाभार्थियों वाला महाराष्ट्र सबसे आगे है। उसके बाद तमिलनाडु (8,17,315), गुजरात (6,43,573) और कर्नाटक (4,86,278) का स्थान है। यह योजना अक्टूबर 2020 में शुरू की गई। एबीआरवाई का मकसद नियोक्ताओं को नई नौकरियों के सृजन और कोविड महामारी के दौरान छंटनी के शिकार हुए कर्मचारियों को फिर से बहाल करने के लिए प्रोत्साहित करना था।
इस योजना से जून 2021 तक 72 लाख श्रमिकों को फायदा पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन लाभार्थियों के पंजीगकरण की अंतिम तिथि बढ़ाकर मार्च 2022 तक कर दी गई। योजना के तहत करीब 75 लाख लोगों ने पंजीकरण कराया। मंत्री ने सदन को बताया कि योजना लागू होने के बाद से 18 जुलाई 2023 तक के आंकड़ों के मुताबिक देश के 1,52,000 प्रतिष्ठानों के माध्यम से 60.4 लाख लाभार्थियों को 9,640.43 करोड़ रुपये का लाभ पहुंचाया गया है।
केंद्र सरकार ने इस योजना पर वित्त वर्ष 2020-21 और 2021-22 में क्रमशः 405 करोड़ रुपये और 5,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। साथ ही 2022-23 में 4,636 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च किए गए हैं। इस साल की शुरुआत में सरकार ने वित्त वर्ष 24 में इस योजना के तहत 2,272 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
एबीआरवाई के तहत 15,000 रुपये प्रति माह से कम मासिक कमाने वाले कर्मचारियों को सरकार दो साल तक कर्मचारी और नियोक्ता दोनों के ईपीएफ में अंशदान का भुगतान करती है। यह राशि वेतन का 24 प्रतिशत होता है। यह योजना उन प्रतिष्ठानों पर लागू है, जहां 1,000 तक कर्मचारी काम करते हैं। 1,000 से ज्यादा कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठान में नए कर्मचारी की नियुक्ति पर सरकार सिर्फ कर्मचारी का हिस्सा या वेतन का 12 प्रतिशत ईपीएफ अंशदान के रूप में भुगतान करती है।
इस योजना का सबसे कम लाभ उठाने वाले राज्यों में बिहार सबसे ऊपर है, जहां सिर्फ 2.4 प्रतिशत सक्रिय कर्मचारी योजना के तहत आते हैं। उसके बाद असम (5.5 प्रतिशत), दिल्ली (5.7 प्रतिशत) और कर्नाटक (6.5 प्रतिशत) का स्थान है।
टीमलीज सर्विजेज के सह संस्थापक ऋतुपर्ण चक्रवर्ती ने कहा कि एबीआरवाई ने खासकर महामारी के बाद कार्यबल को औपचारिक बनाने में अहम भूमिका निभाई है। इसने तमाम नियोक्ताओं अपने अनियमित कर्मचारियों को नियमित पेरोल पर रखने के लिए प्रोत्साहित किया है।
चक्रवर्ती ने कहा कि सरकार को इस योजना को कुछ और समय तक बढ़ाने पर विचार करना चाहिए, हालांकि सिर्फ इसकी वजह से नई औपचारिक नौकरियों का सृजन नहीं हो सकता, जो अभी भी अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती है।
इस माह की शुरुआत में श्रम पर बनी संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में जोर दिया है कि योजना के तहत पात्रता की शर्तों पर फिर से विचार करने की जरूरत है। इससे सुनिश्चित हो सकेगा कि योजना का लाभ प्रभावी तरीके से उन कर्मचारियों व नियोक्ताओं को मिल सकेगा, जो इसका लाभ नहीं पा रहे हैं और उन्होंने पंजीगकरण कराया है। इस तरह के करीब 15 लाख पंजीकृत लोगों को अभी फायदा नहीं मिला है।