वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने अमेरिका यात्रा पर जाने से पहले श्रेया नंदी और असित रंजन मिश्र के साथ साक्षात्कार में देश की निर्यात नीति, निवेश के अवसरों, अहम कारोबारी साझेदारियों, विनिर्माण वृद्धि और चीन के साथ कारोबारी रिश्तों समेत तमाम बिंदुओं पर बात की। प्रमुख अंश:
हमें बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना होगा। सेवा और पर्यटन के क्षेत्र में हम बहुत अच्छा निर्यात हासिल कर सकते हैं लेकिन परियोजना निर्यात एक अन्य क्षेत्र है जिसमें हम अब तक वैसा प्रदर्शन नहीं कर सके हैं, जैसा कर सकते हैं। उदाहरण के लिए मैंने पाया कि ऑस्ट्रेलिया में 10 लाख मकान की कमी है। यह हमारे रियल एस्टेट डेवलपरों के लिए बहुत बड़ा अवसर है कि वे ऑस्ट्रेलिया में 10 लाख मकान बना सकें। मैंने वहां के साउथ ऑस्ट्रेलिया राज्य की सरकार से बात की है। मैंने वहां के व्यापार मंत्री से भी बात की है और हम इसे आगे ले जाएंगे।
मैंने क्रेडाई से भी बात की है और कहा है कि वे अपने डेवलपरों की टीम तैयार करें जो वहां जाकर ऑस्ट्रेलिया से बातचीत कर सकें। हमें नए क्षेत्रों पर नजर डालनी होगी। पर्यटन में बहुत अधिक संभावनाएं हैं लेकिन विनिर्माण प्रमुख होगा क्योंकि वह रोजगार देता है और एक पूरी व्यवस्था बनाता है। ‘मेक इन इंडिया’ के 10 साल बाद सरकार को संतुष्टि है कि यह सर्वाधिक सफल कार्यक्रम रहा। धीमी पड़ती दुनिया में भारत लगातार विनिर्माण निर्यात सहित अच्छा प्रदर्शन कर रहा है।
मैं दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ इस दिशा में काम कर रहा हूं कि क्या हम उनके कुछ गैर शुल्क मुद्दों को हल कर सकते हैं और हम आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौते की भी समीक्षा कर रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि इससे हमें वहां निर्यात बढ़ाने का अवसर मिलेगा। मैं आसियान देशों के मंत्रियों की बैठक में केवल यह बताने गया था कि यह समीक्षा कितनी जरूरी है और मुझे उनसे आश्वासन भी मिला है। अगर समीक्षा में हमें सही सौदा मिलता है तो इससे हमें व्यापार घाटा कम करने में मदद मिलेगी। अगर वे ऐसा नहीं करते तो हमें उन गैर टैरिफ बाधाओं को देखना होगा जो हमारे सामने हैं। हमें प्रतिकार के उपायों की ओर भी देखना होगा।
हम विश्व व्यापार संगठन के नियमों के दायरे में काम करते हैं। जब तक कारोबार सही ढंग से हो, पारदर्शिता हो और दोनों पक्षों को समान अवसर मिलें तब तक हमारा किसी देश से विरोध नहीं। अगर कोई देश हमें समान अवसर और समान पहुंच नहीं देता है या उसके मूल्यों में अस्पष्टता और अपारदर्शिता है तो भारत भी अपने हितों के बचाव के उपाय करेगा।
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसेप) के पूरा होने के बाद चीन की नीति को आसियान की नीतियों के संदर्भ में देखना होगा। चीन अपने उत्पादन का बड़ा हिस्सा आसियान देशों में भेजने में सक्षम है और उसे आसियान देशों के साथ हमारे मुक्त व्यापार समझौतों का फायदा मिलता है। ऐसे में हम कई आसियान देशों से आने वाली चीजों के असर को लेकर सतर्क हैं जो आरसेप का लाभ लेकर भारत के हितों को नुकसान पहुंचाते हैं।
माना जा रहा है कि चीन को लेकर भारत का रुख बदल रहा है और भारत 14 पीएलआई (उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन) क्षेत्रों में चीनी टेक्नीशियन को वीजा दे रहा है। हमारा राष्ट्रीय हित सर्वोपरि है। हम देश की जरूरत को ध्यान में रखकर अपनी नीतियों और निर्णयों को संतुलित करेंगे।
अभी ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है।
ऐसा इसलिए कि जब वे अच्छा मुनाफा कमाते हैं तो समय-समय पर पैसे वापस भी भेजते हैं जो अच्छी बात है। इससे उन्हें और अधिक निवेश करने का प्रोत्साहन मिलता है। अतीत में लोग भारत में निवेश करते थे लेकिन मुनाफा न होने के कारण निवेश बंद कर देते थे। अब जब अच्छा रिटर्न मिल रहा है तो मुझे लगता है कि निवेश और एफडीआई की आवक बढ़ेगी। जो अतिरिक्त एफडीआई आता है वह नए रोजगार तैयार करता है। वापस जाने वाला धन मुनाफे का हिस्सा होता है।
क्या बीमा जैसे क्षेत्रों में एफडीआई को और उदार बनाया जा सकता है?
एफडीआई को उदार बनाने की कोई मांग हमारे सामने नहीं आई है। बीमा में पहले ही 74 फीसदी एफडीआई की इजाजत है।
मुझे खुशी है आयात शुल्क नीति की समीक्षा हो रही है। इससे हम जान पाएंगे कि आयात की दृष्टि से जरूरी और गैर जरूरी क्या है। वे इनवर्टेड शुल्क ढांचे को देख पाएंगे और कुछ कंपनियों के गुणवत्ता तथा गैर पारदर्शी मूल्य के प्रश्नों से जुड़ी चिंताओं को हल कर सकेंगे।
वहां की नई सरकार को बने कुछ ही महीने हुए हैं। इटली में जी7 बैठक में मेरी मुलाकात उनके मंत्री से हुई और उन्होंने कहा कि उन्हें चीजों को समझने के लिए वक्त चाहिए। उन्होंने वादा किया है कि वे जानकारी जुटाने के बाद मुझसे वापस संपर्क करेंगे।
एक तरफ तो हम कह सकते हैं कि अभी बहुत कुछ किया जाना है। दूसरी ओर अगर यूनाइटेड किंगडम की नई सरकार सक्रियता दिखाए तो बहुत तेजी से काम हो सकता है।
मुक्त व्यापार समझौते से जुड़ी वार्ता पर मेरा रुख हमेशा यही रहा है कि सभी दृष्टिकोण सामने आएं और सभी विकल्पों पर विचार किया जाए। इसमें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।
ऐसी कोई अड़चन नहीं है लेकिन कई चीजों पर चर्चा हो रही है। सीबीएएम भी उनमें से एक है। लेकिन मैं उसे इकलौती या कोई बड़ी अड़चन नहीं मानता।
इसकी कुछ संभावना हो सकती है क्योंकि सीबीएएम देशों को अपनी जमीन पर कार्बन पर कर लगाने की इजाजत देता है और ऐसे मामलों में कोई कर नहीं चुकाना होगा।
अगर वे इन गैर टैरिफ वाले मुद्दों में जाएंगे तो हर देश को अपने राष्ट्रीय हितों को देखना होगा और उसी के अनुरूप नीतियां बनानी होंगी। एक बात तय है कि मुझे यूरोपीय संघ विश्व बाजार में गैर प्रतिस्पर्धी होता नजर आ रहा है क्योंकि उसका अपना ही उत्पादन महंगा हो रहा है और वहां रहना भी महंगा हो रहा है। वहां मुद्रास्फीति बढ़ेगी। सीबीएएम, वनों की कटाई आदि के कानून यूरोप को ही अधिक नुकसान पहुंचाएंगे।
नहीं। हर रिश्ता अपने दम पर टिका होता है। हर रिश्ते की अपनी मजबूती या कमजोरी होती है।
हमने बहुत बातचीत की। हमने उन्हें हर संभव अवसर दिया कि वे स्टील और एलुमिनियम पर टैरिफ खत्म कर सकें। कुछ महीने पहले जब लोक सभा चुनाव हो रहे थे, उन्होंने एक बार फिर इसे दो या तीन साल के लिए बढ़ा दिया। तब हमें लगा कि अब जवाब देना चाहिए।
ओमान के साथ हमारी बहुत अच्छी बातचीत हुई लेकिन जब तक सबकुछ अंतिम तौर पर तय नहीं हो जाता, कुछ भी निश्चित नहीं होता।
जीसीसी के अन्य देश ऐसा चाहते हैं लेकिन पूरे जीसीसी की बात करें तो हमने अभी तक इस बारे में चर्चा नहीं शुरू की है।
मुझे लगता है कि जब दोनों पक्ष तैयार होंगे तो शुरुआत हो जाएगी। अभी तक शुरुआत को लेकर शर्तों पर सहमति नहीं बनी है।
मुझे याद है कि इस बारे में बातचीत हुई थी और वे कुछ विस्तृत ब्योरा देने वाले थे। मेरे विचार में यह निवेश पर उच्चस्तरीय संयुक्त कार्यबल की सात अक्टूबर को होने वाली बैठक का विषय है। अगर कुछ लंबित है तो हम उसे उठाएंगे।
निगरानी व्यवस्था के तहत हम आयात पर रोक नहीं लगा रहे हैं। न ही हम आयात को रोक रहे हैं। यह डेटा जुटाने की कवायद है ताकि हमें नीति बनाने में मदद मिले। आंकड़ों के आधार पर हम तय करेंगे कि आगे क्या करना है।
हमें संबंधित मंत्रालय से अनुशंसा पानी होगी। वही बताएंगे हमें क्या करना है। मुझे नहीं लगता अब तक कोई अनुशंसा आई है। विदेश व्यापार महानिदेशालय केवल नौ मंत्रालयों की इच्छाओं का क्रियान्वयन कर रहा है। इन नौ मंत्रालयों को तय करना होगा कि वे कौन-से दिशानिर्देश देना चाहते हैं। महानिदेशालय खुद तय नहीं कर सकता कि क्या करना है।
अभी यह बातचीत रुकी हुई है। हम ट्रेड पिलर में शामिल नहीं हैं और पर्यवेक्षक की भूमिका में हैं। हमें लगता है कि किसी भी देश के लिए उसके मूल दस्तावेज को स्वीकार करना मुश्किल होगा। हमारा रुख सही है क्योंकि वे भी अभी तक किसी सहमति पर नहीं पहुंच सके हैं।
पहला, मुझे विनिर्माण, वित्तीय सेवा, सूचना प्रौद्योगिकी, वैश्विक क्षमता केंद्रों आदि के क्षेत्र के कई कारोबारियों के साथ मुलाकात करनी है और देखना है कि भारत में संभावनाओं का कितना दोहन किया जा सकता है। औद्योगिक समूहों के साथ मेरी बैठक हैं और भारतीय प्रवासियों के साथ भी कई बैठकें होनी हैं। सरकार के स्तर पर हम अमेरिका-भारत सीईओ राउंडटेबल और अमेरिका-भारत वाणिज्यिक संवाद में शामिल होना है।
हम साझा हित के मामलों पर बातचीत करेंगे। मसलन हम सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिकी उद्योग को लेकर क्या कदम उठा सकते हैं। विनिर्माण तथा अन्य सेवाओं में बड़ा निवेश कैसे आ सकता है और उभरती तकनीक और अहम खनिज के मामले में क्या हो सकता है। हमारे पास सरकार और अधिकारियों दोनों से बातचीत के लिए ठोस एजेंडा है।
जीएसपी एजेंडे में नहीं हैं। बीते कुछ वर्षों से जीएसपी और टोटलाइजेशन दोनों ही चर्चा का विषय नहीं हैं। मैं पहले भी सरकार के साथ यह विषय उठा चुका हूं कि वह पुराने जीएसपी को बहाल करे, टोटलाइजेशन को पेश करे लेकिन अमेरिका के मौजूदा राजनीतिक हालात को देखते हुए मुझे नहीं लगता कि वह चर्चा का विषय है।
मेरे पास जो आंकड़े हैं वे तो चौंकाने वाले हैं। हर स्टील कंपनी जमकर निवेश कर रही है। हर सीमेंट कंपनी निवेश कर रही है क्योंकि अधोसंरचना और अचल संपत्ति दोनों में तेजी है। बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में हमारा देश सबसे तेजी से विकसित हो रहा है। हमारी वृद्धि दर 7-7.5 फीसदी है। बिना निवेश के यह संभव नहीं था। भारत केवल खपत के भरोसे आगे नहीं बढ़ रहा है, इसमें उत्पादन का भी योगदान है।