राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने गुरुवार को घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अगस्त 2023 से जुलाई 2024 के बीच असम के लोगों ने खाने-पीने की चीजों पर हर महीने अपनी कमाई का (एमपीसीई) सबसे ज्यादा खर्च किया है। इस मामले में असम (53.2 फीसदी) के बाद बिहार (52.5 फीसदी), पश्चिम बंगाल के (51.5 फीसदी) और मेघालय का (50.3 फीसदी) का स्थान रहा। इन राज्यों के परिवारों ने पेय पदार्थों और प्रोसेस्ड फूड के उपभोग पर सर्वाधिक खर्च किया, जिनमें जैम, अचार और पका हुआ तैयार भोजन खरीदना शामिल है। इसमें असम की हिस्सेदारी 12.8 फीसदी रही। फिर बिहार की 10.46 फीसदी, पश्चिम बंगाल की 10.3 फीसदी और अरुणाचल प्रदेश की 15.8 फीसदी हिस्सेदारी रही।
दूसरी ओर, केरल के ग्रामीण इलाकों (40.32 फीसदी) और दिल्ली (40.32 फीसदी) के परिवारों ने खाद्य पदार्थों पर हर महीने सबसे कम खर्च किया। उसके बाद पंजाब (42.43 फीसदी) और महाराष्ट्र (42.74 फीसदी) का स्थान रहा। इसके अलावा, अनाज पर एमपीसीई की हिस्सेदारी झारखंड में सर्वाधिक (7.9 फीसदी) रही। उसके बाद ओडिशा (7.5 फीसदी), बिहार (6.59 फीसदी) और पश्चिम बंगाल (6.46 फीसदी) का स्थान रहा। यह भारत में खाद्य पदार्थों की खपत का महत्त्वपूर्ण घटक है और इसमें मोटे अनाज, चावल, गेहूं, सूजी जैसी वस्तुएं शामिल होती हैं।
इस बीच, शहरी इलाकों में एमपीसीई में खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी बिहार के परिवारों में सर्वाधिक 48.8 रही। फिर, गोवा (47.9 फीसदी), असम (47.4 फीसदी) और सिक्किम (46.3 फीसदी) जैसे राज्य रहे। यहां भी खाने-पीने की चीजों में पेय पदार्थों और प्रोसेस्ड फूड पर हर महीने किया गया खर्च सर्वाधिक था। शहरी इलाकों में अनाज की खपत का हिस्सा सबसे ज्यादा मणिपुर (6.7 फीसदी) में रहा। उसके बाद झारखंड (5.84 फीसदी) और बिहार (5.76 फीसदी) रहा।
साल 2023-24 में देश भर में खाद्य पदार्थों पर हर महीने खर्च की गई कुल रकम में ग्रामीण इलाकों की हिस्सेदारी एक साल पहले के 46.4 फीसदी से मामूली बढ़कर 47.04 फीसदी और शहरी इलाकों में 39.2 फीसदी से बढ़कर 39.7 फीसदी रही।
भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् प्रणव सेन ने कहा कि एनएसओ ने पद्धतिगत परिवर्तनों की मजबूती को सत्यापित करने के लिए लगातार दो उपभोग व्यय सर्वेक्षण किए और जो परिणाम सामने आए हैं वे काफी सुसंगत हैं और जो भिन्नता देखी गई है वह सांख्यिकीय त्रुटि के दायरे में है।
पिछले महीने जारी एक पत्र से पता चला था कि साल 2023-24 की अवधि के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में एमपीसीई 9.2 फीसदी बढ़कर 4,122 रुपये हो गया, जबकि इसी अवधि में शहरी घरेलू व्यय 8.3 फीसदी बढ़कर 6,996 रुपये हो गया। इनमें विभिन्न सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के तहत परिवारों को निःशुल्क दी जाने वाली वस्तुओं का मूल्य शामिल नहीं है।