देश की आर्थिक राजधानी कहलाने वाली मुंबई नगरी का नाम जिन मुंबा देवी के नाम पर पड़ा है, उनके मंदिर को भी काशी विश्वनाथ और उज्जैन के महाकाल मंदिर की तर्ज पर विकसित करने की योजना है। मगर मंदिर के इर्द-गिर्द गलियारा तैयार करने की इस योजना से जवेरी बाजार के कारोबारी ऊहापोह में फंस गए हैं। वे खुश तो हैं क्योंकि मंदिर के विकास के साथ ही भीड़भाड़ और तंग गलियों वाले उनके बाजार का कायाकल्प भी हो जाएगा। मगर कई कारोबारियों को इस कवायद में अपना कारोबार उजड़ने की चिंता भी सता रही है।
महाराष्ट्र सरकार ने 2023 में पूरे जोर-शोर से मुंबा देवी मंदिर कॉरिडोर बनाने का ऐलान किया था और उसके लिए भूमि पूजन भी कर दिया गया था। इस परियोजना के तहत अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक गलियारा तैयार करने का भी प्रस्ताव है, जिसके बाद मुंबई का यह सबसे पुराना कारोबारी इलाका आधुनिक सुविधाओं से चमचमा जाएगा और स्थानीय व्यापारियों का जुड़ाव सीधे वैश्विक बाजार से हो जाएगा। परियोजना का सबसे बड़ा फायदा जवेरी बाजार और दागिना बाजार को ही मिलना है, जो देश में सोने-चांदी की सबसे बड़ी मंडियां हैं।
तकरीबन ढाई किलोमीटर दायरे में फैला जवेरी बाजार करीब 150 साल पुराना है और यहां 7,000 से ज्यादा छोटी-बड़ी दुकानें हैं। यहां सोना-चांदी और सराफा कारोबारियों के साथ विभिन्न प्रकार के रत्न और कीमती पत्थरों का व्यापार करने वाले भी हैं। इस बाजार में पारंपरिक भारतीय डिजाइन के आभूषण से लेकर एकदम आधुनिक डिजाइन के गहने तक मिलते हैं। उनमें हर तरह के रत्न और कीमती धातु का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि यह हीरे और अन्य धातु के आभूषणों का भी बड़ा बाजार है। जवेरी बाजार में केवल गहने ही नहीं मिलते बल्कि कीमती धातुओं से बने फोटो फ्रेम, क्लिप, टी-सेट, डिनरवेयर, खिलौने और विलासिता से जुड़ी वस्तुएं भी मिलती हैं।
बताते हैं कि 19वीं सदी की शुरुआत में अंबालाल जवेरी नाम के एक जौहरी यहां कारोबार करते थे, जिनके यहां मिलने वाले सोने की शोहरत दूर-दूर तक फैली थी। उन्हीं के नाम पर इस बाजार का नाम जवेरी बाजार पड़ा। मगर उनकी मृत्यु के बाद पूरा कारोबार पारिवारिक विवाद की भेंट चढ़ गया। बहरहाल जवेरी बाजार तब से आज तक बढ़ता ही जा रहा है। इस बाजार में रोजाना 200 करोड़ रुपये से ज्यादा कीमत के सोने-चांदी का कारोबार होता है। दोनों धातुओं के कुल देसी कारोबार के 60 फीसदी से अधिक सौदे यहीं होते हैं। जगावत संस (मनखुश जगावत), त्रिभुवनदास भीमजी जवेरी (टीबीजेड), द्वारकादास चंदूमल, धीरजलाल भीमजी जवेरी और यूटीजेड जैसी बड़ी संगठित आभूषण कंपनियों के मुख्यालय भी यहीं हैं।
टीबीजेड की पहली दुकान 1864 में जवेरी बाजार में ही खुली थी। यहां कुछ दुकानें 300 साल से भी ज्यादा पुरानी है और दुकानों का औसत आकार 250 वर्ग फुट है।
सदियों पुराने इस कारोबारी अड्डे का नए सिरे से विकास होने की बात से ज्वैलर्स काफी उत्साहित दिख रहे हैं। इसका स्वागत करते हुए वे कहते हैं कि चार दशक से इसकी मांग की जा रही थी मगर अब जाकर बात परवान चढ़ती दिख रही है। पुनर्विकास की योजना के तहत यातायात संभालने, पार्किंग और दूसरी बुनियादी सुविधाओं को बेहतर करने का प्रस्ताव है, जिससे आसपास की व्यापारिक और आवासीय सुविधाएं अंतरराष्ट्रीय कसौटी पर खरी उतरेंगी।
मुंबई ज्वैलर्स एसोसिएशन के सचिव कुमार जैन कहते हैं कि मुंबा देवी कॉरिडोर के साथ जवेरी बाजार का विकास होना ही चाहिए। हालांकि उनका कहना है कि काम शुरू होने पर ज्वैलरों के कारोबार में बाधा पड़ेगी और उन्हें नुकसान होगा मगर बेहतर कल के लिए सब नुकसान उठाने को तैयार हैं। कुमार कहते हैं, ‘इलाके में बहुत दिक्कत हैं। यहां पानी की निकासी की व्यवस्था करीब 150 साल पुरानी है। दूसरा बुनियादी ढांचा पूरी तरह सड़ चुका है और बदलाव जरूरी है। मुंबा देवी की कृपा से यह बाजार बसा और फल-फूलकर देश का सबसे बड़ा बाजार बना। उनके लिए थोड़ा नुकसान उठाने में किसी को दिक्कत नहीं है।’
लेकिन सभी कारोबारी ऐसा नहीं सोच रहे। महाराष्ट्र सरकार ने लोकसभा चुनाव की घोषणा से ऐन पहले 220 करोड़ रुपये लागत वाला यह कॉरिडोर बनाने की मंजूरी दी थी। मुंबई जिला नियोजन समिति ने 10 करोड़ रुपये के बजट का इंतजाम भी कर दिया था मगर अभी तक काम शुरू नहीं हुआ है। इस वजह से ज्वैलर्स के मन में आशंका जग रही हैं। श्री मुंबादेवी दागिना बाजार एसोसिएशन के अध्यक्ष राजू सोलंकी कहते हैं कि मुंबा देवी कॉरिडोर बनाने की बात कही जा रही है मगर मुंबा देवी से सटे दागीना बाजार का विकास ज्वैलर्स की सहमति से ही होगा, जिसके लिए सरकार ने कोई पहल नहीं की है। जिन ज्वैलर्स की दुकानें तोड़ी जाएंगी उन्हें भरोसे में नहीं लिया गया है, यह भी नहीं बताया गया कि दुकान के बदले जगह कहां दी जाएगी।
एपीजे ज्वैलर्स के ललित पलरेचा पुनर्विकास के पक्ष में तो हैं मगर वह सरकार से ज्वैलरी बाजार और मौजूदा कारोबार को ध्यान में रखकर ही कदम उठाने की दरख्वास्त भी करते हैं। वह कहते हैं, ‘पुनर्विकास के लिए हमारी दुकानें ली जाती हैं तो हम देने के लिए तैयार हैं। मगर हमें इसी इलाके में दुकानें चाहिए ताकि हमारा सैकड़ों साल से जमा कारोबार उजड़े नहीं बल्कि नई पहचान के साथ चमके।’
सिल्वर इम्पोरियम के प्रबंध निदेशक राहुल मेहता कहते हैं कि सरकार ने सराफों और कारोबारियों को अभी तक कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी है। इस वजह से भ्रम है। सरकार पहले कारोबारियों को बताए कि पुनर्विकास किस तरह होगा, उसमें कितना समय लगेगा और उस समय के भीतर ही काम पूरा होने की गारंटी भी दे। कोई भी योजना कारोबारियों पर जबरन नहीं थोपी जानी चाहिए।
जब 2023 में मुंबा देवी कॉरिडोर की योजना घोषित की गई थी तब देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री थे। उन्होंने कहा था कि कॉरिडोर बनाते समय इस बात का पूरा ध्यान रखा जाएगा कि इलाके की ऐतिहासिक धरोहर सुरक्षित रहे और सभी को दिखाई दे। योजना के मुताबिक मंदिर के पास हर तरह की सुविधा और साधन से संपन्न भवन बनाया जाएगा, जिसमें पूजा घर, भक्तों का हॉल, शौचालय, कार पार्किंग, भक्तों के लिए कतार लगाने की व्यवस्था जैसी समूची बुनियादी सुविधाएं होंगी।
इसके लिए 30 लाइसेंसशुदा और 190 अनधिकृत फेरीवालों को हटाया जाएगा ताकि यहां का कॉरिडोर भी काशी विश्वनाथ कॉरिडोर जैसा हो। मंदिर परिसर सभी तरफ से दिखाई देगा और इलाके में हर समय लगने वाला ट्रैफिक जाम खत्म हो जाएगा। मुंबा देवी क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त करने के लिए मंदिर प्रशासन के अधिकार क्षेत्र में आने वाले फूल विक्रेताओं के लिए स्टॉल बनाए जाएंगे।
बैठने की व्यवस्था होगी, हवन मंडप तथा पूजा के लिए अलग स्थान का इंतजाम भी होगा। यह कॉरिडोर कालबादेवी रोड से विट्ठलवाड़ी, कॉटन एक्सचेंज, शेख मेमन स्ट्रीट, सट्टागली, महाजन गली, तेल गली और विठोबा लेन तक फैला होगा। जर्जर इमारतों के पुनर्निर्माण के साथ आधुनिक व्यापारिक और आवासीय परिसर विकसित किए जाएंगे, जिनसे न केवल व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा बल्कि यहां के निवासियों का जीवन स्तर भी सुधर जाएगा।
आज का चमचमाता शहर मुंबई किसी जमाने में उजाड़ हुआ करता था। फिर यहां मछुआरों की बस्ती बसी। इन मछुआरों ने समुद्र में आने वाले तूफानों से अपनी रक्षा के लिए देवी के एक मंदिर की स्थापना की, जिन्हें मुंबा देवी कहा गया। इन्हीं मुंबा देवी के नाम पर इस शहर का नाम मुंबई रखा गया। मुंबा देवी मंदिर मुंबई के भूलेश्वर में है और करीब 400 साल पुराना है।
निषाद मछुआरों ने पहले बोरी बंदर में मुंबा देवी का मंदिर बनाया। मंदिर की स्थापना 1737 में की गई और वह ठीक उस जगह बना था, जहां आज विक्टोरिया टर्मिनस इमारत है। बाद में अंग्रेजों के शासन में मंदिर को मरीन लाइन्स के पूर्वी क्षेत्र भूलेश्वर में बाजार के बीचोबीच स्थापित किया।
उस समय मंदिर के तीन ओर बड़ा तालाब था। इस मंदिर के लिए जमीन पांडु सेठ ने दान में दी थी और मंदिर की देखरेख भी उन्हीं का परिवार करता था। बाद में बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर मंदिर के न्यास की स्थापना की गई, जो आज भी इस मंदिर की देखरेख करता है। मुंबा देवी में पूजा पाठ कराने वाले अधिकतर पुरोहित उत्तर भारतीय हैं। मुंबा देवी को धन और ऐश्वर्य की देवी मां लक्ष्मी का ही स्वरूप माना जाता है। आस्था है कि उन्हीं की कृपा से मुंबई देश की आर्थिक राजधानी बन सका है। उन्हें मुंबई की ग्राम देवी के रूप में पूजा जाता है।