शहरों में रहन-सहन पहले के मुकाबले काफी महंगा हो गया है। अब औसत शहरी की कमाई का बड़ा हिस्सा घर के किराए में चला जाता है। घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार कुल उपभोग व्यय में किराए का हिस्सा 6.58 प्रतिशत हो गया है। सहस्राब्दी बदलने के बाद हुए सभी सर्वेक्षणों में घर किराए में इस बार सबसे ज्यादा इजाफा देखने को मिला है। वर्ष 1999 में किए गए इसी प्रकार के सर्वेक्षण में उपभोग व्यय में किराए का हिस्सा 4.46 प्रतिशत था। खास यह कि उसके बाद हुए प्रत्येक दौर के सर्वेक्षण में इसमें वृद्धि होती गई।
इस सर्वेक्षण में घरेलू उपभोग और व्यय पैटर्न को समझने के लिए देश भर से लोगों की राय ली जाती है। इस आंकड़ों का इस्तेमाल मुद्रास्फीति की गणना में किया जाता है। यहां प्रस्तुत आंकड़े देश में वर्ष 2023-24 के दौरान मासिक प्रति व्यक्ति घरेलू उपभोग व्यय (एमपीसीई) पर आधारित हैं। इस व्यय में वे वस्तुएं शामिल नहीं हैं, लोगों को मुफ्त मिली हों। ऐसे चीजों की गणना के बाद किराया वृद्धि 6.5 प्रतिशत बैठती है।
सर्वेक्षण के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि किराए के मामले में ग्रामीण और शहरी भारत में विभाजन गहरा होता जा रहा है। ग्रामीण इलाकों में 1999-2000 में जहां मुफ्त वस्तुओं को गिने बिना कुल व्यय में किराए का हिस्सा 0.39 प्रतिशत था, वहीं अब 2023-24 में यह 0.56 प्रतिशत पहुंच गया है।
शहरी क्षेत्रों में पिछले साल के मुकाबले परिवहन पर खर्च में कमी आई है। वर्ष 2023-24 में इस मद में कुल खर्च का 8.46 प्रतिशत हिस्सा था जबकि इससे पूर्व के वर्ष में यह 8.59 प्रतिशत दर्ज किया गया था। पिछले 25 वर्षों में देखें तो इसमें भी बढ़ोतरी हुई है और यह 1999-2000 में कुल खर्च का 5.52 प्रतिशत था। ध्यान देने वाली बात यह कि ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों के मुकाबले परिवहन पर खर्च तेजी से बढ़ा है और इसने इस मद में खर्च के अंतर को लगभग खत्म ही कर दिया है। उदाहरण के लिए 25 साल पहले जहां गांवों में परिवहन खर्च 2.94 प्रतिशत था, वहीं अब यह बढ़कर 7.59 प्रतिशत पहुंच गया है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के क्रिश्चिन डस्टमैन तथा फ्रेडरिक-एलेक्जेंडर यूनिवर्सिटी के बर्नड फिट्जेनबर्गर तथा बर्लिन के हम्बोल्ट यूनिवर्सिटी के मार्कस जिम्मरमैन द्वारा ‘घरेलू व्यय एवं आय असमानता’ शीर्षक से किए गए शोध में यह बात भी उभर कर सामने आई है कि यदि घरेलू व्यय बढ़ता है तो इसका सीधा असर पूरी जिंदगी की बचत पर पड़ता है।
इस शोध में जर्मनी में 1990 से बढ़ती आय समानता का बारीकी से अध्ययन किया गया। इसके अनुसार निम्न वर्ग से ताल्लुक रखने वाले लोगों की आमदनी का बड़ा हिस्सा घरेलू खर्च में चला गया जबकि अमीर लोगों ने अपनी आय के अनुपात में घरेलू मद में कम खर्च किया।
इस शोध में कहा गया है, ‘बुजुर्गों ने अपनी युवावस्था में घरेलू मद में जितना खर्च किया, उसकी अपेक्षा उसी उम्र का आज का युवा वर्ग घरेलू मद में अधिक खर्च करता है और बहुत कम बचा पाता है। इसका सीधा असर भविष्य की बचत और खास कर आय वितरण पर पड़ेगा।’
लेकिन स्थिति और भी खराब हो सकती है। ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकनॉमिक को-ऑपरेशन ऐंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) की अप्रैल 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार ओईसीडी तथा यूरोपीय संघ के अधिक अमीर देशों में घर के किराए पर कहीं अधिक पैसा खर्च किया जाता है। रिपोर्ट कहती है, ‘ओईसीडी और यूरोपीय संघ के देशों में 2022 में घरेलू उपभोग में सबसे ज्यादा व्यय रहन-सहन पर हुआ। ओईसीडी देशों में यह कुल घरेलू उपभोग व्यय का औसतन 22.5 प्रतिशत और यूरोपीय संघ के देशों में औसतन 22.2 प्रतिशत दर्ज किया गया।’ यही नहीं, रहन-सहन पर खर्च के मामले में कुछ देश तो और भी महंगे हैं। कनाडा, बेल्जियम, डेनमार्क, फिनलैंड, आयरलैंड, जापान और ब्रिटेन समेत कई देशों में उपभोग व्यय का चौथाई हिस्सा घर से संबंधित खर्चों में चला जाता है।