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भारत के 51वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में कल शपथ लेंगे न्यायमूर्ति संजीव खन्ना

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पूर्वाह्न 10 बजे राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में उन्हें पद की शपथ दिलाएंगी।

Last Updated- November 10, 2024 | 10:32 PM IST
Justice Sanjiv Khanna took oath as the 51st CJI of India, gave many historic decisions ranging from EVM, electoral bonds to removal of Article 370 न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने भारत के 51वें CJI के रूप में शपथ ली, EVM, चुनावी बॉन्ड से लेकर अनुच्छेद 370 हटाने तक सुनाए कई ऐतिहासिक फैसलें

चुनावी बॉन्ड योजना को खत्म करने और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने जैसे उच्चतम न्यायालय के कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे न्यायमूर्ति संजीव खन्ना सोमवार को भारत के 51वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पूर्वाह्न 10 बजे राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में उन्हें पद की शपथ दिलाएंगी। न्यायमूर्ति खन्ना, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ का स्थान लेंगे, जो रविवार को सेवानिवृत्त हो गए।

केंद्र सरकार ने 16 अक्टूबर को प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ की सिफारिश के बाद 24 अक्टूबर को न्यायमूर्ति खन्ना की नियुक्ति को आधिकारिक रूप से अधिसूचित किया। न्यायमूर्ति खन्ना का कार्यकाल 13 मई 2025 तक रहेगा। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का प्रधान न्यायाधीश के रूप में शुक्रवार को अंतिम कार्य दिवस था और उन्हें शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, वकीलों और कर्मचारियों द्वारा शानदार विदाई दी गई।

जनवरी 2019 से उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्यरत न्यायमूर्ति खन्ना इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की विश्वसनीयता को बनाए रखने, चुनावी बॉन्ड योजना को खत्म करने, अनुच्छेद 370 को हटाने और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने जैसे कई महत्त्वपूर्ण फैसलों का हिस्सा रहे हैं। दिल्ली के एक प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखने वाले न्यायमूर्ति खन्ना दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश देव राज खन्ना के बेटे और शीर्ष न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एच आर खन्ना के भतीजे हैं।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को 18 जनवरी 2019 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। वह लंबित मामलों को कम करने और न्याय मुहैया कराने में तेजी लाने पर जोर देते रहे हैं।

न्यायमूर्ति एच आर खन्ना आपातकाल के दौरान एडीएम जबलपुर मामले में असहमतिपूर्ण फैसला लिखने के बाद 1976 में इस्तीफा देने के कारण चर्चा में रहे थे। आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के हनन को बरकरार रखने वाले संविधान पीठ के बहुमत के फैसले को न्यायपालिका पर एक ‘काला धब्बा’ माना गया।

First Published - November 10, 2024 | 10:32 PM IST (बिजनेस स्टैंडर्ड के स्टाफ ने इस रिपोर्ट की हेडलाइन और फोटो ही बदली है, बाकी खबर एक साझा समाचार स्रोत से बिना किसी बदलाव के प्रकाशित हुई है।)

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