दिल्ली-जयपुर एक्सप्रेसवे के कारण देश की राजधानी दिल्ली से गुलाबी शहर जयपुर के बीच 242 किलोमीटर का सफर बहुत ही सुगम और सुहाना हो गया है। राष्ट्रीय राजमार्ग 48 पर विस्तारित यह 8 लेन एक्सप्रेसवे बहुत ही शानदार है। इस पर निर्माण कार्यों और ट्रकों एवं डंपरों के कारण कहीं-कहीं मामूली तौर पर आवाजाही थोड़ी प्रभावित होती है।
दिल्ली के पास हरियाणा सीमा से शुरू होने वाला यह एक्सप्रेसवे दोनों तरफ दूर तक फैले विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों की ओर इशारा करते राजस्थान स्टेट इंडस्टि्रयल डेवलपमेंट ऐंड इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन (रीको) के ग्रीन संकेतकों और रियल एस्टेट डेवलपर्स के बिलबोर्ड से पटा पड़ा है।
नब्बे के दशक में स्थापित रीको अब तरक्की के पथ पर सरपट दौड़ रहा है। इसके सहयोग से विकसित इस एक्सप्रेसवे ने दिल्ली और राजस्थान के बीच की दूरी को पाट दिया है।
राजस्थान के अलवर जिले में एक्सप्रेसवे के दोनों ओर खुशखेड़ा-भिवाड़ी-नीमराना इन्वेस्टमेंट रीजन (केबीएनआईआर) है। खुशखेड़ा के पास 400 एकड़ में होंडा मोटर्स कंपनी का परिसर फैला हुआ है।
नीमराना के जापानी जोन में ऑटो उद्योग से जुड़ीं तमाम कंपनियां स्थित हैं जो होंडा को उपकरण आपूर्ति करती हैं। पूरा जापानी जोन 1100 एकड़ में विस्तारित है। यह पूरा क्षेत्र इंडिया-जापान मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) के अंतर्गत जापानी कंपनियों के लिए ही समर्पित है। यह जोन नैशनल इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एनआईसीडीसी) द्वारा लीज पर लिया गया है। एनआईसीडीसी मौजूदा समय में इस इलाके में एक और औद्योगिक कॉरिडोर विकसित कर रहा है।
अधिकारी स्वीकार करते हैं कि कुछ साल पहले भूमि अधिग्रहण संबंधी समस्याओं के कारण इस जोन के विकास में कुछ अड़चनें आई थीं, लेकिन उसके बाद से लगातार इसका तेज विकास हो रहा है। सुपर लक्जरी नीमराना फोर्ट जापानी जोन की शान है। इसके अलावा यहां रिहायशी परियोजनाएं, पर्यटन स्थल और अन्य सुविधाएं विकसित हो रही हैं।
एक्सप्रेसवे के दूसरी तरफ भिवाड़ी भी सफलता की इसी कहानी को दोहराने के लिए उतावला दिखता है। कुछ लोग इसे भविष्य का गुरुग्राम कहकर पुकारते हैं, जबकि कुछ लोग अत्यधिक वायु प्रदूषण के कारण इस क्षेत्र की आलोचना करते हैं। आज भिवाड़ी रियल्टी डेवलपर्स के लिए सबसे आकर्षक बाजार बनकर उभरा है और यहां प्रीमियम और किफायती दोनों तरह की परियोजनाएं आकार ले रही हैं। इस क्षेत्र में खूब बहुमंजिला इमारतें बन रही हैं। फार्महाउस, विला और लक्जरी अपार्टमेंट भी यहां की शान हैं।
इस क्षेत्र का विकास यूं ही नहीं हो रहा है। भिवाड़ी में लगभग 4000 औद्योगिक इकाइयां संचालित हो रही हैं। इनमें सेंट गोबेन, जैकुवार, रिलैक्सो, डॉ. ओटेकर के साथ-साथ ऑटो उद्योग की तमाम सहायक कंपनियां और एमएसएमई शामिल हैं।
भिवाड़ी मैनुफैक्चरर्स एसोसिएशन (बीएमए) के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र चौहान कहते हैं, ‘इन औद्योगिक जोन की वजह से आज राजस्थान तरक्की के पथ पर है। राजस्थान के लिए अलवर सबसे अधिक राजस्व जुटाने वाला क्षेत्र है। गुरुग्राम के बाद सबसे अधिक लोग यहीं कारोबार या रिहायश करना पसंद कर रहे हैं।’
भिवाड़ी में बीएमए की इमारत प्रमुख लैंडमार्क बन गया है। जब यह संवाददाता वहां गई तो कुछ ही कर्मचारी मौजूद थे। कुछ ग्रामीण अपनी भूमि संबंधी मुद्दों को लेकर यहां आए हुए थे। चौहान कहते हैं, ‘फैक्टरियों के लिए छोटी-छोटी जमीनें आवंटित करने का दौर भिवाड़ी ने पीछे छोड़ दिया है। अब यहां बहुत बड़ी-बड़ी कंपनियां आ रही हैं, जिन्हें बहुत अधिक भूमि की आवश्यकता होती है। सरकार ने भूमि आवंटन के लिए कड़े नियम बना दिए हैं और कई तरह के प्रतिबंध भी लगाए हैं, इसके बावजूद यहां जमीनों की मांग बढ़ती जा रही है। नतीजतन भाव आसमान छू रहे हैं। हालांकि पारदर्शिता के लिए यहां प्लाटों की नीलामी में ऑनलाइन प्रक्रिया ही अपनाई जाती है।’
बीएमए के एक और सदस्य कहते हैं कि बड़ी कंपनियों को लक्षित कर ही यहां नीतियां बन रही हैं। भिवाड़ी में छोटी कंपनियों को कारोबार करना बहुत महंगा होता जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘दूसरे जोन में कंपनी स्थानांतरित करना और भी मुश्किल सौदा है, क्योंकि वहां संपर्क मार्गों की स्थिति अच्छी नहीं है। भिवाड़ी में जो कुछ विकास हो रहा है, उसका सबसे बड़ा कारण है कि यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के बहुत करीब है।’
चौहान भी इसी तरह की बात कहते हैं, ‘सीवेज व्यवस्था से लेकर चौड़ी सड़कों और हरित क्षेत्र बढ़ाने के इंतजाम करने तक उद्योग जगत के लोग ही सरकार पर दबाव बनाए हुए हैं। सरकार केवल भूमि नीलाम कर रही है। उसकी तरफ से उद्योगों को जरूरी सहयोग या प्रोत्साहन भी नहीं मिल रहा है।’
यहां महंगी बिजली सबसे बड़ी चिंता का विषय है। फैक्टरी मालिकों का कहना है कि उन्हें 10 से 12 रुपये प्रति यूनिट बिजली मिलती है। यह देशभर में सबसे ऊंची कमर्शल दर है। भिवाड़ी एनसीआर में आता है, इसलिए इसे वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए ग्रैप (ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान) का पालन भी करना पड़ता है।
इसका मतलब यह कि यहां डीजल से चलने वाले जेनसेट का इस्तेमाल नहीं हो सकता। उद्योगों को गैस लाइन और उत्सर्जन नियंत्रण प्रौद्योगिकी अपनानी पड़ती है। रीको के वरिष्ठ अधिकारी इस बात से सहमति जताते हैं कि यहां अन्य राज्यों के मुकाबले बिजली महंगी है। लेकिन, सरकार इस समस्या का समाधान तलाश रही है।
क्या राज्य की मौजूदा सरकार ने नीतियों में पूरी तरह बदलाव कर दिया है? इस सवाल पर कई अधिकारियों ने बताया कि नीतियां पहले भी खराब नहीं थीं। अब केंद्र और राज्य सरकार के स्तर पर प्रोत्साहन दिया जा रहा है और संपर्क के लिए आधारभूत ढांचा मजबूत हो रहा है। कई छोटे उद्यमियों ने कहा कि एक्सप्रेसवे और रेलवे के वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर की वजह से इस क्षेत्र का स्वत: ही विकास हो रहा है।
धातु का सामान बनाने वाली एक फैक्टरी के मालिक ने कहा, ‘अशोक गहलोत और कांग्रेस का रवैया उद्योगों को लेकर उदासीन था। मौजूदा सरकार उद्योगों के खिलाफ तो नहीं है, लेकिन जितना काम होना चाहिए, उतना नहीं कर रही है। उत्सर्जन नियंत्रण या बिजली लागत पर सरकार की ओर से कोई सब्सिडी या निवेश घोषित नहीं किया गया है। यदि प्रदूषण सूचकांक में भिवाड़ी की रैंकिंग नीचे आई है तो यह उद्योगों द्वारा उठाए गए कदमों और उनके निवेश के कारण हुआ है।’
लोक सभा चुनाव को लेकर उद्योग जगत से जुड़े अधिकांश लोग कहते हैं कि अब उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि सत्ता में कौन आएगा, क्योंकि सरकार किसी की भी रहे, उनकी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं।