हीमोफीलिया देखभाल के विशेषज्ञों के पंजीकृत निकाय ‘हीमोफीलिया ऐंड हेल्थ क्लेक्टिव ऑफ नार्थ’ (एचएचसीएन) इस रोग की रोकथाम की मानक प्रक्रिया अपनाने के लिए कई राज्य सरकारों से विचार-विमर्श करेगा।
इस निकाय के अधिकारी ने बताया कि एचएचसीएन भारत में ‘हीमोफीलिया ए’ के मरीजों की मानक प्रक्रिया अपनाने के लिए आवाज उठाएगा। उन्होंने बताया, ‘इन मरीजों को मदद मुहैया कराने के लिए विभिन्न राज्य सरकारों से बातचीत की जाएगी।’
हीमोफीलिया जेनेटिक विलक्षण खून बहने का रोग है। इस रोग में शरीर से खून निकलने पर उसका थक्का नहीं जम पाता है और चोट या सर्जरी होने की स्थिति में निरंतर रक्त स्राव होता रहता है।
भारत में विश्व के दूसरे सर्वाधिक ‘हीमोफीलिया ए’ (खून के थक्के जमाने वाली प्रोटीन 8 की कमी) के 1,36,000 मरीज हैं।
नोएडा के पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टीच्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ के पेड्रियाटिक हीमोटोलॉजी – ऑन्कोलॉजी की सहायक प्रोफेसर व प्रमुख डॉ. नीता राधाकृष्णन ने बताया कि इन मरीजों के कारण अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इन मरीजों को बार-बार खून निकलने के कारण स्कूल या कार्यस्थल से अवकाश लेना पड़ता है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।