गुजरात उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में कहा है कि गुजरात औद्योगिक विकास निगम (जीआईडीसी) द्वारा दी गई जमीन के पट्टे (लीज) का अधिकार अगर तीसरे पक्ष को दिया जाता है तब उस पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू नहीं होता है। सुयोग डाई केमि बनाम केंद्र के मामले में यह फैसला उन उद्योगों के लिए राहत लेकर आया है जिन्हें इस तरह के लीज हस्तांतरण पर पिछली तारीख से 18 प्रतिशत जीएसटी की मांग का बोझ उठाना पड़ता था। इससे कारण केवल गुजरात और महाराष्ट्र में ही लगभग 8,000 करोड़ रुपये की देनदारी है।
अदालत के इस फैसले से न केवल प्रभावित कारोबारों पर वित्तीय दबाव कम होगा बल्कि लंबे समय दोहरे कराधान के संबंध में जताई जा रही चिंताओं का भी समाधान होगा। इस फैसले के कारण यह उम्मीद भी बनी है कि इसी तरह के समान विवादों का जल्द समाधान होगा जिसमें बंबई उच्च न्यायालय के पास लंबित मामले भी शामिल हैं जहां चैंबर ऑफ स्मॉल इंडस्ट्री एसोसिएशन ने जीएसटी के प्रभावों को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की है। इसमें अहम कानूनी मुद्दा यह है कि पट्टे पर दी गई जमीन या औद्योगिकी भूमि के हस्तांतरण पर जीएसटी लगाया जाना चाहिए क्योंकि इस तरह के लेन-देने के मामले में पहले से ही राज्य द्वारा लगाया गया स्टांप शुल्क देना पड़ता है।
याचियों ने तर्क दिया है कि इस तरह के हस्तांतरण को जमीन की बिक्री के तौर पर ही देखा जाना चाहिए जो स्पष्ट रूप से जीएसटी के दायरे से बाहर है। बाद के हरेक हस्तांतरण पर 18 फीसदी जीएसटी लगाने के कारण भारी कर बोझ बढ़ा है और जिससे करों का दोहराव बढ़ता है और इसके कारण ही कई सौदे आर्थिक रूप से अव्यवहारिक साबित हो रहे हैं।
बंबई उच्च न्यायालय में याचियों का प्रतिनिधित्व करने वाले रस्तोगी चैंबर्स के संस्थापक अभिषेक रस्तोगी कहते हैं, ‘जीएसटी के ढांचे में जमीन और इमारतों की बिक्री पर लगाए जाने वाले कर शामिल नहीं हैं और इस तरह के लेनदेन को पूरी तरह से इसके दायरे से बाहर रखा गया है। इसमें किसी भी तरह के अंतर से दोहरे कराधान की स्थिति बनेगी। उद्योग जल्द से जल्द समाधान चाहते हैं क्योंकि कई मांग नोटिस जारी किए गए हैं जिसके कारण मुकदमों और अपील के लिए पहले से जमा की गई राशि का बोझ बढ़ रहा है।’
ईवाई के कर अधिकारी सौरभ अग्रवाल कहते हैं, ‘इस ऐतिहासिक फैसले से अंतरिम स्तर पर स्पष्टता मिलती है और यह पूरे देश में इस तरह के मामले के लिए अहम मिसाल साबित होगा। जीएसटी कानून की परिपक्वता और उच्चतम न्यायालय का निर्णायक फैसला, इन मुद्दों को निश्चित रूप से सुलझाने के लिए आवश्यक है। यह उद्योग के लिए फायदेमंद होगा अगर सीबीआईसी इस पहलू पर स्पष्टता बरकरार रखने में सफल होता है। ऐसे में उद्योगों को उच्चतम न्यायालय के अंतिम फैसले का इंतजार नहीं करना पड़ेगा।’