facebookmetapixel
Gold-Silver Outlook: सोना और चांदी ने 2025 में तोड़े सारे रिकॉर्ड, 2026 में आ सकती है और उछालYear Ender: 2025 में आईपीओ और SME फंडिंग ने तोड़े रिकॉर्ड, 103 कंपनियों ने जुटाए ₹1.75 लाख करोड़; QIP रहा नरम2025 में डेट म्युचुअल फंड्स की चुनिंदा कैटेगरी की मजबूत कमाई, मीडियम ड्यूरेशन फंड्स रहे सबसे आगेYear Ender 2025: सोने-चांदी में चमक मगर शेयर बाजार ने किया निराश, अब निवेशकों की नजर 2026 पर2025 में भारत आए कम विदेशी पर्यटक, चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया वीजा-मुक्त नीतियों से आगे निकलेकहीं 2026 में अल-नीनो बिगाड़ न दे मॉनसून का मिजाज? खेती और आर्थिक वृद्धि पर असर की आशंकानए साल की पूर्व संध्या पर डिलिवरी कंपनियों ने बढ़ाए इंसेंटिव, गिग वर्कर्स की हड़ताल से बढ़ी हलचलबिज़नेस स्टैंडर्ड सीईओ सर्वेक्षण: कॉरपोरेट जगत को नए साल में दमदार वृद्धि की उम्मीद, भू-राजनीतिक जोखिम की चिंताआरबीआई की चेतावनी: वैश्विक बाजारों के झटकों से अल्पकालिक जोखिम, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूतसरकार ने वोडाफोन आइडिया को बड़ी राहत दी, ₹87,695 करोड़ के AGR बकाये पर रोक

सामान्य पटाखे से लेकर हरित पटाखे तक: कैसे नियमों ने इस उद्योग की आपूर्ति श्रृंखला को पूरी तरह बदल दिया है?

दिल्ली-NCR में ग्रीन पटाखों के इस्तेमाल की इजाजत दी गई है जिससे पटाखा उद्योग के बीच एक बार फिर उम्मीदें जगी हैं और इससे जुड़े लोगों के लिए रोजगार का अवसर बना है

Last Updated- October 19, 2025 | 4:43 PM IST
Green crackers
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

Diwali 2025: सुप्रीम कोर्ट के 15 अक्टूबर के फैसले ने एक बार फिर भारत के पटाखा उद्योग में उम्मीद जगाई है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और नेशनल कैपिटल रीजन (NCR) में ग्रीन पटाखों की नियंत्रित बिक्री और इस्तेमाल की इजाजत दी है। कोर्ट के इस आदेश ने प्रदूषण की समस्या को संभालने के तरीके में बड़ा बदलाव भी दिखाया है, जो हर साल दिवाली के आसपास दिल्ली-NCR में और भी बदतर हो जाती है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला और दिल्ली-NCR की हवा

भारत का पटाखा कारोबार सालों से बड़े बदलाव से गुजरा है, जिसमें सख्त प्रदूषण नियमों और लोकल बैन की बड़ी भूमिका रही है। जो पहले पारंपरिक पटाखों के बिना रोक-टोक वाले इस्तेमाल से जाना जाता था, वो अब एक सख्ती से नियंत्रित क्षेत्र बन गया है। अब सिर्फ सर्टिफाइड ग्रीन पटाखे ही बनाए और इस्तेमाल किए जा सकते हैं, वो भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए खास नियमों के मुताबिक।

पारंपरिक पटाखे पार्टिकुलेट मैटर (PM 2.5), सल्फर डाइऑक्साइड और दूसरे हानिकारक उत्सर्जनों का बड़ा स्रोत रहे हैं, जो प्रदूषण को खतरनाक स्तर तक पहुंचा देते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का दिल्ली-NCR में ग्रीन पटाखों की इजाजत वाला फैसला उस दिन आया, जब राष्ट्रीय राजधानी में हवा की क्वालिटी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सुरक्षित लिमिट से 25 से 30 गुना ज्यादा खराब थी, और कुछ जगहों पर PM 2.5 का स्तर 400 से ऊपर पहुंच गया था।

दिवाली के आसपास पटाखों का पारंपरिक तमाशा अब बदल रहा है, जिसमें इको-फ्रेंडली या ग्रीन पटाखों की बढ़ती मांग से सप्लाई चेन और मजदूरों की स्थिति भी नई शक्ल ले रही है।

सिवाकासी के उत्पादन और रोजगार पर असर

2017 में सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों में एंटीमोनी, लिथियम, मरकरी, आर्सेनिक, लेड और स्ट्रॉन्टियम नाइट्रेट जैसे केमिकल्स के इस्तेमाल पर बैन लगा दिया था। एक साल बाद, कोर्ट ने सिर्फ “ग्रीन पटाखों” के इस्तेमाल की इजाजत दी, जिसका सबसे ज्यादा असर तमिलनाडु के सिवाकासी शहर में काम करने वालों पर पड़ा।

डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, देश की पटाखा राजधानी के नाम से मशहूर सिवाकासी में देश भर में बिकने वाले पटाखों का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा बनता है।

भारत में पटाखा उद्योग 6,000 करोड़ रुपये का है, जिसमें 8,000 से ज्यादा रजिस्टर्ड फैक्ट्रियां हैं और 300,000 से ज्यादा लोग सीधे काम करते हैं। अप्रत्यक्ष रोजगार 500,000 तक पहुंचता है।

Also Read: Market Outlook: दिवाली वीक में वैश्विक रुझान, FPI के रुख, तिमाही नतीजों से तय होगी बाजार की चाल

तमिलनाडु फायरवर्क्स अमोर्सेस मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (TANFAMA) के डेटा के मुताबिक 2021 तक सिवाकासी और उसके आसपास 1,070 मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स थीं। एसोसिएशन का दावा है कि कोविड-19 से पहले 2019-2020 में उद्योग का साइज 3,000 करोड़ रुपये था।

2018 में कोर्ट के बैरियम नाइट्रेट जैसे केमिकल्स पर बैन से पारंपरिक पटाखों का उत्पादन काफी कम हो गया, जिससे कई प्रोड्यूसर कारोबार बंद करने पर मजबूर हो गए। हिंदुस्तान टाइम्स की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, सिवाकासी की वेलावन फायरवर्क्स फैक्ट्री में 2020 तक 150 मजदूर थे, लेकिन 2022 में ये संख्या 50 से 70 के बीच रह गई।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, बैन और केमिकल रेस्ट्रिक्शन से 2022 में लगभग 150,000 लोगों की नौकरियां चली गईं।

ग्रीन पटाखों का उभार

द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘ग्रीन पटाखों’ के इस्तेमाल की इजाजत देने के बाद, सिवाकासी के मैन्युफैक्चरर्स ने 2018 में छह महीने तक आदेश के खिलाफ विरोध किया, लेकिन फिर मई 2019 में दोबारा उत्पादन शुरू किया। फैक्ट्रियां दोबारा खुलने के बाद मजदूरों को बैचों में ग्रीन पटाखे बनाने की ट्रेनिंग दी गई। लेकिन जल्दी ही मजदूरों की कमी हो गई, क्योंकि स्ट्राइक के दौरान कई लोग दूसरे जगहों पर चले गए।

सिवाकासी के श्री बालाजी फायर वर्क्स इंडस्ट्रीज के मालिक आर बालाजी ने द इकोनॉमिक टाइम्स को बताया कि ग्रीन पटाखों में बदलाव आसान रहा, क्योंकि इसमें मौजूदा फॉर्मूले में सिर्फ एडिटिव्स जोड़ने पड़ते हैं।

ग्रीन पटाखे पारंपरिक पटाखों के मुकाबले कम उत्सर्जन वाले विकल्प हैं, जिन्हें काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च – नेशनल एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CSIR-NEERI) ने विकसित किया है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि ये ग्रीन पटाखे पार्टिकुलेट मैटर और सल्फर डाइऑक्साइड को 30-40 प्रतिशत कम छोड़ते हैं, जबकि देखने और सुनने में पारंपरिक पटाखों जैसे ही लगते हैं।

डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट बताती है कि ग्रीन पटाखों में शुरुआती बदलाव धीमा रहा, लेकिन अब उद्योग सिर्फ ग्रीन पटाखे बनाने पर फोकस है और उत्पादन बढ़ाने को तैयार है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में ग्रीन पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर बैन हटाने के साथ, तमिलनाडु फायरवर्क्स एंड अमोर्सेस मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (TANFAMA) के अध्यक्ष पी गणेशन ने फैसले की तारीफ की और कहा, “दिल्ली NCR में ग्रीन पटाखे फोड़ने की इजाजत से मैन्युफैक्चरर्स को बड़ा बूस्ट मिलेगा और लाखों मजदूरों के लिए अतिरिक्त नौकरियां बनेंगी। NCR अकेला भारत के पटाखा बाजार का लगभग 15 प्रतिशत हिस्सा है।”

भले ही ग्रीन पटाखे 30-40 प्रतिशत कम पार्टिकुलेट मैटर छोड़ते हों, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि ये अकेले समाधान नहीं हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ग्रीन पटाखों से होने वाले प्रदूषण में छोटी कमी से बड़ा फर्क नहीं पड़ेगा, खासकर अगर ये पटाखे बड़े पैमाने पर उपलब्ध हों।

First Published - October 19, 2025 | 4:43 PM IST

संबंधित पोस्ट